Skip to main content

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड

राजस्थान में शक्ति विकास सन् 1949 में प्रारंभ हुआ। उस समय विद्युत शक्ति केवल बहुत कम शहरों तक ही सीमित थी तथा विद्युत को लक्जरी वस्तु माना जाता था। उस समय कुल 42 से अधिक शहर और गाँव विद्युतीकृत नहीं थे तथा स्थापित उत्पादन क्षमता केवल 13.27 MW थी। राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड का गठन 1 जुलाई 1957 को होने के पश्चात राज्य में विद्युत उत्पादन के प्रयास तेज हुए। राज्य सरकार द्वारा किए गए पावर रिफॉर्म्स के तहत
राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड RESB को जुलाई 2000 में निम्नलिखित पाँच कंपनियों में बाँट दिया गया-


1. राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RVUN)

2. राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (RVPN)

3. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (AVVNL)

4. जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (JVVNL)

5. जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (JDVVNL)



राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड-

इस निगम को निम्नलिखित कार्य सौंपा गया-

>राज्य में शक्ति उत्पादन संयंत्रों का विकास, उनका संचालन और रखरखाव करना।

राज्य सरकार द्वारा राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की स्थापना 19 जुलाई 2000 को कंपनी एक्ट 1956 के अधीन की गई। तभी से यह निगम राज्य में शक्ति उत्पादन को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इसके शक्ति संयंत्रों ने प्रभावी और सस्ती विद्युत उत्पादन में पूरे देश में एक भिन्न प्रतिष्ठा अर्जित की है। RVUN का शक्ति उत्पादन प्रोजेक्ट को नियत समय पर पूर्ण करने का रिकॉर्ड भी अच्छा है।

>*. RVUNL की वर्तमान स्थापित उत्पादन क्षमता 4097.35 MW है।

>*. RVUN के वर्ष 2011 - 12 तक पूर्ण होने वाले वर्तमान संचालित प्रोजेक्ट निम्न है-

{ प्रोजेक्ट यूनिट का नाम, क्षमता, पूर्ण होने का प्रस्तावित समय }

1. कालीसिंध टी पी एस यूनिट -1
600 MW
दिसम्बर 2011

2. कालीसिंध टी पी एस यूनिट -2
600 MW
मार्च 2012

3. छबड़ा टी पी एस यूनिट फेज- 2 (यूनिट - 3)
250 MW
नवम्बर 2011

4. छबड़ा टी पी एस यूनिट फेज- 2 (यूनिट - 4)
250 MW
दिसम्बर 2011

5. रामगढ़ विस्तार प्रोजेक्ट GT
110 MW
नवम्बर 2011

6. रामगढ़ विस्तार प्रोजेक्ट ST
50 MW
फरवरी 2012


इन सभी का कुल विद्युत उत्पादन लक्ष्य
1860 MW है।

> इसके अध्यक्ष एवं एम डी डॉ. एस. के. कल्ला हैं।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली