HOW TO DO MODERN FARMING OF GROUNDNUT -
कैसे करें मूंगफली की आधुनिक खेती
भारत में की जाने वाली तिलहनी फसलों की खेती में सरसों, तिल, सोयाबीन व मूँगफली आदि प्रमुख हैं। मूँगफली पडौसी राज्य गुजरात के साथ-साथ राजस्थान की भी एक प्रमुख तिलहनी फसल हैं। यह गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक
उगाई जाती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा
पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है।
मूँगफली (peanut, या groundnut) का वानस्पतिक नाम ऐराकिस हाय्पोजिया (Arachis hypogaea) है।
मूंगफली एक ऐसी फसल है जो लेग्युमिनेसी कुल की होते हुए भी तिलहनी के रूप में अधिक उपयोगिता रखती है। लेग्युमिनेसी कुल का पौधा होने के कारण मूंगफली की खेती करने से भूमि
की उर्वरता भी बढ़ती है।
मूंगफली की आधुनिक खेती करने से भूमि की उर्वरता
बढ़ने से भूमि का सुधार होगा और इसके साथ साथ किसान की आर्थिक स्थिति भी
सुदृढ होती है।
राजस्थान में बीकानेर जिले के लूणकरनसर में अच्छी किस्म की मूँगफली का अच्छा उत्पादन होता है, इस कारण लूणकरनसर को 'राजस्थान का राजकोट' कहा जाता हैं।
मूंगफली का प्रयोग तेल उत्पादन में, कपडा उद्योग में तथा बटर बनाने मे किया जाता
है जिससे किसान अपनी आर्थिक स्थिति मे भी सुधार कर सकते है।
मूँगफली वानस्पतिक प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत हैं। इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में 1.3 गुना, अण्डों से 2.5 गुना एवं फलों से 8 गुना अधिक होती है।
100 ग्राम कच्ची मूँगफली में 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है।
मूँगफली में 48-50 % वसा और 22-28 % प्रोटीन तथा 26% तेल पाया जाता हैं।
मूँगफली की खेती 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है।
- 50.9 g fat
- 23.2 g protein
- 21.7 g total carbohydrate
- 3.2 g fiber
- 1.8 g moisture
मूंगफली की आधुनिक खेती के लिए ध्यान रखने योग्य बातें -
बीज की मात्रा-
मूंगफली की बुवाई हेतु बीज की मात्रा 70-80 किग्रा/हेक्टेयर रखना चाहिए किन्तु यदि आप मूंगफली की बुवाई कुछ देरी से करना चाहते हैं तो बीज की मात्रा को 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ा लेना चाहिए।
बीज उपचार -
बुवाई से पूर्व बीज को थाईरम 2 ग्राम और काबेंडाजिम 50%
धुलन चूर्ण के मिश्रण को 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना
चाहिए। इस उपचार के बाद (लगभग 5-6 घन्टे ) अर्थात बुवाई से पहले मूंगफली के
बीज को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिए। ऐसा करने के लिए
राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट 10 किलो बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त
होता है ।
कल्चर को बीज में मिलाने के लिए आधा लीटर पानी में 50
ग्राम गुड़ घोलकर इसमें 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर का पूरा पैकेट मिलाना चाहिए तथा
इस मिश्रण को 10 किलो बीज के ऊपर छिड़क कर हल्के हाथ से मिलाना चाहिए, ताकि बीज
के ऊपर एक हल्की परत बन जाए।
इस बीज को छाया में 2-3 घंटे सूखने के
लिए रखना चाहिए। बुवाई प्रात: 10 बजे से पहले या शाम को 4 बजे के बाद करनी चाहिए।
जिस खेत में पहले मूंगफली की खेती नहीं की गई हो, उस खेत मे मूंगफली की
बुवाई से पूर्व बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने से लाभ
होता है।
बुवाई -
मूंगफली की खेती के लिये अच्छे जल निकास
वाली, भुरभुरी दोमट व बलुई दोमट भूमि उत्तम होती है। भूमि की तैयारी के लिए
खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके एवं उसके पश्चात कल्टीवेटर से
दो जुताई करके खेत को पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए। जमीन में दीमक व
विभिन्न प्रकार के कीड़ों से फसल के बचाव हेतु क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत 25
कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से अंतिम जुताई के साथ भूमि में मिला देना
चाहिए।
मूंगफली की बुवाई का समय जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के आखरी पखवाड़े तक होता है। फसल पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए।
मूंगफली की उन्नत किस्में -
मूंगफली की टी.जी.-37, एच.एन.जी.-10, चन्द्रा, टी.बी.जी.-39, एम-13 व मल्लिका आदि अधिक उपज देने वाली किस्में है । एक बीघा में एच.एन.जी.-10 का 20 किग्रा बीज (गुली) का प्रयोग करना चाहिए। एम-13, चन्द्रा तथा मल्लिका आदि किस्मों के लिये 15 किग्रा बीज का प्रयोग करें। बुवाई के 15 दिन से पहले गुली नहीं निकालनी चाहिए।
उर्वरक -
मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फसल को प्रति हेक्टेयर 20 किलो नत्रजन, 30 किलो फास्फोरस, 45 किलो पोटाश, 200 किलो जिप्सम एवं 4 किलो बोरेक्स का प्रयोग करना चाहिए।
फास्फोरस की मात्रा की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की समस्त मात्रा एवं जिप्सम की आधी मात्रा बुवाई के समय देना चाहिए।
जिप्सम की शेष आधी मात्रा एवं बोरेक्स की समस्त मात्रा को बुवाई के लगभग 22-23 दिन बाद देना चाहिए।
नीम की खल का प्रयोग-
नीम की खल के प्रयोग से मूंगफली के उत्पादन में अच्छा प्रभाव पड़ता है। अंतिम जुताई के समय 400 कि.ग्रा. नीम खल प्रति हैक्टर के हिसाब से देना चाहिए। नीम की खल से दीमक का नियंत्रण हो जाता है तथा पौधों को नत्रजन तत्वों की पूर्ति हो जाती है। नीम की खल के प्रयोग से 16 से 18 प्रतिशत तक की उपज में वृद्धि, तथा दाना मोटा होने के कारण तेल प्रतिशत में भी वृद्धि हो जाती है। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों में अधिक उत्पादन के लिए जिप्सम भी प्रयोग में लेते हैं।
मूंगफली की खेती में सिंचाई -
मूंगफली की फसल में मुख्यतया कम सिंचाई की आवश्यकता होती है और वर्षा का जल पर्याप्त होता है, किन्तु यदि वर्षा न हो तो दो सिंचाई करनी चाहिए जो पेगिंग (सुईयां) बनते समय तथा फली बनते समय करनी चाहिए। मूंगफली में सुईयां लगभग 51 दिन बाद बनना शुरू होती हैं।
निराई, गुड़ाई व खरपतवार का नियंत्रण -
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण का इस फसल के उत्पादन में बड़ा ही महत्त्व है। मूंगफली के पौधे छोटे होते हैं। अतः वर्षा के मौसम में सामान्य रूप से खरपतवार से ढक जाते हैं। ये खरपतवार पौधों को बढ़ने नहीं देते। खरपतवारों से बचने के लिये कम से कम दो बार निराई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है।
मूंगफली की फसल में पहली निराई–गुड़ाई बुवाई के लगभग 15-20 दिन बाद तथा दूसरी 30-35 दिन के बाद करनी चाहिए। पेगिंग की अवस्था मे निराई–गुड़ाई नहीं करनी चाहिए।
रासायनिक विधि से खरपतवार की रोकथाम के लिए एक हैक्टेयर के लिए एलाक्लोर 50 ई.सी. की 4 लीटर दवा को 700-800 लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव बुवाई के 3-4 दिन बाद करना चाहिए।
जिन खेतों में खरपतवारों की ज्यादा
समस्या हो तो बुवाई के 2 दिन बाद तक पेन्डीमेथालिन नामक खरपतवारनाशी की 3
लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिड़काव कर देना
चाहिए।
मूंगफली की खुदाई एवं भंडारण -
मूंगफली की खुदाई तभी करनी चाहिए जब मूंगफली के छिलकों के ऊपर नसें उभर आये तथा भीतरी भाग कत्थई रंग का हो जाए। खुदाई के बाद फलियों को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करना चाहिए क्योंकि यदि गीली मूंगफली का भंडारण किया जाएगा तो फफूंद लग जाने के कारण मूंगफली काले रंग की हो जाएगी तथा वो खाने एवं बीज हेतु अनुप्रयुक्त हो जाएगी।
मूंगफली की कृषि में कीट प्रबंधन -
मूंगफली में सफेद गीडार, दीमक, हेयरी कैटरपिलर आदि मुख्य कीट लग सकते हैं जो फसल को काफी नुकसान पहुँचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए हमें निम्नांकित उपाय करना चाहिये।
मूंगफली में सफेद गीडार की रोकथाम -
इस किट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफोस 0.05% का छिडकाव मानसून के प्रारम्भ होते ही करना चाहिए। बुवाई के 3-4 घंटे पूर्व क्यूनालफोस 25 ई.सी. 25 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करके बुवाई करना चाहिए। खड़ी फसल में क्युनालफोस रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयुक्त करना चाहिए ।
मूंगफली में दीमक से बचाव -
दीमक की रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफास रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
मूंगफली में हेयरी कैटरपिलर से रक्षा -
हेयरी कैटरपिलर कीट का प्रकोप लगभग 40-45 दिन बाद दिखाई पड़ता है, इस कीट की रोकथाम के लिए डाईक्लोरवास 76% ई.सी. दवा एक लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पर्णीय छिड़काव करना चाहिए।
मूंगफली की फसल में रोगों की रोकथाम-
मूंगफली में कॉलर रोट, बड नेक्रोसिस तथा टिक्का रोग प्रमुख रोग है। इनकी रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए -
कॉलर रोट -
बीजाई के बाद सबसे ज्यादा नुकसान कॉलर रोट व जड़गलन द्वारा होता हैं। इस रोग से पौधे का निचला हिस्सा काला हो जाता है व बाद में पौधा सूख जाता है। सूखे भाग पर काली फफूंद दिखाई देती है। इसकी रोकथाम के लिये बुवाई से 15 दिन पहले 1 किग्रा ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति बीघा की दर से 50-100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर दें व बुवाई के समय भूमि में मिला दें। बुवाई के समय 10 ग्राम ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके खुला छोड़ने से भी इस रोग प्रकोप कम होता है। खड़ी फसल में जड़गलन की रोकथाम के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रेंच करना चाहिए।
पीलिया रोग -
इस रोग में वर्षा प्रारंभ होते समय फसल पीली होने लगती है व देखते ही देखते सम्पूर्ण खेत पीला हो जाता है। यह रोग लौह तत्व की कमी से होता है। इसकी रोकथाम के लिये 75 ग्राम फेरस सल्फेट व 15 ग्राम साइट्रिक अम्ल प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
बड नेक्रोसिस -
इस रोग की रोकथाम के लिए जून के चौथे सप्ताह से पूर्व बुवाई ना करें। फिर भी अगर इस रोग का प्रकोप खेत में हो जाता है तो रसायन डाईमेथोएट 30 ई.सी. दवा का एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
मूंगफली का टिक्का रोग -
इस रोग के प्रकोप में पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए खड़ी फसल में मैंकोज़ेब 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर में 2-3 छिड्काव करना लाभकारी होता है।
रोजेट रोग-
रोजेट (गुच्छरोग) मूंगफली का एक विषाणु (वाइरस) जनित रोग है इसके प्रभाव से पौधे अति बौने रह जाते हैं और पत्तियों में ऊतकों का रंग पीला पड़ना प्रारम्भ हो जाता है। यह रोग सामान्य रूप से विषाणु फैलाने वाली माहूँ से फैलता है, अतः इस रोग को फैलने से रोकने के लिए पौधों को जैसे ही खेत में दिखाई दें, उखाड़कर फेंक देना चाहिए। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 3 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए।
Rajasthan Police Constable Exam Dates
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