कैसे करें राजस्थान में जीरे की कृषि
जीरा कम समय में पकने वाली मसाले की एक प्रमुख फसल है। इससे अधिक आमदनी होती है। राज्य में जीरे की खेती मुख्यतः अजमेर, पाली, जालौर, सिरोही, बाड़मेर,नागौर जयपुर एवं टौंक जिलो में की जाती है। राजस्थान जीरा उत्पादन में गुजरात के बाद देशभर में दूसरे स्थान पर है।
भूमि एवं जलवायुः-
जीरे की खेती के लिए हल्की एवं दोमट उपजाऊ भूमि अच्छी होती है तथा इसमें जीरे की खेती आसानी से की जा सकती है।
जीरे की उन्नत किस्में-
आर एस 1-
- यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है इसका बीज कुछ बड़ा रोएँदार होता है।
- यह किस्म राजस्थान के समस्त भागों के लिये उपयुक्त है।
- यह देशी किस्म की अपेक्षा अधिक रोग रोधी तथा 20 से 25 प्रतिशत अधिक उपज देती है।
- यह किस्म 80 से 90 दिनों में पककर 6 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है।
आर जेड 19-
- राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म के दाने सुडौल, आकर्षक तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं।
- यह 125 दिन में पक जाती है।
- यह स्थानीय किस्मों तथा आर एस 1 की तुलना में उखटा,छाछ्या व झुलसा रोग से कम प्रभावित होती है।
- उन्नत कृषि विधियां अपना कर इस किस्म से 10.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
आर जेड 209-
- राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म के दाने सुडोल, बडे़ व गहरे भूरे रंग के होते हैं।
- यह फसल 120 से 125 दिनों में पककर 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है।
- इस किस्म में छाछिया रोग का प्रकोप आर जेड 19 की तुलना में कम होता है।
गुजरात जीरा 2 (जी सी 2)-
- इसे गुजरात जीरा 2 कहते हैं।
- यह प्रजाति भी गुजरात कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गयी है।
- यह प्रजाति 100 दिन में तैयार हो जाती है तथा इसकी उपज 700 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है।
आर.जेड़. 223-
- यह किस्म जीरा जननद्रव्य की यू.सी.216 पंक्ति में उत्परिवर्तन प्रजनन विधि द्वारा विकसित की गई है।
- यह किस्म मध्यम परिपक्वता अवधि (120-130 दिन) की है तथा 6.0 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत पैदावार दे देती है।
- इस किस्म ने झुलसा एवं उखटा रोगों के लिये अधिक प्रतिरोधकता दर्शाई है।
जी.सी. 4 -
- राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त इस किस्म के दाने सुडौल, आकर्षक तथा गहरे भूरे रंग के होते है।
- यह किस्म 120 दिन में पक जाती है एवं स्थानीय किस्मों की तुलना में उखटा, छाछ्या व झुलसा से कम प्रभावित होती है।
- इस किस्म से औसत उपज 6 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
जीरे की फसल के लिए भूमि की तैयारी-
बुवाई से पूर्व यह आवश्यक है कि खेत की तैयारी ठीक तरह से की जाये इसके लिये यह खेत को अच्छी तरह से जोत कर उसकी मिट्टी को भुरभुरी बना लिया जाये तथा खेत से खरपतवारों को निकाल कर साफ कर देना चाहिये।
जीरे की फसल हेतु खाद एवं उर्वरक-
यदि पिछली खरीफ की फसल में दस से पन्द्रह टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डाली जा चुकी हो तो जीरे की फसल के लिये अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं है। यदि ऐसा नहीं किया गया हो तो 10 से 15 टन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से जुताई से पहले गोबर की खाद खेत में बिखेर कर मिला देना चाहिये।
इसके अतिरिक्त जीरे की फसल में 30 किलो नत्रजन एवं 20 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से उर्वरक भी देवें। फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिये। नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद एवं शेष आधी 15 किलों नत्रजन बुवाई के 60 दिन बाद सिंचाई के साथ देवें।
जीरे की फसल में अधिक उपज लेने के लिये नेफ्थलीन एसिटिक अम्ल (NAA) 50 पी.पी.एम. का घोल बुवाई के 40 एवं 60 दिन पश्चात छिडके।
जीरे की फसल के लिए भूमि उपचार-
जीरे का उखटा एवं झुलसा रोग के नियन्त्रण हेतु ट्राइकोडर्मा विरीडे जैविक फफूंदनाशी 2.5 किलो प्रति हैक्टर की दर से 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर भुमि उपचार करे।
जीरे की कृषि के लिए बीज की मात्रा एवं बुवाई-
- जीरे की बुवाई के लिए एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिये 12 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है।
- जीरे की बुवाई 15 से 30 नवम्बर के बीच कर देनी चाहिये।
- बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि से की जाती है।
- तैयार खेत में पहले क्यारियां बनातें है। उनमें बीजों को एक साथ छिटक कर क्यारियों में लोहे की दंताली इस प्रकार फिरा देनी चाहिये कि बीज के उपर मिट्टी की एक हल्की सी परत चढ जाये।
- ध्यान रखे कि बीज जमीन में अधिक गहरा नहीं जाये। निराई गुड़ाई व अन्य शस्य क्रियाओं की सुविधा की दृष्टि से छिटंकवा विधि की अपेक्षा कतारों में बुवाई करना अधिक उपयुक्त पाया गया है।
- कतारों में बुवाई के लिये क्यारियों में 22.5 से 25 सेन्टीमीटर की दूरी पर लोहे या लकडी के हुक से लाइनें बना लेते हैं। बीजों को इन्हीं लाइनों में डालकर दंताली चला दी जाती है।
- बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखे कि बीज मिट्टी से एक सार ढक जायें तथा मिट्टी की परत एक सेन्टीमीटर से ज्यादा मोटी न हो।
जीरे में सिंचाई-
- जीरे की बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई दे देनी चाहिये।
- सिंचाई के समय ध्यान रहे कि पानी का बहाव तेज न हो अन्यथा तेज बहाव से बीज अस्त व्यस्त हो जायेगें। दूसरी सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने पर जब बीज फूलने लगे तब करें।
- अगर दूसरी सिंचाई के बाद अंकुरण पूरा नहीं हुआ हो या जमीन पर पपडी जम गई हो तो एक हल्की सिंचाई करना लाभदायक रहेगा।
- इसके बाद भूमि की बनावट तथा मौसम के अनुसार 15 से 25 दिन के अन्तर से 5 सिंचाईयां पर्याप्त होगी। पकती हुई फसल में सिंचाई न करें एवं दाने बनते समय अन्तिम सिंचाई गहरी करनी चाहिये।
छंटाई व निराई - गुड़ाई
जीरे की अच्छी फसल के लिये दो निराई गुड़ाई आवश्यक है। प्रथम निराई गुड़ाई 30 से 35 दिन बाद व दूसरी 55 से 60 दिन बाद करनी चाहिये। पहली निराई गुड़ाई के समय अनावश्यक पौधों को भी उखाड़ कर हटा देवें, जिससे पौधे से पौधे की दूरी 5 सेन्टीमीटर रहे।
जहां निराई गुड़ाई का प्रबन्ध न हो सके वहां पर जीरे की फसल में खरपतवार नियन्त्रण हेतु निम्न रसायनों में से किसी एक का प्रयोग करें-
- फ्लूक्लोरेलिन 1किलोग्राम सक्रिय तत्व (2.250 लीटर बासलिन) प्रति हैक्टेयर (3 मिलीमीटर प्रति लीटर पानी में)लगभग 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर भूमि में मिला दे तत्पश्चात जीरे की बुवाई करें।
- ट्रिब्तान 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व (सवा किलो इग्रान) प्रति हैक्टेयर (1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में)
- पेन्डीमिथोलिन एक किलोग्राम सक्रिय तत्व (3.33 किलो स्टाम्प एफ 34) प्रति हैक्टेयर (4.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में)
- जीरे में खरपतवार नियंत्रण के लिये आक्साडायर्जिल 6 ई सी 50 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के बाद 20 दिन के अन्दर अंकुरण के शीघ्र पश्चात (अर्ली पोस्ट इमरजन्स) 600 से 700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।
क्रमांक 1,2,3,एवं 4 पर अंकित रसायन में से कोई एक रसायन लगभग 750 लीटर पानी में घोल कर बुवाई के 1 से 2 दिन बाद तथा खरपतवार उगने से पूर्व छिड़काव करें। जीरे की बुवाई कतारों में होनी चाहिये।
प्रमुख कीट एवं व्याधियां-
मोयला-
इसके आक्रमण से फसल को काफी नुकसान होता है। यह कीट पौधे के कोमल भाग से रस चूस कर हानि पहुंचाता है। तथा इसका प्रकोप प्रायः फसल में फूल आने के समय प्रारम्भ होता है। नियन्त्रण हेतु डायमिथोएट 30 ई सी या मैलाथियान 50 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के बाद छिड़काव को दोहरायें।
छाछ्या-
इस रोग का प्रकोप होने पर पौधों की पत्त्यिों पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगता है। रोग की रोकथाम न की जाये तो पौधों पर पाउडर की मात्रा बढ जाती है। यदि रोग का प्रकोप जल्दी हो गया हो तो बीज नहीं बनते हैं।
नियन्त्रण हेतु गन्धक के चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें या घुलनशील गन्धक चूर्ण ढाई किलो प्रति हैक्टेयर की दर से छिडके अथवा कैराथियाॅन एल सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव करने से भी रोकथाम की जा सकती है। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव/भुरकाव दोहराये।
झुलसा (ब्लाइट)-
फसल में फूल आना शुरु होने के बाद अगर आकाश में बादल छाये रहें तो इस रोग का लगना निश्चित हो जाता है। रोग के प्रकोप से पौधों के सिरे झुके हुए नजर आने लगते हैं। रोग में पौधों की पत्तियों एवं तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड जाते हैं तथा पौधों के सिरे झुके हुए नजर आने लगते हैं। यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि रोग के लक्षण दिखाई देते ही नियंत्रण कार्य न कराया जाये तो फसल को नुकसान से बचाना मुश्किल हो जाता है।
नियंत्रण हेतु बुवाई के 30 -35 दिन बाद फसल पर दो ग्राम टोप्सिन एम या मैन्कोजेब या जाइरम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकें। आवश्यकतानुसार यह छिड़काव 40 से 45 दिन बाद दोहरावें।
जीरे में झुलसा रोग के नियन्त्रण हेतु रोग के लक्षण दिखाई देने पर डाईफनोकोना जोल(स्कोर 25 ई.सी.) का 0.5 मि.ली.प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे। दूसरा व तीसरा छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर दोहरावें।
जीरे के झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु ट्ाइकोडर्मा विरीडी जैविक खाद की 4 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करके बुवाई करें,और बुवाई के 35 दिन पश्चात प्रोपेकोनेजोल (टिल्ट) एक मि.ली./लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें।
उखटा (विल्ट)-
- इस रोग का प्रकोप पौधों की किसी भी अवस्था में हो सकता है लेकिन पौधों की छोटी अवस्था में प्रकोप अधिक होता है। रोग से प्रभावित पौधे हरे के हरे ही मुरझा जाते हैं।
- नियंत्रण हेतु गर्मी में गहरी जुताई करें तथा बुवाई पूर्व खेत में नीम की खली 150 कि. ग्रा. प्रति हैक्टेयर काम में लेवें।
- उकठा रोग नियंत्रण हेतु 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम $ 6 ग्राम ट्राईकोडर्मा वीरीडी $ नीम बीज अर्क 10 प्रतिशत प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करें अथवा
- बीजों को बाविस्टीन 2 ग्राम या ट्राइकोडरमा 4 - 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें। रोग रहित फसल से प्राप्त बीज को ही बोयें।
- रोग ग्रसित खेत में जीरा न बोयें। कम से कम तीन वर्ष का फसल चक्र ( ग्वार-जीरा, ग्वार-गेहूं , ग्वार-सरसों ) अपनायें।
उपरोक्त कीटों, मुख्यतः चैंपा तथा व्याधियों की रोकथाम के लिए निम्न पौध संरक्षण उपाय अपननाएँ -
प्रथम छिड़काव
बुवाई के 30-35 दिन बाद फसल पर मैन्कोजेब का 2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
द्वितीय छिड़काव
बुवाई के 45-50 दिन पश्चात उपयुक्त फफूंदनाशक के साथ केराथेन एक मिलीलीटर व डाईमिथोएट 30 ई सी मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
तृतीय छिड़काव
दूसरे छिड़काव के 10-15 दिन बाद उपर्युक्त अनुसार ही छिड़काव करें।
गन्धक का भुरकाव
यदि आवश्यक हो तो तीसरे छिड़काव के 10-15 दिन बाद 25 किलो गन्धक का चूर्ण का प्रति हैैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
जीरे की कटाई
जीरे की फसल 90 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फसल को दांतली से काटकर अच्छी तरह से सुखा लें। फसल के ढेर को जहां तक संभव हो पक्के फर्श पर धीरे - धीरे पीटकर दानों को अलग कर लेवें। दानों से धूल, हल्का कचरा एवं अन्य पदार्थ प्रचलित विधि द्वारा ओसाई करके दूर कर देवें तथा अच्छी तरह सुखाकर बोरियों में भरें।
उपज
उपर्युक्त उन्नत कृषि विधियां अपनाने से 6 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर जीरे की उपज प्राप्त की जा सकती है।
जीरे का भण्डारण
भण्डारण करते समय दानों में नमी का मात्रा 8.5 से 9 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। बोरियों को दीवार से 50 से 60 सेन्टीमीटर की दूरी पर लकडी की पट्टीयों पर रखें व चूहों व अन्य कीटों के नुकसान से बचावें। संग्रहीत जीरे को समय-समय पर धूप में रखें। उपज की गुणवत्ता एवं मापदण्डों के अनुसार यह आवश्यक है कि कटाई के बाद भी सभी क्रियाओं में गुणवत्ता बनाये रखने के लिए पूर्ण सावधानी रखी जाये।
Heppyy
ReplyDeleteThanks...
Deleteजीरे की खेती करने के लिए अलीगढ़ के लिए सही दिशा निर्देश डिटेल में दे
ReplyDeletePlz रिप्लाई सून
Please contact to agriculture department of your region. Thanks..
Deleteजीरे की खेती के लिए झालावाड़ मे खानपुर तहसील उपयुक्त है या नही
ReplyDeleteI think so. Please contact to agriculture department of your region. Thanks..
DeleteThanks
ReplyDeleteYou are welcome.
DeleteThanks
ReplyDeleteYou are welcome..
Deleteराजस्थान जिला नागौर मै हमारे किसान भाई फसल के अछी होती है जेसै संरसौ जीरा गेहु बाजंरा कंपास ईस्बगौल मुग मोठ गवार ज्वार तिल ईनकी मुझे अछी किस्म चाहिऐ
ReplyDeleteContact to agriculture department office nearest to you. Thanks..
Deleteहमारे जालौर जिले के सांचौर तहसील में जीरा की खेती बहुत अच्छी होती
ReplyDeleteIts very nice .. Thanks for information.
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