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****नरपति नाल्ह रचित बीसलदेव रासौ-****

नरपति नाल्ह रचित “ बीसलदेव रासौ ’’ राजस्थानी काव्य के प्राचीनकाल की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना के रूप में जानी जाती है। इस रचना में उन्होंने कहीं पर स्वयं को " नरपति " कहा है और कहीं पर " नाल्ह " । सम्भव है कि नरपति उनकी उपाधि रही हो और " नाल्ह " उनका नाम हो। अजमेर शासक बीसलदेव के आश्रित कवि नरपति नाल्ह ने इस रचना “ बीसलदेव रासौ ’’ का सृजन वि . सं . 1212 में किया था। कई विद्वान इसके सृजन का समय बाद का मानते हैं। इसमें वीसलदेव के जीवन के 12 वर्षों के कालखण्ड का वर्णन किया गया है। वीरगीत के रूप में सबसे पुरानी पुस्तक ' बीसलदेव रासो '   ही मिलती है।    चार खण्ड और 216 छंदों के इस ग्रंथ “ बीसलदेव रासौ ’’ के कथानक में बीसलदेव के अपनी रानी राजमती से रूठ कर उड़ीसा की ओर यात्रा करने जाने से रानी के विरह - वेदना तथा पुनः अजमेर आने का वर्णन किया गया है। इसमें श्रृंगार रस के साथ संयोग - वियोग का सुंदर वर्णन है।