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Showing posts with the label राजस्थान के प्राचीन मंदिर

जाने राजस्थान में कहाँ नहीं खेलते हैं धुलेंडी बल्कि मनाया जाता है डूडू महोत्सव

यहाँ नहीं खेलते हैं धुलेंडी बल्कि मनाते हैं डूडू महोत्सव यूँ तो होली के दूसरे दिन प्रत्येक गांव शहर में धुलेंडी के का उत्सव मनाया जाता है किंतु राजस्थान में सीकर जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां होली के दूसरे दिन धुलंडी नहीं बल्कि डूडू महोत्सव मनाया जाता है। ये है राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना में स्थित गणेश्वर गांव , जहां पर होली के दूसरे दिन डूडू महोत्सव मनाया जाता है। यहां यह माना जाता है कि विक्रम संवत 1444 में बाबा रायसल ने उजड़े हुए गांव गणेश्वर के रूप में बसाया था। इसी दिन बाबा रायसल महाराज का राजतिलक हुआ था। डूडू महोत्सव के दौरान मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें 25 गांवों के लोग भाग लेते है तथा रायसल महाराज की पूजा करते हैंं। यह परम्परा तकरीबन 500 सालो से चली आ रही है। होली के दूसरे दिन सुबह से ही ग्रामीण नए कपड़े पहन कर हाथों में तलवार व झॉकियाँ सजाकर रायसल महाराज के मंदिर पहुंचते है और उनकी ग्राम देवता के रूप में पूजा करते हैं। इसके बाद दोपहर को डूडू मेले का आयोजन होता है, जिसमें निशानेबाजी, ऊंट दौड़, कुश्ती, दंगल जैसी कई प्रतियोगिताएं होती है। पूर्णि

Sun temples of Rajasthan - राजस्थान के सूर्य मंदिर

हिन्दू देवमण्डल में सूर्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था। सूर्य को वैदिककाल से ही देवता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। सूर्य की कल्पना जगत के प्रकाश  के स्वामी के रूप में की गयी है। संभवतः सूर्य प्रकृति की उन शक्तियों में था, जिसे सर्वप्रथम देवत्व प्रदान किया गया। सूर्यदेव को हिन्दू धर्म के पंचदेवों में से प्रमुख देवता माना जाता है। सूर्यदेव की उपासना करने से ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि आदि प्राप्त होता है। भारत में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित रही है। विद्वानों के अनुसार आज जिस देवत्रयी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सम्मिलित किया जाता है, वस्तुतः किसी समय सूर्य, विष्णु और महेश को सम्मिलित किया जाता था। राजपूताना म्यूजियम अजमेर में दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं सदी की सूर्य प्रतिमाएं है। भरतपुर संग्रहालय में दसवीं-ग्यारहवीं सदी की दो सूर्य प्रतिमाएँ विद्यमान है। चौहान राजा उदयसिंहदेव के भीनमाल अभिलेख वि.सं. 1306 (1249 ई.) का आरम्भ ‘‘नमः सूर्याय’’ से हुआ है। इसी अभिलेख में जगत स्वामी (सूर्य) के मन्दिर में माथुर (कायस्थ) ठाकुर उदयसिंह के दो पुत्रों द्वारा चालीस द्र

बाडोली का मंदिर समूह-

बाडोली के मंदिरों का समूह राजस्थान के प्रमुख नगर कोटा से लगभग 50 किलोमीटर दूर दक्षिण में चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा से मात्र 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह स्थल चंबल तथा बामिनी नदी के संगम से मात्र पाँच किलोमीटर दूर है। बाडोली प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला की दृष्टि से राजस्थान का एक प्रसिद्ध स्थल है। यहाँ स्थित मन्दिर समूह का काल 8वीं से 11वीं शताब्दी तक का है। नवीं तथा दसवीं शताब्दी में यह स्थल शैव पूजा का एक प्रमुख केंद्र था, जिनमें शिव तथा शैव परिवार के अन्य देवताओं के मंदिर थे। यहाँ स्थित मन्दिर समूह में नौ मन्दिर हैं, जिनमें शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मन्दिर आदि प्रमुख हैं। बाडोली के 9 मंदिरों में से आठ दो समूहों में हैं। मंदिर संख्या 1-3 जलाशय के पास हैं एवं अन्य पाँच मंदिर इनसे कुछ दूर एक दीवार से घिरे अहाते में स्थित है जबकि एक अन्य मंदिर उत्तर-पूर्व में लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित हैं। इसके अलावा कुछ अन्य मंदिरों के अवशेष भी यहाँ विद्यमान हैं। यहाँ के इस मन्दिर समूह में शिव मन्दिर प्रमुख है, जो घटेश्वर शिवालय के नाम से

श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय शिवाड़

सवाईमाधोपुर जिले के शिवाड़ नामक स्थान पर स्थित शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शंकर के निवास के रूप में द्धादशवां एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग मानने पर हालाँकि कुछ विवाद है किन्तु यहाँ के लोगों के पास इसके पक्ष में कई प्रमाण भी है जिनसे वे इसे 12 ज्योतिर्लिंग सिद्ध करते हैं। यह शिवालय राज्य के सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल में स्थित है, जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे सं.12 पर बरोनी से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।  घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर कई वर्षो पुराना है। वर्षभर में लाखों लोग यहाँ आते है। देवगिरी पर्वत पर बना घुश्मेश्वर उद्यान रात के समय लाइटिंग में अदभुत छटा बिखेरता हैं। श्रद्धालुओं की मण्डली शिवरात्रि  [फाल्गुन महीने (फरवरी- मार्च)] एवं श्रावण मास के दौरान बहुत ही रंगीन नजर आती है। भगवान शिव के बहारवें (द्धादशवें) ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले वर्

Useful important fact about sumptuous sculptures of Rajasthan -- राजस्थान के वैभवशाली मूर्तिशिल्प से संबंधित उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य-

1.      राजस्थान में मूर्तिशिल्प का इतिहास आज से लगभग 4500 वर्ष पुराना है। 2.      कालीबंगा (हनुमानगढ़) से प्राप्त हड़़प्पाकालीन सांस्कृतिक पुरासामग्री में मिट्टी तथा धातु की लघु मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। 3.       कालीबंगा से प्राप्त ताम्र - निर्मित लघु आकार का वृषभ राजस्थान में प्राप्त धातु प्रतिमा का प्राचीनतम उदाहरण है। इसका आकार 7 से . मी . लंबा तथा 4 से . मी . चौड़ा है। इसका काल ईसा पूर्व 17 सदी माना गया है। 4.      कालान्तर में दूसरी शताब्दी ई. पू. की कई शुंगकालीन मूर्तियाँ नगर (टौंक) एवं रैढ़ (टौंक) से मिली हैं , जो लाल मिट्टी की पकाई हुई हैं। 5.      ब्रजमण्डल के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में होने के कारण प्रारम्भिक मूर्तिकला के उद्भव व विकास में पूर्वी राजस्थान (भरतपुर क्षेत्र) ने विशिष्ट भूमिका निभायी। इस युग की यक्ष-यक्षी की मूर्तियाँ भरतपुर संग्रहालय में सुरक्षित हैं। नोह (भरतपुर) से प्राप्त इस युग की यक्ष-यक्षी की मूर्तियाँ उल्लेखनीय है। 6.      नोह में जाखबाबा की विशालकाय प्रतिमा शुंगकालीन कला का प्रतिनिधित्व करती है तथा यह चतुर्