मेरु नाट्यम है गवरी- राजस्थान की समृद्ध लोक परम्परा में कई लोक नृत्य एवं लोक नाट्य प्रचलित है। इन सबसे अनूठा है ' गवरी ' नामक ' लोक नृत्य-नाटिका ' । 'गवरी ' उन भीलों का एक मेरु नाट्यम हैं। यह एक नृत्य नाटक है, जो कि अनुकरण (नक़ल mime) और वार्तालाप को जोड़ता है, और ''गवरी नृत्य या राई नृत्य'' के नाम से जाना जाता है। गवरी में अभिनीत किये जाने वाले दृश्यों को 'खेल', ' भाव' या सांग कहा जाता है। यह भील जनजाति का एक ऐसा नाट्य-नृत्यानुष्ठान है, जो सैकड़ों बरसों से प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के एक दिन पश्चात प्रारंभ हो कर सवा माह तक आयोजित होता है। इसका आयोजन मुख्यत: उदयपुर और राजसमंद जिले में होता है। इसका कारण यह है कि इस खेल का उद्भव स्थल उदयपुर माना जाता है तथा आदिवासी भील जनजाति इस जिले में बहुतायत से पाई जाती है। गवरी का कथानक भगवान शिवजी के इर्द-गिर्द होता है, जो इसके केंद्रीय चरित्र है, तथा इस नृत्य-नाटिका में उनका चरित्र बहुत ही आश्चर्यजनक रूप में चित्रित होता है। गवरी में जो गाथाएं सुनने को मिलती हैं ,
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