काल |
विवरण |
1907 |
अर्जुन लाल सेठी द्वारा जयपुर में वर्धमान विद्यालय की स्थापना। उनके द्वारा कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से संपर्क। |
1908-11 |
अर्जुन लाल सेठी द्वारा रास बिहारी बोस से संपर्क। उनका विद्यालय क्रांतिकारियों का प्रशिक्षण केंद्र बना। बोस द्वारा राजस्थान में क्रांति का भार सेठी जी आदि को सौंपा। श्री विष्णुदत्त, प्रताप सिंह बारहठ, मोती चंद आदि क्रांतिकारियों का वर्धमान विद्यालय में प्रशिक्षण। |
1912 |
विष्णुदत्त आदि द्वारा क्रांति के लिए धन एकत्रित करने की योजना। निमेज के महंत की हत्या। |
1914 |
निमेज हत्याकांड का फैसला। मोती चंद को फांसी। अर्जुन लाल सेठी बरी किन्तु जयपुर और बाद में मद्रास की वेल्लूर जेल में बंद। |
1920 |
अर्जुन लाल सेठी वेल्लूर जेल से रिहा। बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में महाराष्ट्र कांग्रेस द्वारा पूना में सेठीजी का स्वागत। इंदौर में सेठी जी का जुलूस। विद्यार्थियों का रथ में जुत कर रथ हांका गया। सेठी जी का अजमेर को अपनी कर्मभूमि बनाना। |
1927 |
हीरा लाल शास्त्री द्वारा वनस्थली में जीवन कुटीर की स्थापना। |
1931 |
कपूर चंद पाटनी द्वारा प्रजामंडल की स्थापना। |
1937 |
सेठ जमनालाल बजाज की प्रेरणा से प्रजामंडल का पुनर्गठन। एडवोकेट चिरंजीलाल मिश्र अध्यक्ष, हीरालाल शास्त्री महामंत्री एवं कपूर चंद पाटनी संयुक्त मंत्री नियुक्त। |
1938 |
जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में प्रजामंडल का जयपुर में प्रथम अधिवेशन। जयपुर राज्य में अकाल। जमनालाल बजाज का अकाल राहत कार्यो का जायजा लेने के लिए जयपुर आने का कार्यक्रम। 16 दिसंबर को सरकार द्वारा श्री बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर पाबंदी। |
1939 |
जमनालाल बजाज द्वारा निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर 1 फ़रवरी को राज्य में प्रवेश करने तथा नागरिक अधिकारों के लिए सिविल नाफ़रमानी आन्दोलन शुरू करने की चेतावनी। 11 फ़रवरी को श्री बजाज बैराठ के निकट गिरफ्तार। प्रजामंडल के प्रमुख नेता भी जयपुर में गिरफ्तार। आन्दोलन शुरू, 600 लोग गिरफ्तार हुए। मार्च में गांधीजी के आदेशानुसार सत्याग्रह स्थगित। अगस्त में बजाज एवं प्रजामंडल के नेता-कार्यकर्ता रिहा। प्रजामंडल और सरकार के मध्य समझौता। प्रजामंडल की मूलभूत अधिकारों की मांग स्वीकार। |
1940 |
हीरालाल शास्त्री प्रजामंडल के अध्यक्ष बने। कार्यकर्ताओं में मतभेद। श्री बजाज जयपुर प्रजामंडल से उदासीन हुए। |
1942 |
जमनालाल बजाज का फ़रवरी में वर्धा में निधन। अगस्त में प्रजामंडल द्वारा भारत छोड़ो आन्दोलन से अलग रहने का निर्णय। बाबा हरिशचन्द्र द्वारा आजाद मोर्चे की स्थापना। आजाद मोर्चे द्वारा आन्दोलन। श्री हीरालाल शास्त्री उलझन में पड़े। 16 सितम्बर को प्रजामंडल द्वारा राज्य को आन्दोलन की चेतावनी। शास्त्री जी की प्रधानमंत्री सर मिर्जा से मुलाक़ात। दोनों के मध्य “जेंटलमेंस एग्रीमेंट”। आजाद मोर्चे द्वारा आन्दोलन चालू। कई गिरफ्तारियां। नवयुवकों द्वारा 2-3 स्थानों पर बम विस्फोट। शिक्षण सस्थाओं में हड़ताल। |
1945 |
जयपुर में पी.ई.एन. कांफ्रेंस आयोजित, नेहरु जी का जयपुर आगमन। बाबा हरिश्चंद्र द्वारा नेहरु जी की उपस्थिति में आज़ाद मोर्चा भंग करने की घोषणा। |
1946 |
जयपुर राज्य में विधान परिषद् तथा विधान सभा की स्थापना। 15 मई को प्रजामंडल के प्रतिनिधि के रूप में देवीशंकर तिवाड़ी मंत्रिमंडल में सम्मिलित। |
1947 |
प्रजामंडल के एक और प्रतिनिधि के रूप में दौलतमल भंडारी मंत्रिमंडल में सम्मिलित। 27 मार्च को मंत्रिमंडल का पुनर्गठन व हीरा लाल शास्त्री मुख्यमंत्री। प्रजामंडल के तीन प्रतिनिधि तथा जागीरदारों के दो प्रतिनिधि मंत्रिमंडल में शामिल। हीरालाल शास्त्री भारतीय संविधान परिषद् के लिए नामजद। अगस्त में जयपुर भारतीय संघ में शामिल। |
1949 |
14 जनवरी को सरदार पटेल द्वारा उदयपुर में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर तथा जैसलमेर के राजस्थान में शामिल होने की घोषणा। 30 मार्च को पटेल द्वारा जयपुर में वृहद् राजस्थान का उद्घाटन। जयपुर के महाराजा को महाराज प्रमुख तथा हीरालाल शास्त्री को मुख्यमंत्री पद की शपथ। |
हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम जाता है। हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था। हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की। हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा । वर्षा ऋत...
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