1. इतिहास जानने के सबसे प्रमाणिक स्रोत होते हैं-
(अ) यशोगाथा
(ब) स्मारक
(स) पुरातात्विक स्रोत
(द) साहित्य
उत्तर- (स)
2. राजस्थान का गजेटियर कहा जाता है-
(अ) पद्मावत
(ब) मारवाड़ रा परगना री विगत
(स) पद्मावत
(द) पृथ्वीराज रासौ
उत्तर - (ब)
3. ‘अचलदास खींची री वचनिका’ के लेखक थे-
(अ) चारण वीरभान
(ब) चारण शिवदास
(स) खिड़िया जग्गा
(द) मुण्होत नैणसी
उत्तर -(ब)
4. जिन शिलालेखों में शासकों की यशोगाथा होती हैं, उसे कहते हैं-
(अ) ताम्रपत्र
(ब) स्मारक
(स) प्रशंसा
(द) प्रशस्ति
उत्तर -(द)
5. ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ के लेखक हैं-
(अ) दयालदास
(ब) बांकीदास
(स) मुण्होत नैणसी
(द) मुकुन्ददास
उत्तर - (स)
6. मुण्डीयार री ख्यात का विषय हैं-
(अ) मारवाड़ के राठौड़
(ब) कोटा के हाड़ा
(स) सिसोदिया
(द) कछवाहा
उत्तर -(अ)
7. राज प्रशस्ति के लेखक कौन था ?
(अ) बांकीदास
(ब) विद्याधर
(स) मण्डन
(द) रणछोड़ भट्ट
उत्तर -(द)
8. अशोक कालीन आलेख राजस्थान में स्थित है-
(अ) उदयपुर
(ब) जोधपुर
(स) भाब्रू
(द) अजमेर
उत्तर -(स)
9. सर्वाधिक प्राचीन फारसी लेख हैं-
(अ) विराट नगर में
(ब) लाल किले पर
(स) ढाई दिन के झोपड़े पर
(द) फतेहपुर सीकरी में
उत्तर - (स)
10.‘राजपूताने का अबुल फ़ज़ल' कहा जाता है-
(अ) मुहणोत नैनसी को
(ब) बांकीदास के
(स) चन्द्रवरदायी को
(द) दयालदास को
उत्तर - (अ)
11. राजवल्लभ का लेखक कौन था ?
(अ) सूर्यमल मिश्रण
(ब) बांकीदास
(स) राणा कुम्भा
(द) मण्डन
उत्तर - (द)
12. अभिलेख जिसमें चाहमान शासकों (सांभर की) उपलब्धि का वर्णन किया गया है-
(अ) अर्थूणा अभिलेख
(ब) मण्डोर का अभिलेख
(स) बड़ली प्रस्तर अभिलेख
(द) हर्षनाथ मंदिर अभिलेख
उत्तर -(द)
13. आधुनिक काल में राजस्थान का इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास करने वाले लेखक थे-
(अ) श्यामलदास
(ब) गौरीशंकर हीराचंद ओझा
(स) कर्नल टॉड
(द) मुहणोत नैणसी
उत्तर - (स)
14. बालाथल (उदयपुर) में उत्खनन में किस धातु के आयुध (हथियार) प्राप्त हुए हैं-
(अ) लोहा
(ब) कांसा
(स) तांबा
(द) पीतल
उत्तर - (स)
15. राजस्थान के इतिहास से सम्बन्धित साहित्य ‘प्रबन्ध चिंतामणी’किसके द्वारा रचित है-
(अ) श्यामलदास
(ब) मेरूतुंग
(स) बांकीदास
(द) रणछोड़ भट्ट
उत्तर - (ब)
16. किसके द्वारा रचित- ‘अमर काव्य’ वंशावली में बापा रावल से- महाराणा राजसिंह तक का मेवाड़ का इतिहास उपलब्ध है-
(अ) श्यामलदास
(ब) मेरूतुंग
(स) बांकीदास
(द) रणछोड़ भट्ट
उत्तर - (द)
17. राजा मानसिंह री ख्यात इस ख्यात से किस रियासत के राजा के समय की घटनाओं का पता चलता है-
(अ) जोधपुर
(ब) जयपुर
(स) किशनगढ़
(द) भरतपुर
उत्तर - (अ)
18. मेवाड़ उदयपुर के महाराणा राजसिंह की प्रशस्ति "राज प्रशस्ति" कहाँ स्थित है -
(अ) उदयपुर
(ब) कुम्भलगढ़
(स) गोगुन्दा
(द) राजसमन्द
उत्तर - (द)
19. प्राचीन काल से मध्य युग तक राजस्थान को नाम से पुकारा जाता था-
(अ) जांगलदेश
(ब) मरूस्थल
(स) राजस्थान
(द) मत्स्य राज्य
उत्तर -(अ)
20. 'वृहद प्रशस्ति' या 'रायसिंह की प्रशस्ति' से किस राज्य के इतिहास के बारे में पता चलता है-
(अ) जोधपुर
(ब) जयपुर
(स) बीकानेर
(द) मेवाड़
उत्तर -(स)
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न-
प्र-1 राजस्थान का इतिहास जानने के मुख्य साधन कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर-
राजस्थान का इतिहास जानने के मुख्य साधनों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है -
पुरालेखीय स्रोत ऐतिहासिक साहित्य
आधुनिक ऐतिहासिक ग्रन्थ एवं इतिहासकार
प्र-2 ‘पुरातात्विक स्रोतों’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
पुरातात्विक स्रोत से अभिप्राय खोजों और उत्खनन से मिलने वाली सामग्री से है।
उत्खनन से प्राप्त सामग्री से ऐतिहासिक कालक्रम के निर्धारण, उस समय के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक व धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
जैसे हनुमानगढ़ के निकट रंगमहल की खुदाई में मृद्भाण्ड कुछ खुरदरे मटमैले थे, धीरे-धीरे उन्होनें इसमें सुधार किया और बाद के मृद्भाण्ड चिकनापन लिए हुए अलंकृत किए हुए मिले।
इसी प्रकार बालाथल (उदयपुर) में उत्खनन में ताम्र आयुद्ध (हथियार) प्राप्त हुए हैं। आहड़ की खुदाई में काले पत्थरों से बने मकान उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। कांच व पत्थर के मणके, मुहरें आदि प्राप्त हुए हैं।
उत्खनन की सामग्री से उस युग के सामाजिक, आर्थिक धार्मिक स्थिति के निर्धारण में मदद मिलती है। ये महत्वपूर्ण और विश्वसनीय स्रोत होते हैं।
प्र-3 राजस्थान के इतिहास जानने के पुरालेखीय स्रोतों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
उत्तर-
ये लेख पत्थर की शिलाओं, पट्टे, प्रस्तर, भवन, गुफा मन्दिर की दीवारों, स्तूप, मठों, कुएं, बावड़ी, खेतों के समीप गढ़ी हुई शिला व ताम्र पत्रों पर लिखे रहते हैं। जिससे उस समय की स्थिति, राज्य व अन्य जानकारियां मिलती हैं।
ये संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी फारसी व उर्दू किसी भी भाषा में हो सकते हैं। जिन शिलालेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धि की यषोगाथा होती है, उसे ‘प्रशस्ति’ भी कहते हैं।
जैसे-
महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित ‘कीति स्तम्भ’ प्रशस्ति, महाराणा राजसिंह की ‘राज प्रशस्ति’महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
प्र-4 राजस्थान का इतिहास जानने में ‘साहित्यिक स्रोतों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
उत्तर- ‘साहित्यिक स्रोत’, संस्कृत, राजस्थानी, हिन्दी, उर्दू, फारसी भाषा में लिखे हुए ग्रन्थ या पुस्तकें हैं। जो हमें उस समय का इतिहास जानने में मदद करती हैं। ये साहित्य उपरोक्त में से किसी भी भाषा में लिखा जा सकता है। प्रायः ये साहित्य, उस समय विषेष से प्रयोग में लाये जाने वाली भाषा में लिखा जाता है। समय विशेष में लिखा गया ये साहित्य, तात्कालीन इतिहास के महत्वपूर्ण साधन होते हैं।
प्र-5 अभिलेखागारीय स्रोतों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
इतिहास जानने के इस साधन से हमारा अभिप्रायः लिखित बही, पट्टों, रिपोर्ट, फरमान फाइलों, आदि से है। यदि ये अभिलेख उस समय की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक दशा पर प्रकाश डालते हैं, तो ये भी इतिहास जानने के अभिलेखागारीय स्रोत माने जाते तथा इतिहास जानने के महत्वपूर्ण साधन होते हैं।
प्र-6 राजस्थान के इतिहास जानने में उपयोगी ‘‘संस्कृत स्रोत’’ कौन-कौनसे हैं?
उत्तर-
संस्कृत भाषा में लिखे साहित्य भी राजस्थान के इतिहास को जानने के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जैसे-
जयानक द्वारा रचित ‘पृथ्वीराज विजय’- ये चौहान वंश के शासकों से सम्बन्धित साहित्य है।
नयन चन्द्र सूरि द्वारा रचित- ‘हमीर महाकाव्य’ में रणथम्भौर के चौहान शासकों के बारे में जानकारी मिलती है।
चन्द्रशेखर द्वारा रचित- ‘सुर्जन चरित’ से राजस्थान के सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती है।
मेवाड़ के प्रमुख ‘शिल्पी मण्डन’ द्वारा रचित- ‘राजवल्लभ’ में मेवाड़ के महाराणाओं के समय की जानकारी मिलती है।
मेरूतुंग द्वारा रचित- ‘प्रबन्ध चिंतामणी’ राजस्थान के इतिहास से सम्बन्धित साहित्य है।
रणछोड़ भट्ट द्वारा रचित- ‘अमर काव्य’ वंशावली में बापा रावल से- महाराणा राजसिंह तक का मेवाड़ का इतिहास उपलब्ध है।
अतः ये संस्कृत साहित्य स्रोत राजाओं के शासन पर पूर्ण प्रकाश डालते हैं।
प्र-7 राजस्थान के आधुनिक इतिहासकारों एवं उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
राजस्थान के आधुनिक इतिहासकारों में सर्वप्रथम कर्नल टॉड ने, राजस्थान के इतिहास को लिखने का प्रयास शुरू किया। टॉड का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘एनलस’ का प्रथम खण्ड 1829 ई. में और दूसरा खण्ड ‘‘पश्चिमी भारत की यात्रा’’ के नाम से टॉड की मृत्यु के बाद 1839 ई. में प्रकाशित हुआ।
इतने महत्वपूर्ण होते हुए भी ये ग्रन्थ दोषयुक्त हैं। राजपूत जाति व शासकों के बारे में कर्नल टॉड का विवरण अपूर्ण है। कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक में लिखने से पूर्व उपलब्ध ऐतिहासिक स्रोतों का उपयोग नहीं किया, अतः उसके इतिहास में विश्वसनीयता कम है।
आधुनिक कवियों में सूर्यमल मिश्रण का नाम उल्लेखनीय है। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं- वंश भास्कर, वीर सतसई, बलचद्विलास, छेदोभमूल, सतीरासो, धातु रूपावली आदि राजस्थान इतिहास जानने के महत्वपूर्ण साधन हैं। ये बूंदी के महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे।
सूर्यमल मिश्रण कृत ‘वंश भास्कर’ में राजस्थान का ही नहीं, उत्तरी भारत की जानकारी के लिए भी ये महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
डॉ. कानूनगो ने ऐतिहासिक दृष्टि से ‘पृथ्वीराज रासों’ को भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना है।
कविराजा श्यामलदास की रचना ‘‘वीर विनोद’’ जो चार खण्डों में विभक्त है। ब्रिटिश सरकार ने ‘केसर ए हिन्द’ की उपाधि से सम्मानित किया।
गौरीशंकर हीराचन्द ओझा प्रसिद्ध इतिहासकार व पुरातत्ववेता थे। 1911 में उन्होने सिरोही राज्य का इतिहास, सिसोदिया राज्य का इतिहास, बीकानेर राज्य का इतिहास लिखा । अंग्रेजी सरकार ने उन्हें अजमेर बुलाकर म्यूजियम क्यूरेटर (अध्यक्ष) बना दिया था।
मुंशी देवी प्रसाद ने अरबी व फारसी भाषाएं सीखी तथा ‘हुमायूँनामा’, ‘जहाँगीरनामा’, ‘बाबरनामा’, फारसी ग्रन्थों का हिन्दी में अन ुवाद किया। ‘स्वप्न राजस्थान’ भी उनके द्वारा लिखा गया। ये साहित्य आधुनिक राजपूत शासकों के चरित्र को विशुद्ध रूप में प्रस्तुत करता है।
रामनाथ रत्नू कृत राजस्थान का इतिहास विशाल न होते हुए भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति है।
जगदीश सिंह गहलोत की गणना भी राजस्थान के आधुनिक इतिहासकारों में की जाती है।
उन्होने तीन खण्डों में ‘राजस्थान का इतिहास’’ प्रकाशित किया, प्रथम-खण्ड में करौली के यादव, जैसलमेर के भाटी राजघरानों का विवरण है। दूसरे खण्ड में अजमेर, जयपुर के कछवाहा तथा अलवर के नरूका राज्य का इतिहास है। उनके अधूरे कार्य को उनके पुत्र सुखबीर सिंह गहलोत ने पूरा किया।
प्रश्न-8 ख्यात साहित्य से आप क्या समझते हैं ? महत्वपूर्ण ख्यातों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
राजस्थान के इतिहास को जानने में ‘ख्यात साहित्य’ का अपना स्थान है। ऐसा साहित्य जो ‘ख्याति’ प्रतिपादित करे प्रशंसा में लिखा जाये, ख्यात साहित्य कहलाता है। ख्यात लेखक राज दरबार में रहने वाले चारण व भाट होते थे। ख्यात लेखक राजस्थानी भाषा में, गद्य में लिखा गया साहित्य है, लेकिन मुणहोत नैणसी री ख्यात अपवाद है। इसमें ऐतिहासिक स्रोतों से जानकारियाँ ली गई है। अन्य ख्यातकारों ने किन ऐतिहासिक स्रोतों की सहायता ली है, इसका जिक्र तक भी नहीं किया है। ख्यात साहित्य सत्य के ज्यादा करीब नहीं है। इस कारण इस साहित्य को प्रामाणिक मानने में कठिनाई होती है। फिर भी इनका अपना महत्व है, यहाँ कुछ प्रमुख ख्यातों की जानकारी दी जा रही है।
मुणहोत नैणसी री ख्यात साहित्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ख्यात साहित्य है। मुणहोत नैणसी री ख्यात सर्वाधिक प्रसिद्ध भी है। इसमें सिन्ध गुजरात मध्य भारत आदि प्रदेश व शासकों का भी वर्णन मिलता है।
दयालदास री ख्यात इसमें बीकानेर के राठौड़ों से लेकर जोधपुर के राव जोधा तक की पूरी जानकारी मिलती है।
राजा मानसिंह री ख्यात इस ख्यात से जोधपुर नरेश मानसिंह के समय की घटनाओं का पता चलता है।
मुण्डीयार री ख्यात इसमें 200 बातों का संग्रह है, इससे राजस्थान की ऐतिहासिक, सामाजिक आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलती है। इसमें राजपूत वंशों की ऐतिहासिक घटनाओं, सामाजिक, आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
फलौदी, सांचौर, जैसलमेर की ख्यात इसमें फलौदी, सांचौर, जैसलमेर के इतिहास को जानने में मदद मिलती है।
किशनगढ़ की ख्यात से किशनगढ़ के इतिहास की जानकारी मिलती है।
बांकीदास री ख्यात- बांकीदास ने महाराजा मानसिंह के राज दरबार में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। बांकीदास ने अपनी रचनाओं से अंग्रेजों को काफी प्रताड़ित किया, उनकी रचनाओं ‘‘आयो अंग्रेज मुल्क रे ऊपर’’ गीत ने राजस्थान में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। इससे बांकीदास की राष्ट्रीय भावना का पता चलता है, पूर्ण व क्रमिक इतिहास प्रचार जानने में ‘बांकीदास की ख्यात’ एक आधार-ग्रन्थ के रूप में सहायक हो सकती है।
बहुत अच्छा लगा जानकारी प्राप्त करके अपने इतिहास से .........
ReplyDeleteThank you so much...
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