अपनी लोक संस्कृति एवं परम्पराओं के लिए सुविख्यात राजस्थान के दक्षिण में स्थित जनजाति बहुल जिला डूंगरपुर अब जनजाति महाकुंभ कहे जाने वाले बेणेश्वर मेले से भी विश्व पर्यटन मानचित्र पर पहचान बनाने लगा है। साबला के निकट डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा जिले की सीमा रेखा पर अवस्थित वागड प्रयाग के नाम से सुविख्यात आस्था, तप एवं श्रद्धा के प्रतीक बेणेश्वर धाम पर प्रतिवर्ष बांसती बयार के बीच आध्यात्मिक एवं लोक संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। सोम-माही-जाखम के मुहाने पर अवस्थित ‘बेणेका टापू’ लोक संत मावजी महाराज की तपोस्थली है। श्रद्धा व संस्कृति के इस संगम मेले में राजस्थान के साथ ही पूरे देशभर व पड़ौसी राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र से भी लाखों श्रद्धालु पहुंचते है। वैसे तो यह मेला ध्वजा चढ़ने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है परंतु ग्यारस से माघ पूर्णिमा तक लगने वाले मुख्य मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। मेले में तीन दिन तक जिला प्रशासन, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग एवं पर्यटन विभाग के द्वारा संयुक्त तत्वाधान में विभिन्न सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार
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