इस वंश का संस्थापक गुहिल को माना जाता है। इसी कारण इस वंश के राजपूतों को गुहिलवंशीय कहा जाता है। इतिहासकार गौरीशंकर हीराचन्द ओझा गुहिलों को विशुद्ध सूर्यवंशीय मानते हैं, जबकि डी. आर. भण्डारकर के अनुसार ये ब्राह्मण थे। गुहिल के बाद इस वंश के मान्यता प्राप्त शासकों में बापा का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जो मेवाड़ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। डॉ. ओझा के अनुसार इनका नाम बापा न होकर कालभोज था तथा बापा इसकी एक उपाधि थी। बापा का 110 ग्रेन का एक सोने का सिक्का भी मिला है। ख्यातों में आलुरावल के नाम से प्रसिद्ध इस वंष का ’अल्लट ’ 10वीं सदी के लगभग मेवाड़ का शासक बना। उसने हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया था तथा उसके समय में आहड़ (उदयपुर) में वराह मन्दिर का निर्माण हुआ था। आहड़ से पूर्व गुहिलवंश की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र नागदा (कैलाशपुरी के निकट) था। गुहिलों ने तेरहवीं सदी के प्रारम्भिक काल तक मेवाड़ में कई उथल -
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