मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। घुड़ला एक छिद्र किया हुआ मिट्टी का घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखा होता है। इसके तहत लड़कियाँ 10-15 के झुंड में चलती है। इसके लिए वे सबसे पहले कुम्हार के यहां जाकर घुड़ला और चिड़कली खरीद कर लाती हैं, फिर इसमें कील से छोटे-छोटे छेद करती हैं और इसमें दीपक जला कर रखती है।
इस त्यौहार में गाँव या शहर की लड़कियाँ शाम के समय एकत्रित होकर सिर पर घुड़ला लेकर समूह में मोहल्ले में घूमती है। घुड़ले को मोहल्लें में घुमाने के बाद बालिकाएँ एवं महिलाएँ अपने परिचितों एवं रिश्तेदारों के यहाँ घुड़ला लेकर जाती है। घुड़ला लिए बालिकाएँ घुड़ला व गवर के मंगल लोकगीत गाती हुई सुख व समृद्धि की कामना करती है।
जिस घर पर भी वे जाती है, उस घर की महिलाएँ घुड़ला लेकर आई बालिकाओं का अतिथि की तरह स्वागत सत्कार करती हैं। साथ ही माटी के घुड़ले के अंदर जल रहे दीपक के दर्शन करके सभी कष्टों को दूर करने तथा घर में सुख शांति बनाए रखने की मंगल कामना व प्रार्थना करते हुए घुड़ले पर चढ़ावा चढ़ाती हैं।
घुड़ले के शहर व गाँवों में घूमने का सिलसिला शीतला सप्तमी से चैत्र नवरात्रि के तीज पर आने वाली गणगौर तक चलता है। इस दिन गवर को घुड़ले के साथ विदाई दी जाती है।
इन दिनों कई लड़कियों द्वारा परंपरा के अनुरूप गणगौर का उपवास भी रखा जाता है।
घुड़ला नृत्य है अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
घुड़ला लेकर घूमर एवं पणिहारी अंदाज किया जाने वाला घुड़ला नृत्य आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस नृत्य को प्रोत्साहित करने और इसके विकास कर इसे राष्ट्रीय स्तर का मंच प्रदान करने में जयपुर के कलाविद् मणि गांगुली, लोक कला मंडल उदयपुर के संस्थापक देवीलाल सामर तथा जोधपुर स्थित राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व सचिव पद्मश्री कोमल कोठारी (संस्थापक रूपायन संस्थान बोरून्दा, जोधपुर) का महत्वपूर्ण योगदान है जिससे यह राजस्थानी कला आमजन एवं देश विदेश में लोकप्रिय बनी।
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मारवाड़ का घुड़ला त्यौहार
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What is the history behind the Gudla festival
ReplyDeleteघुड़ले.खा नामक मुस्लिम सेनापति मेड़ता मे तीज त्यौहार खेल रही बहीनो को.उठा कर ले गया इस समय सीवाणा के सातलदेव चौहान जोधपुर थे ओर वो घुड़ले खाँ के पिछे गये उसे मार कर सर जोधपुर शहर मे घुमाया उसी दिन से ये त्यौहार मनाया जाने लगा,,आज भी घुड़ले खाँ के सर के प्रतिक के रुप मे छोटी मटकी मे छीद्र करके उसमे दिया रखकर बालिकाये घुमती है।खुशी के गीत गाती हैं
DeletePlease check history - http://www.desicnn.com/news/ghudla-festival-in-rajasthan-is-a-classic-example-of-history-distortion-and-hindu-brainwash
ReplyDeleteGhudla khan was a Afghan traitor who abducted the 140 girls from marwar region and was saved by Rao Saatal Singh of Marwar. Ghudla khan was beheaded and his head was carried out to those girls and they marched through it as a symbol of their untarnished honour. So the ghudla pot is the head of that Afghan and the festival acknowledgea the long dead king Rao Saatal.
ReplyDeleteThanx for information ...priyansh
DeleteRao saatal or rao jodha?
ReplyDeleteSatal dev
ReplyDeleteSon of jodhaa and jasama de
घुड़ला खान को कब और कहां मारा था
ReplyDeleteऔर युद्ध सातलदेव ने लड़ा या जोधा ने लड़ा था plz inform me