Skip to main content

प्रसिद्ध लोक कलाविद् पद्मश्री देवीलाल सामर -

जन्म :- 30 जुलाई 1911, उदयपुर में
पिता-माता :- अर्जुन सिंह सामर, अलोल बाई
स्वर्गवास :- 3 दिसंबर 1981

भारतीय लोक कला मंडल के संस्थापक-

प्रसिद्ध लोक कलाविद् पद्मश्री देवीलाल सामर मूलत: नाटककार, लेखक, कवि और नर्तक थे। वे प्रारंभ में विद्या भवन स्कूल उदयपुर में शिक्षक रहे थे। इस समय उनका कुछ साहित्य प्रकाशित हो चुका था, लेकिन उनकी नृत्य कला का व्यापक प्रदर्शन नहीं हो पाया। विभिन्न कठिनाइयों के बावजूद भी श्री सामर ने 22 फरवरी 1952 को उदयपुर में "भारतीय लोक कला मंडल" संस्था की स्थापना राजस्थान की लोक कलाओं के प्रोत्साहन के उद्देश्य से की। इसके बाद श्री सामर ने संस्था के विकास के लिए देश भर के कई कलाकारों व अन्य हस्तियों से संपर्क स्थापित किया और उन्हें इससे जोड़ने का प्रयास किया। इसी क्रम में प्रख्यात फिल्म स्टार पृथ्वीराज कपूर सन् 1970 से तीन साल तक भारतीय लोक कला मंडल के अध्यक्ष रहे। सन् 1952 में आर.आर. दिवाकर, 1967 में बी. गोपाल रेड्डी, 1967 में डॉ. बी. वी केसरकर, 1970 में पृथ्वीराज कपूर, 1973 में पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया इसके अध्यक्ष रहे। इसके बाद प्रमोद प्रकाश सिंघल, डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी, डॉ. शूरवीर सिंह और फिर सलिल सिंघल अध्यक्ष बने। उन्होंने इसके माध्यम से राजस्थान की कठपुतली कला, काष्ठकला, टेराकोटा कला, चित्रकला, लोकनृत्य, लोकसंगीत, लोकनाट्य आदि को विश्वभर में पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आज भारतीय लोककला मंडल देश का प्रमुख लोककला संस्थान है।

डकैत कलाकार करणा भील को भी मंच दिया :-

श्री देवीलाल सामर को जब यह पता चला कि जैसलमेर में डकैत करणा भील है, जो राज्य के एकमात्र प्रसिद्ध 'नड़' वादक भी है। वे डाकू को तलाशने में जुट गए। उन्हें पता चला कि वह जेल में बंद है तो सामर नड़ वाद्य लेकर जेल में पहुंचे और वहाँ पर उनसे नड़ वादन कराया। डाकू करणा के जेल से छूटते ही उसे उदयपुर बुलाया। उसे लोक कला मंडल के लोकानुरंजन मेले में नड़ वादन की प्रस्तुति करवाई। इसके बाद डाकू के जीवन में बदलाव आया और वो हमेशा के लिए एक कलाकार ही बनकर रह गया।

विभिन्न पद व प्रतिनिधित्व :-

> लोक कला मंडल के संस्थापक संचालक
> राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष
> केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी कार्यकारिणी समिति के सदस्य
> अखिल भारतीय अणुव्रत समिति के अध्यक्ष
> केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की गवर्निंग बोर्ड में निर्वाचित
> भारत सरकार द्वारा रूस भेजे गए 8 सदस्यीय कला मर्मज्ञ दल का नेतृत्व
> बुखारेस्ट में हुए दूसरे अंतरराष्ट्रीय कठपुतली समारोह में देश का प्रतिनिधित्व
> कई देशों ने कठपुतली प्रदर्शन कराया।
> ईरान में 1971 में कठपुतली व लोक नृत्यों का प्रदर्शन
> सातवें अंतरराष्ट्रीय कठपुतली समारोह में बार्सिलोना (स्पेन) में 1976 में भारत का प्रतिनिधित्व
> 1978 में थाईलैंड, इंडोनेशिया व वियतनाम में कला प्रदर्शन

अन्य उपलब्धियां :-

फिल्म 'कल्पना' में सहायक निदेशक, अभिनेता व गीत नृत्य के रचयिता रहे। राजस्थान, मध्यप्रदेश, मणिपुर व त्रिपुरा के आदिवासियों की डोक्यूमेंट्री फिल्मों के रचयिता रहे। कला क्षेत्र में 28 पुस्तकों का लेखन। राजस्थान के सभी लोक नाट्यों के सर्वेक्षणकर्ता रहे।

पदक व सम्मान :-

> हनोई में आयोजित मिशेन समारोह में वियतनाम सरकार की ओर से सर्वोच्च कला पदक से विभूषित
> पदुआ विश्व विद्यालय (इटली) की ओर से रजत पदक से अलंकृत
> 1968 में भारत सरकार द्वारा 'पद्मश्री'
> कालिदास अकादमी इलाहाबाद से लोकनाट्य श्री
> विद्यापीठ द्वारा कलानिधि
> महावीर निर्माण समिति जयपुर से साहित्य सेवी
> श्री जैन श्वेतांबर अखिल भारतीय अणुव्रत समिति से अणुव्रत प्रवक्ता की उपाधि से विभूषित
> रुमानिया में 1965 में तीसरे अंतरराष्ट्रीय कठपुतली समारोह में प्रथम स्थान।
> ट्यूनीशिया में पांचवें अंतरराष्ट्रीय लोकनृत्य समारोह में दूसरा स्थान।

Comments

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों
    में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है,
    जिससे इसमें राग बागेश्री
    भी झलकता है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद
    नायेर ने दिया है...
    वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों
    कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Here is my page :: संगीत

    ReplyDelete
  2. Manyavar joshiji main aapse sampark katana chahata hoon .Mera mo.no.9829258006

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली