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Showing posts from April, 2011

राजस्थान समसामयिकी- अलवर के टपुकड़ा में विकसित होगी अपेरल सिटी

बड़े शहरों में श्रमिकों की भारी समस्या को देखते हुए अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (ए. ई. पी. सी.) ने अब गाँवों के आसपास अपैरल सिटी विकसित करने का फैसला किया है। इस दिशा में सर्वप्रथम राजस्थान अपैरल सिटी की स्थापना अलवर जिले के टपूकड़ा में 250 एकड़ में विकसित की जाएगी। यह विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस होगी और यहाँ श्रमिकों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा। राजस्थान स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ( रीको ) ने ए. ई. पी. सी. की इस बड़ी परियोजना को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है और शीघ्र ही टपुकड़ा में भूमि भी दे दी जाएगी। मानेसर से लगभग 40 किमी दूर बनने वाली इस अपैरल सिटी में 1000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की आशा है। अगले पाँच साल के दौरान इस सिटी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर हजारों लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। रीको ने इस परियोजना के लिए टपुकड़ा में जमीन चिह्नित कर ली है एवं अगले एक-दो सप्ताह में ए. ई. पी. सी. को 250 एकड़ जमीन सौंप दी जाएगी। ए.ई.पी.सी. स्पेशल परपस व्हीकल्स (एस.पी.वी.) के जरिए यहाँ अपैरल सिटी विकसित करेगी। ए.ई.पी.सी. के अनुसार भारत

महिला अधिकारिता विभाग

वर्ष 2007–08 के बजट घोषणा में पृथक से महिला अधिकारिता निदेशालय के गठन की घोषणा की गई। इस घोषणा की अनुपालना में महिला एवं बाल विकास विभाग का विभाजन कर पृथक से महिला अधिकारिता निदेशालय का गठन दिनांक 18 जून, 2007 को किया गया। इस विभाग के सृजन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक एवं आयोत्पादक गतिविधियों को बढ़ावा देना एवं उनका विकास करना था। महिला अधिकारिता निदेशालय के अंतर्गत वर्तमान में महिला विकास से संबन्धित समस्त योजनाएं, जो कि महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु राज्य/जिला/ब्लॉक स्तर पर संचालित है, का क्रियान्वयन एवं प्रबोधन किया जाता है। महिला अधिकारिता निदेशालय द्वारा विभिन्न विभागों की योजनाओं एव नीतियों में समन्वयन कर महिलाओं को वास्तविक लाभ पहुचाने का प्रयास किया जा रहा है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, परिवार कल्याण, रोजगार तथा प्रशिक्षण एवं उनका सामाजिक सशक्तिकरण महिला अधिकारिता के प्रमुख क्षेत्र हैं। इसके अन्तर्गत महिलाओं को विकास की प्रक्रिया में केवल लाभार्थी के रूप में नहीं देखा जाकर एक आवश्यक भागीदार के रूप में समझा जाता है ताकि एक समेकित मानवीय दृष्टिकोण

राजस्थान राजस्‍व मंडल

स्वाधीनता से पूर्व की राजस्व बंदोबस्त से संबंधित विभिन्न समस्‍याओं को हल करने के लिए तथा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए 1949 में राजस्‍थान में शामिल होने वाली रियासतों के उच्‍च बन्‍दोबस्‍त एवं भू-अभिलेख विभाग का पुनर्गठन एवं एकीकरण किया गया। उस समय इस विभाग का एक ही अधिकारी था जो कई रूपों में कार्य करता था, यथा- > बन्‍दोबस्‍त आयुक्‍त, > भू-अभिलेख निदेशक, > राजस्‍थान का पंजीयन महानिरीक्षक एवं > मुद्रा अधीक्षक आदि। एक वर्ष बाद, मार्च 1950 में भू-अभिलेख, पंजीयन एवं मुद्रा विभागों को बन्‍दोबस्‍त विभाग से पृथक कर दिया गया। भू-अभिलेख विभाग के निदेशक को ही पदेन मुद्रा एवं पंजीयन महानिरीक्षक बना दिया गया। भू-अभिलेख निदेशक की सहायता के लिए तीन सहायक भू अभिलेख निदेशक नियुक्‍त किए गए। इन सभी निकाय गठित किया गया। इसे राजस्‍व मंडल कहा गया। इसका कार्य राजस्‍व वादों का भय एवं पक्षपात रहित होकर उच्‍चतम स्‍तर पर निर्णय करना था। संयुक्‍त राजस्‍थान राज्‍य के निर्माण के पश्‍चात महामहिम राजप्रमुख ने 7 अप्रैल 1949 को एक अध्‍यादेश द्वारा राजस्‍थान के राजस्‍व मंडल { Board

Meena Tribe of Rajasthan - राजस्थान की मीणा जनजाति

मीणा भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से है। राजस्थान में आदिवासी जनसंख्या की दृष्टि से मीणा जाति का प्रथम स्थान है। यह राजस्थान के सभी क्षेत्रों में पाई जाती है लेकिन मुख्यतया जयपुर , अलवर , दौसा , सवाई माधोपुर , करौली और उदयपुर जिलों में निवास करती है। कर्नल टॉड के अनुसार अजमेर से लेकर आगरा तक काली खोह पर्वतमाला को मीणा जाति का मूल निवास मानते हैं। मीणा जाति अपनी उत्पत्ति भगवान विष्णु के दसवें अवतार अर्थात् मत्स्यावतार से होना मानती है। मीणा शब्द की उत्पत्ति ' मीन ' शब्द से हुई है जिसका अर्थ ' मछली ' होता है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि मीणा बहुल होने के कारण ही अलवर , भरतपुर आदि क्षेत्र को ' मत्स्य प्रदेश ' कहा जाता था। मीणा जनजाति के गुरु आचार्य मगनसागर मुनि थे। आचार्य मुनि मगन सागर ने ही मीणा जाति की '' मीन पुराण '' की रचना की है। वेदों में इनके लिये मेनिः शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है वज्र या वज्रका