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चतुर्थ राज्य वित्त आयोग एवं उसके कार्य

चतुर्थ राज्य वित्त आयोग का संगठन- अध्यक्ष - डॉ. बी. डी. कल्ला सदस्य- राजपाल सिंह शेखावत एवं जे. पी. चन्देलिया सदस्य सचिव- डॉ. पी. एल. अग्रवाल कार्यकाल- 31 दिसम्बर, 2011 तक प्रमुख कार्य- > सभी स्तरों पर पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन। > राज्य के और सभी स्तरों की पंचायतों के मध्य, राज्य द्वारा उद्ग्रहणीय ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के शुद्ध आगमों का वितरण, ऐसे आगमों के सभी स्तरों की पंचायतों के मध्य उनके अपने अपने अंशों का आवंटन के विषय सहित ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों का अवधारण जो सभी स्तरों पर की पंचायतों को समनुदेशित किए जा सकेंगे या उनके द्वारा विनियोजित किए जा सकेंगे। > राज्य की संचित निधि में से सभी स्तरों पर की पंचायतों को सहायता, अनुदान तथा पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए आवश्यक उपाय सम्बन्धी विषयों पर सिफारिश करना। > नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का भी पुनरावलोकन करना। > राज्य के और नगरपालिकाओं के मध्य, राज्य द्वारा उद्ग्रहणीय ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के शुद्ध आगमों का वितरण। > ऐसे आगमों के स

राजस्थान समसामयिक सामान्य ज्ञान-

राजस्थान की सौर ऊर्जा नीति को स्वीकृत

राजस्थान देश का वह प्रथम राज्य है, जहाँ सौर ऊर्जा नीति लागू की गई है। राज्य में सौर ऊर्जा के उत्पादन एवं उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में दिनांक 13 अप्रैल को इस सौर ऊर्जा नीति को स्वीकृति प्रदान की गई। >इस नीति से राज्य के ऊर्जा के क्षेत्र में बाहरी कंपनियों के लिए निवेश के रास्ते खुलेंगे। >बैठक के बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने बताया कि सौर ऊर्जा नीति में पारदर्शिता को प्राथमिकता दी गई है। > केंद्र सरकार ने भी जवाहर लाल नेहरू सौर ऊर्जा मिशन के प्रथम चरण के लक्ष्य 825 मेगावाट में अकेले राजस्थान में 589 मेगावाट के संयंत्र लगाने का प्रावधान किया गया है। > इसके द्वितीय चरण में 300 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र को मंजूरी मिल सकती है। >राज्य में 700 मेगावाट के प्लांट पहले से ही प्रक्रियाधीन है, जिसमें एक-एक मेगावाट के लघु संयंत्र भी सम्मिलित हैं। >देश का 5 मेगावाट का प्रथम संयंत्र नागौर जिले के खींवसर में प्रारंभ हुआ। > देश में सौर ऊर्जा उत्पादन की सर्वाधिक संभावना राजस्थान में है। >इस नीति

राजस्थान सामान्य ज्ञान-
मारवाड़ का घुड़ला त्यौहार


मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। घुड़ला एक छिद्र किया हुआ मिट्टी का घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखा होता है। इसके तहत लड़कियाँ 10-15 के झुंड में चलती है। इसके लिए वे सबसे पहले कुम्हार के यहां जाकर घुड़ला और चिड़कली खरीद कर लाती हैं, फिर इसमें कील से छोटे-छोटे छेद करती हैं और इसमें दीपक जला कर रखती है। इस त्यौहार में गाँव या शहर की लड़कियाँ शाम के समय एकत्रित होकर सिर पर घुड़ला लेकर समूह में मोहल्ले में घूमती है। घुड़ले को मोहल्लें में घुमाने के बाद बालिकाएँ एवं महिलाएँ अपने परिचितों एवं रिश्तेदारों के यहाँ घुड़ला लेकर जाती है। घुड़ला लिए बालिकाएँ घुड़ला व गवर के मंगल लोकगीत गाती हुई सुख व समृद्धि की कामना करती है। जिस घर पर भी वे जाती है, उस घर की महिलाएँ घुड़ला लेकर आई बालिकाओं का अतिथि की तरह स्वागत सत्कार करती हैं। साथ ही माटी के घुड़ले के अंदर जल रहे दीपक के दर्शन करके सभी कष्टों को दूर करने तथा घर में सुख शांति

राजस्थान समसामयिक सामान्य ज्ञान

राजस्थान में वाइफरेकशन डबल किसिंग टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी फ्रांस की कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. एम. सी. मोरिस ने जयपुर के चिकित्सकों की टीम के साथ राजस्थान के चिकित्सा इतिहास में प्रथम बार वाइफरेकशन डबल किसिंग टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी की। कॉम्प्लेक्स कॉरोनरी एंजियोप्लास्टी पर दिनांक 9 अप्रैल से शुरू हुई चौथी कांफ्रेंस में यह एंजियोप्लास्टी की गई। इस तकनीक में धमनी और इसकी ब्रांच में एक साथ बैलून डाले गए। इसकी सफलता दर काफी अच्छी होने से अब हृदय रोगियों का उपचार इस नई तकनीक से किया जा सकेगा। जयपुर हार्ट इंस्टीट्यूट में की गई इस सर्जरी का लाइव टेलिकास्ट एस. एम. एस. अस्पताल के कन्वेशन सेंटर में किया गया। अभी हाल में जिस टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी हो रही है उसकी तुलना में यह पांच से दस प्रतिशत महंगी है लेकिन इसमें अभी तक ज्यादा सफलता मिल रही है। इसके अलावा इस कांफ्रेंस में हृदय आघात को लेकर सिम्पोजियम भी हुई। चिकित्सकों के अनुसार विदेशों में जीवन शैली और भोजन में बदलाव करते हुए व्यायाम करने पर जोर देने के कारण विदेशों में हृदय आघात में कमी आ रही है। वहीं भारत में इनमें तेजी से वृद्धि

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड

राजस्थान में शक्ति विकास सन् 1949 में प्रारंभ हुआ। उस समय विद्युत शक्ति केवल बहुत कम शहरों तक ही सीमित थी तथा विद्युत को लक्जरी वस्तु माना जाता था। उस समय कुल 42 से अधिक शहर और गाँव विद्युतीकृत नहीं थे तथा स्थापित उत्पादन क्षमता केवल 13.27 MW थी। राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड का गठन 1 जुलाई 1957 को होने के पश्चात राज्य में विद्युत उत्पादन के प्रयास तेज हुए। राज्य सरकार द्वारा किए गए पावर रिफॉर्म्स के तहत राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड RESB को जुलाई 2000 में निम्नलिखित पाँच कंपनियों में बाँट दिया गया- 1. राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RVUN) 2. राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (RVPN) 3. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (AVVNL) 4. जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (JVVNL) 5. जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (JDVVNL) राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड- इस निगम को निम्नलिखित कार्य सौंपा गया- >राज्य में शक्ति उत्पादन संयंत्रों का विकास, उनका संचालन और रखरखाव करना। राज्य सरकार द्वारा राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की स्थापना 1

आर. एस. एम. एम. एल. - राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स लिमिटेड

स्थापना- राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स लिमिटेड (RSMML) राजस्थान सरकार के अग्रणी व विकासशील उपक्रमों में से एक उपक्रम है। इसका मुख्यालय उदयपुर में है। इसकी स्थापना उदयपुर जिले के झामर कोटडा क्षेत्र से रॉक फॉस्फेट के खनन के लिए की गई थी। झामर कोटडा खान का विस्तार लगभग 26 किमी तक है जिसमें करीब 740 लाख टन रॉक फॉस्फेट होने का अनुमान है। उद्देश्य-  इसकी स्थापना का प्रारंभिक उद्देश्य उदयपुर जिले के झामर कोटडा क्षेत्र से रॉक फॉस्फेट के खनन के लिए था किन्तु प्रमुख उद्देश्य न्यून लागत वाले तकनीकी नवाचारों का विकास करना है। इसके साथ ही खनिज आधारित प्रायोजनाओं को विकसित करना भी इसका एक उद्देश्य है। इसके अलावा ''लिग्नाइट आधारित ताप विद्युत् संयंत्रों'' को ईंधन के रूप में लिग्नाइट उपलब्ध कराना और जैसलमेर में पवन ऊर्जा फार्म्स की स्थापना करना है।  RSMML द्वारा खनन कार्य- RSMML उपक्रम ने अधात्विक खनिजों के उत्पादन एवं विपणन में देश में सम्मानजनक स्थान अर्जित किया है। RSMML बहुखनिज उत्खनन प्रतिष्ठान है जो विभिन्न स्थानों पर रॉक फॉस्फेट, लिग्नाइट कोयला, SMS ग्रेड लाईम

गोविन्द गिरि की संप सभा और 'राजस्थान का जलियांवाला बाग' मानगढ़ नरसंहार

गोविन्द गिरि का भगत आंदोलन- राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, दक्षिणी मेवाड़, सिरोही तथा गुजरात व मालवा के मध्य पर्वतीय अंचलों की आबादी प्रमुखतया भीलों और मीणा आदिवासियों की है। इन आदिवासियों में चेतना जागृत करने एवं उन्हें संगठित करने का बीड़ा डूंगरपुर से 23 मील दूर बांसिया गाँव में 20 दिसम्बर 1858 को जन्मे बणजारा जाति के गोविंद गुरु ने उठाया था। बताया जाता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती के उदयपुर प्रवास के दौरान गोविन्द गुरू उनके सानिध्य में रहे थे तथा उनसे प्रेरित होकर गोविन्द गुरू ने अपना सम्पूर्ण जीवन सामाजिक कुरीतियों, दमन व शोषण से जूझ रहे जनजातीय समाज को उबारने में लगाया था। गोविन्द गुरु ने आदिवासियों को संगठित करने के लिए 1883 में संप-सभा की स्थापना की जिसका प्रथम अधिवेशन 1903 में हुआ । गोविन्द गुरु के अनुयायियों को भगत कहा जाने लगा , इसीलिए इसे भगत आन्दोलन कहते हैं। संप का अर्थ है एकजुटता, प्रेम और भाईचारा। संप सभा का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार था। उनकी शिक्षाएं थी - रोजाना स्नानादि करो, यज्ञ एवं हवन करो, शराब मत पीओ, मांस मत खाओ, चोरी लूटपाट मत करो, खेती