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Historical Mayra Caves of Gogunda of Udaipur district- उदयपुर के गोगुन्दा की ऐतिहासिक मायरा की गुफा

 

राजस्थान हमेशा से अपनी प्राचीन धरोहरों के लिए जाना जाता है। राजस्थान के ऐतिहासिक स्थलों में शामिल एक ऐसी ही धरोहर मायरा की गुफा का नाम लगभग गुमनाम सा है। यह गुफा उदयपुर जिले की अरावली की पहाड़ियों के जंगलों में विद्यमान है। मायरा की गुफा महाराणा प्रताप की राजतिलक स्थली ग्राम गोगुन्दा से तकरीबन 7-8 किलोमीटर दूर दुलावतों का गुढ़ा गाँव के जंगल में स्थित है। यह उदयपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर है। इस स्थल पर पहुँचने के लिए गोगुन्दा से हल्दीघाटी लोसिंग सड़क पर गणेश जी का गुढ़ा गाँव से पूर्व सामने एक पहाड़ी रोड़ ऊपर की तरफ जाती है, जिससे वहां पहुंचा जा सकता है। महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी के युद्ध से जुडी होने के कारण मायरा की गुफा राजस्थान के इतिहास में  महत्त्व रखती है। हल्दीघाटी की लड़ाई में इस गुफा का योगदान बड़ा अहम था।  मुग़ल शासक अकबर से हुए संघर्ष के दौरान महाराणा को राजमहलों से दूर रहकर अपना युद्ध जारी रखने तथा सुरक्षित रहने हेतु अनेक गुप्त व सुरक्षित स्थान तलाशने पड़े थे। इन्ही स्थानों में से एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान “मायरा की गुफा” है। शरीर की नसों जैसी आकृति में बनी इस प्राकृतिक गुफा को हल्दीघाटी की लड़ाई के दौरान महाराणा प्रताप ने अपना शस्त्रगार बनाया था। तभी तो इस गुफा को महाराणा गुफा भी कहा जाता है।  

कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे। प्रताप यहाँ गुप्त मन्त्रणाएं भी करते थे।  

इस गुफा की खासियत ये है कि बाहर से देखने पर इसका प्रवेश द्वार दिखाई नहीं देता है, यही कारण था कि इस गुफा के एक हिस्से को महाराणा प्रताप ने हथियार रखने के लिए तैयार किया था। मायरा की गुफा में जानवरों को रखने के लिए अलग से कमरे और रसोई घर भी था।  बताया जाता है कि इन कमरों में प्रताप के स्वामीभक्त घोड़े चेतक को बांधा जाता था, इसलिए इसे आज भी पूजा जाता है।  

गुफा के अंदर मां हिंगलाज का एक मंदिर भी बना है। इस गुफा में जाने के तीन अलग-अलग रास्ते हैं, जिनकी टेढ़ी-मेढ़ी रचना के कारण यह गुफा किसी भूल-भुलैया जैसी लगती है। जिसे समझ पाना शत्रुओं के लिए असंभव बात थी। यहाँ तक की इस गुफा को बाहर से देखने पर इसके अन्दर जाने का मार्ग दिखाई नहीं देता, इसलिए महाराणा प्रताप ने इसे हथियार रखने के लिए इस्तेमाल किया था।  अरावली की पहाड़ियों के बीच होने के कारण यह स्थल दुर्गम होने के बावजूद अत्यंत रमणीय स्थल है। इस गुफा के ऊपर की पहाड़ी से एक प्राकृतिक झरना भी गिरता है जो बारिश के दिनों में आकर्षक हो जाता है। 


ऐतिहासिक महत्त्व की स्थली होने के बावजूद ये स्थान अत्यंत दुरूह है। आज भी इस गुफा तक पहुंचना किसी साहसिक कार्य से कम नहीं हैं। यहाँ पहुँचने के लिए कोई अच्छी सड़क नहीं है, फिर भी कई लोग उदयपुर क्षेत्र की इस विशालतम गुफा को देखने के लिए एडवेंचर टूरिज्म के रूप में यहां आते भी है। महाराणा प्रताप से संबंधित यह स्थल मेवाड़ की विरासत है तथा इसके सरंक्षण की नितांत आवश्यकता है। पर्यटकों को मेवाड़ के इतिहास से रूबरू कराने के लिए चल रहे मेवाड़ कॉम्पलेक्स प्रोजेक्ट में गोगुंदा क्षेत्र की मायरा की गुफा भी शामिल कर लिया गया है, जिसके अंतर्गत मायरा की गुफा का जीर्णोद्धार किया जाएगा। मुख्य सड़क से गुफा तक संपर्क सड़क बनाई जाएगी। गुफा में लैंड स्केपिंग कर झरनों को आकर्षक रूप दिया जाएगा। पर्यटकों के लिए अन्य जनसुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। किन्तु अभी तक यह कार्य अभी प्रारंभ नहीं हुआ है। 

Comments

  1. महाराणा प्रताप को शत शत नमन ....

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