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Showing posts with the label राजस्थान में पशुधन

Main breeds of Indian horses - जानिये भारतीय घोड़ों की मुख्य नस्लें

Main breeds of Indian horses - भारतीय अश्वों की मुख्य नस्लें 1. मारवाड़ी (मालानी) घोड़े - मारवाड़ी घोड़े का इस्तेमाल राजाओं के ज़माने में युद्ध के लिए किया जाता था। इसलिए कहा जाता है कि इन घोड़ों के शरीर में राजघराने का लहू दौड़ता है। मालानी नस्ल के घोड़े अपनी श्रेष्ठ गुणवता के कारण देश-विदेश मे पहचान बना चुके हैं और इनकी खरीद-फरोख्त के लिए लोग बाड़मेर जिले के तिलवाड़ा मेले में पहुँचते है। पोलो एवं रेसकोर्स के लिए इन घोड़ों की माँग लगातार बढ़ रही है। दौड़ते समय मालानी नस्ल के घोड़े के पिछले पैर, अपने पैरों की तुलना में, अधिक गतिशील होने के कारण अगले पैरों से टक्कर मारते हैं, जो इसकी चाल की खास पहचान है। इनके ऊँचे कान आपस में टकराने पर इनका आकर्षण बढ़ जाता हैं और ये घोड़े कानों के दोनों सिरों से सिक्का तक पकड़ लेते हैं। चाल व गति में बेमिसाल इन घोड़ों की सुन्दरता, ऊँचा कद, मजबूत कद-काठी देखते ही बनती हैं। राजस्थान में  घोड़े जोधपुर, बाड़मेर, झालावाड़, राजसमन्द, उदयपुर, पाली एवं उदयपुर आदि स्थानों में पाये जाते है। जन्म स्थान :   इस नस्ल के घोड़ों का जन्म स्थल राज

कामधेनू डेयरी योजना आवेदन की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर, 2018

कामधेनू डेयरी योजना  आवेदन की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर, 2018 जयपुर, 21 दिसम्बर। गोपालन विभाग द्वारा आर.के.वी.वाई- रफ्तार अन्तर्गत वर्ष 2018-19 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 10 कामधेनू डेयरी स्थापित की जानी है। जिसमें आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर, 2018 रखी गई है। गोपालन निदेशालय के निदेशक श्री विश्राम मीना ने बताया कि कामधेनू डेयरी स्थापित करने के इच्छुक पशुपालक, गोपालक एवं लघु सीमान्त कृषक जिनके पास डेयरी की आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए जगह के अतिरिक्त एक एकड़ स्वयं की जमीन हो, इसके लिए आवेदन कर सकते है। उन्होंने बताया कि कामधेनू योजना में एक ही नस्ल की 30 देशी (गीर,थारपारकर आदि) दुधारू नयी गाये क्रय करना आवश्यक है।  श्री मीना ने बताया कि आवेदक को पशुपालन या डेयरी का तीन से पांच वर्ष का अनुभव होना जरूरी है। तथा आवेदन के पास 50 रूपये प्रति लीटर दुग्ध क्रय करने की क्षमता होनी चाहिए।  उन्होंने बताया कि योजना में महिलाओं एवं अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लघु एवं सीमान्त कृषकों को प्राथमिकता दी जायेगी। योजना के विस्तृत दिशा-निर्देश एवं श

Region wise distribution of livestock in Rajasthan - राजस्थान में पशुधन का प्रादेशिक वितरण

राजस्थान में पशुधन का प्रादेशिक वितरण और उनके मुख्य क्षेत्र - राजस्थान में पशुओं की विभिन्न प्रजातियों के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रवास को देखते हुए राज्य के मानचित्र के आधार पर समस्त राज्य को 10 भागों में विभाजित किया गया है - १. प्रथम भाग - उत्तरी पश्चिमी (राठी) क्षेत्र-  यह क्षेत्र राज्य के उस पश्चिमी भाग में स्थित है, जहां मात्र 25 सेमी से भी कम वर्षा होती है। इस क्षेत्र में आने वाले जिले गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर हैं। यहां वनस्पति के रूप में यहां कटीली झाड़ियां व रेलोनुरूस हिरसूटस और पेकी अटर्जीज्म नामक घास पाई जाती है।   राठी गाय यहाँ  की प्रमुख नस्ल है।    २. द्वितीय भाग - पश्चिमी क्षेत्र (थारपारकर ) - यह क्षेत्र भी 25 सेमी वर्षा वाला भाग है।  इस क्षेत्र में आने वाले जिलों में जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर और पश्चिमी जोधपुर (शेरगढ़ और फलोदी तहसील) है।  यह राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है।  इस क्षेत्र की जलवायवीय विशेषता शुष्क तथा रेतीली है।   इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल बाजरा है।  थारपारकर नस्ल की गाय इस क्षेत्र की प्रमुख गाय है, जो

Sheep in Rajasthan - राजस्थान में भेड़ पशु संसाधन

1.  चोकला  भेड़ (Chokla Sheep) - अन्य नाम (Other names)- छापर, शेखावटी व राता मुंडा (Chhaper, Shekhawati and Raata Munda.) स्थान (Location)- नागौर, सीकर, चूरू (Nagaur, Sikar, Churu)   प्रजनन भूभाग ( Breeding Tract) -   चुरू, नागौर, सीकर और जिलों के संगम पर एक सीमित क्षेत्र।   A limited area at the juncture of Churu, Nagaur, and Sikar districts.   मुख्य उपयोगिता (Main Use) - ऊन व मांस Wool, Meat   उद्गम (Origin)-   शेखावटी और छापर का नाम इसके वितरण क्षेत्र शेखावटी व छापर के नाम से लिया गया है जबकि राता मुंडा 😡 नाम काले भूरे रंग के चेहरे आधार पर है।   (The name Shekhawati and Chhappar are derived from the name of its distribution area whereas Raata munda stands for dark brown coloured face.) रंग (Colour) -  इसका रंग श्वेत होता है। इसके चेहरे का रंग लाल (राता मुंडा) होता है और यह रंग गर्दन तक हो सकता है। (The coat colour is white. The face colour is dark brown (Raata Munda), and the colour may extend upto middle of neck.) सींग की आकृति

Bovine animals in Rajasthan राजस्थान में गौ-वंश - (राजस्थान में पशुधन)

राजस्थान में गौ-वंश राजस्थान के पशुपालन के क्षेत्र में गाय का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। राजस्थान की अर्थव्यवस्था में गौधन का महत्वपूर्ण स्थान है।  भारत की समस्त गौ वंश का लगभग 8 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। गौ वंश संख्या में भारत में प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश का है। राजस्थान राज्य का भारत में गौ-वंश संख्या में सातवाँ स्थान है। राज्य में कुल पशु-सम्पदा में गौ-वंश प्रतिशत 22.8 % है। संख्या में बकरी के पश्चात् गौवंश का स्थान दूसरा है। राजस्थान में अधिकतम गौवंश उदयपुर जिले में हैं जबकि न्यूनतम धौलपुर में हैं। गौशाला विकास कार्यक्रम की राज्य में शीर्ष संस्था राजस्थान गौशाला पिजंरापोल संघ, जयपुर है। बस्सी (जयपुर) में गौवंश संवर्धन फार्म स्थापित किया गया है। राज्य गौ सेवा आयोग, जयपुर की स्थापना 23 मार्च 1951 को की गई थी। गौ-संवर्धन के लिए दौसा व कोड़मदेसर (बीकानेर) में गौ सदन स्थापित किए गए हैं। राज्य में पशुगणना 2012 के अनुसार कुल गौधन संख्या 1,33,24,462 या लगभग 133.2 लाख (13.32 मिलियन) है।  अन्तर पशुगणना अवधि (2007-2012) के दौरान गौधन की संख्या में 9.94% की वृद्धि