Skip to main content

Posts

Showing posts with the label मंदिर

Sun temples of Rajasthan - राजस्थान के सूर्य मंदिर

हिन्दू देवमण्डल में सूर्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था। सूर्य को वैदिककाल से ही देवता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। सूर्य की कल्पना जगत के प्रकाश  के स्वामी के रूप में की गयी है। संभवतः सूर्य प्रकृति की उन शक्तियों में था, जिसे सर्वप्रथम देवत्व प्रदान किया गया। सूर्यदेव को हिन्दू धर्म के पंचदेवों में से प्रमुख देवता माना जाता है। सूर्यदेव की उपासना करने से ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि आदि प्राप्त होता है। भारत में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित रही है। विद्वानों के अनुसार आज जिस देवत्रयी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सम्मिलित किया जाता है, वस्तुतः किसी समय सूर्य, विष्णु और महेश को सम्मिलित किया जाता था। राजपूताना म्यूजियम अजमेर में दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं सदी की सूर्य प्रतिमाएं है। भरतपुर संग्रहालय में दसवीं-ग्यारहवीं सदी की दो सूर्य प्रतिमाएँ विद्यमान है। चौहान राजा उदयसिंहदेव के भीनमाल अभिलेख वि.सं. 1306 (1249 ई.) का आरम्भ ‘‘नमः सूर्याय’’ से हुआ है। इसी अभिलेख में जगत स्वामी (सूर्य) के मन्दिर में माथुर (कायस्थ) ठाकुर उदयसिंह के दो पुत्रों द्वारा चालीस द्र

बाडोली का मंदिर समूह-

बाडोली के मंदिरों का समूह राजस्थान के प्रमुख नगर कोटा से लगभग 50 किलोमीटर दूर दक्षिण में चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा से मात्र 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह स्थल चंबल तथा बामिनी नदी के संगम से मात्र पाँच किलोमीटर दूर है। बाडोली प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला की दृष्टि से राजस्थान का एक प्रसिद्ध स्थल है। यहाँ स्थित मन्दिर समूह का काल 8वीं से 11वीं शताब्दी तक का है। नवीं तथा दसवीं शताब्दी में यह स्थल शैव पूजा का एक प्रमुख केंद्र था, जिनमें शिव तथा शैव परिवार के अन्य देवताओं के मंदिर थे। यहाँ स्थित मन्दिर समूह में नौ मन्दिर हैं, जिनमें शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मन्दिर आदि प्रमुख हैं। बाडोली के 9 मंदिरों में से आठ दो समूहों में हैं। मंदिर संख्या 1-3 जलाशय के पास हैं एवं अन्य पाँच मंदिर इनसे कुछ दूर एक दीवार से घिरे अहाते में स्थित है जबकि एक अन्य मंदिर उत्तर-पूर्व में लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित हैं। इसके अलावा कुछ अन्य मंदिरों के अवशेष भी यहाँ विद्यमान हैं। यहाँ के इस मन्दिर समूह में शिव मन्दिर प्रमुख है, जो घटेश्वर शिवालय के नाम से

राजस्थान का खजुराहो है जगत का अंबिका मंदिर

राजस्थान के खजुराहो के नाम से विख्यात स्थापत्य कला व शिल्प कला अनुपम उदाहरण जगत का अंबिका मंदिर उदयपुर से करीब 58 किलोमीटर दूर अरावली की पहाडियों के बीच 'जगत गाँव' में स्थित है। मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्रृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का यह अंबिका मंदिर मेवाड़ की प्राचीन उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना है। इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान 5 वीं व 6 ठीं शताब्दी में शिव शक्ति सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा था। इसका निर्माण खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर से पूर्व लगभग 960 ई. के आस पास माना जाता है। मंदिर के स्तम्भों के लेखों से पता चलता है कि 11वीं सदी में मेवाड़ के शासक अल्लट ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रधान पीठिका पर मातेश्वरी अम्बिका की प्रतिमा स्थापित है। राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का चमकता मोती यह अंबिका मंदिर आकर्षक अद्वितीय स्थापत्य व मूर्तिशिल्प के कलाकोष को समेटे हुए है। प्रणयभाव में युगल, अंगडाई लेती व दर्पण निहारती नायिका, क्रीड़ारत शि