वैभवशाली राजस्थान के गौरवपूर्ण अतीत में पानी को सहेजने की परम्परा का उदात्त स्वरुप यहाँ की झीलों , सागर-सरोवरों , कलात्मक बावड़ियों और जोहड़ आदि में परिलक्षित होता है। स्थापत्य कला में बेजोड़ ये ऐतिहासिक धरोहरें जहाँ एक ओर जनजीवन के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब भी है। राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे। आइए इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर डालें। मीरली या मीरवी- तालाब , बावड़ी , कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति। कीणिया- कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति। चेजारा- चुनाई करने वाला व्यक्ति। आइए राजस्थान की जल विरासत की झाँकी का अवलोकन करें! 1. जयसमंद झील (जिला- उदयपुर) उदयपुर से करीब 48 किमी दूर स्थित इस झील का निर्माण महाराणा जयसिंह ने 1685 ई. में गोमती नदी पर करवाया था। मिश्र की आसवान झील बनने के बाद यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील मानी जाती है। इस झील का दूसरा नाम ' ढेबर ' भी है। यह झील 36
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