1. राजस्थान में मुख्यतया 8 प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं ।
2. भूरी मिट्टी राज्य के टोंक, सवाई माधोपुर, बूँदी, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है ।
3. भूरी मिट्टी का जमाव विशेषतः बनास व उसकी सहायक नदियों के प्रवाह क्षेत्र में पाया जाता है।
4. राजस्थान में भूरी मिट्टीयुक्त क्षेत्र अरावली के पूर्वी भाग में माना जाता है।
5. भूरी मिट्टी में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस लवणों का अभाव होता है।
6. भूरी मिट्टी से खरीफ की फसल बिना सिंचाई के तथा रबी की फसलें सिंचाई द्वारा पैदा की जा सकती हैं ।
7. पीले और भूरे रंग की मिट्टी सीरोजम होती है ।
8. सीरोजम मिट्टी के कण मध्यम मोटाई के होते हैं ।
9. सीरोजम मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है ।
10. सीरोजम मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम होती है।
11. सीरोजम मिट्टी में बारानी खेती की जाती है ।
12. सीरोजम मिट्टी में रबी की फसलों के लिए निरन्तर सिंचाई तथा अधिक मात्रा में रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है ।
13. सीरोजम मिट्टी का विस्तार ज्यादातर अरावली के पश्चिम में पाया जाता है।
14. सीरोजम मिट्टी को धूसर मरुस्थलीय मिट्टी भी कहते हैं।
15. सीरोजम मिट्टी का विस्तार पाली, नागौर, अजमेर व जयपुर जिले के बहुत बड़े क्षेत्र में पाया जाता है ।
16. सीरोजम मिट्टी छोटे टीलों वाले भागों में पाई जाती है।
17. लाल बलुई मिट्टी का रंग लाल होता है ।
18. लाल बलुई मिट्टी मुख्यतः मरुस्थलीय भागों में पाई जाती है ।
19. लाल बलुई मिट्टी का विस्तार जालौर, जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर, चूरू और झुंझनू जिलों के कुछ भागों पाई जाती है ।
20. लाल बलुई मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक तत्त्वों की मात्रा कम होती है।
21. लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में बरसाती घास व कुछ झाड़ियाँ पाई जाती है।
22. लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में खरीफ के मौसम में बारानी खेती की जाती है, जो पूर्णतः वर्षा पर निर्भर होती है।
23. लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में रासायनिक खाद डालने और सिंचाई करने पर ही रबी की फसलें (गेंहूँ, जौ, चना आदि) होती है।
24. लाल दुमट मिट्टी के कण बारीक होते हैं।
25. पानी ज्यादा समय तक रहने के कारण लाल दुमट मिट्टी में नमी लम्बे समय तक बनी रहती है ।
26. लाल दुमट मिट्टी का रंग लाल होने का कारण लौह ऑक्साइड की अधिकता हैं।
27. लाल दुमट मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कैल्सियम लवणों की कमी होती है।
28. लाल दुमट मिट्टी में रासायनिक खाद देने व सिंचाई करने से कपास, गेंहूँ, जौ, चना आदि की फसलें अच्छी होती हैं।
29. लाल दुमट मिट्टी दक्षिणी राजस्थान में पाई जाती है।
30. लाल दुमट मिट्टी राजस्थान के डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिलों के कुछ भागों में पाई जाती है।
31. अरावली पर्वतों के नीचे के प्रदेशों में पर्वतीय मिट्टी पाई जाती है।
32. पर्वतीय मिट्टी का रंग लाल से लेकर पीले, भूरे रंग तक होता है।
33. पर्वतीय मिट्टी पहाड़ी ढालों पर होती है ।
34. पर्वतीय ढलानों पर होने के कारण पर्वतीय मिट्टी की गहराई कम होती है, कुछ गहराई के बाद चट्टानी धरातल होता है ।
35. पर्वतीय मिट्टी पर खेती नहीं की जा सकती, जबकि जंगल लगाए जा सकते हैं ।
36. पर्वतीय मिट्टी सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर और अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में पाई जाती है ।
37. राजस्थान में बलुई मिट्टी रेत के टीलों के रूप में मिलती है ।
38. बलुई मिट्टी पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है ।
39. बलुई मिट्टी के कण मोटे होते हैं, जिनमें पानी शीघ्र ही विलीन हो जाता है ।
40. बलुई मिट्टी के कण मोटे होने के कारण जल बहुत थोड़े समय के लिए नमी बना पाता है और सिंचाई का भी विशेष लाभ नहीं होता।
41. बलुई मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक लवणों की कमी होती है ।
42. बलुई मिट्टी में कैल्सियम लवणों की अधिकता रहती है ।
43. बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में बाजरा, मोठ, मूँग आदि खरीफ की फसलें होती हैं ।
44. बलुई मिट्टी वाले सिंचित क्षेत्रों में रबी में गेहूँ की खेती भी की जाती है ।
45. बलुई मिट्टी के ऊँचे टीलों के निचले भाग में बारीक कणों वाली मटियारी मिट्टी पाई जाती है।
46. बलुई मिट्टी के ऊँचे टीलों के निचले भू-भागों को खडीन कहते हैं, ये बहुत उपजाऊ होते हैं।
47. जलोढ़ मिट्टी की रचना नदी-नालों के किनारे तथा उनके प्रवाह क्षेत्र में होती है।
48. जलोढ़ मिट्टी नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी होती है।
49. जलोढ़ मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है।
50. जलोढ़ मिट्टी के उपजाऊ होने का कारण इसमें लम्बे समय तक रहने वाली नमी है।
51. जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक लवण पर्याप्त मात्रा में होते हैं ।
52. जलोढ़ मिट्टी का रंग पीला होता है ।
53. जलोढ़ मिट्टी में कहीं-कहीं कंकरों का जमाव भी होता है, जिसमें कैल्सियम तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाती है।
54. जलोढ़ मिट्टी में खरीफ व रबी दोनों प्रकार की फसलें उगाई जा सकती हैं ।
55. जलोढ़ मिट्टी अलवर, जयपुर, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर, भरतपुर व धौलपुर, कोटा आदि जिलों में पाई जाती है ।
56. लवणीय मिट्टी में क्षारीय लवण तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है ।
57. लवणीय मिट्टी में लवणों का जमाव अधिक सिंचाई से भी हो जाता है ।
58. लवणीय मिट्टी प्राकृतिक रूप से निम्न भू-भागों में, जहाँ पानी का जमाव निरन्तर रहता है ।
59. लवणीय मिट्टी पूर्णतः अनुपजाऊ होती है ।
60. लवणीय मिट्टी में केवल चारागाह, प्राकृतिक झाड़ियाँ व बरसाती पेड़ ही उग सकते हैं।
61. लवणीय मिट्टी के अधिकांश क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान में पाए जाते हैं ।
62. लवणीय मिट्टी राजस्थान के बाड़मेर व जालौर में विशेषतः तथा श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, भरतपुर व कोटा जैसे सिंचाई वाले भागों में पाई जाती है।
2. भूरी मिट्टी राज्य के टोंक, सवाई माधोपुर, बूँदी, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है ।
3. भूरी मिट्टी का जमाव विशेषतः बनास व उसकी सहायक नदियों के प्रवाह क्षेत्र में पाया जाता है।
4. राजस्थान में भूरी मिट्टीयुक्त क्षेत्र अरावली के पूर्वी भाग में माना जाता है।
5. भूरी मिट्टी में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस लवणों का अभाव होता है।
6. भूरी मिट्टी से खरीफ की फसल बिना सिंचाई के तथा रबी की फसलें सिंचाई द्वारा पैदा की जा सकती हैं ।
7. पीले और भूरे रंग की मिट्टी सीरोजम होती है ।
8. सीरोजम मिट्टी के कण मध्यम मोटाई के होते हैं ।
9. सीरोजम मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है ।
10. सीरोजम मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम होती है।
11. सीरोजम मिट्टी में बारानी खेती की जाती है ।
12. सीरोजम मिट्टी में रबी की फसलों के लिए निरन्तर सिंचाई तथा अधिक मात्रा में रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है ।
13. सीरोजम मिट्टी का विस्तार ज्यादातर अरावली के पश्चिम में पाया जाता है।
14. सीरोजम मिट्टी को धूसर मरुस्थलीय मिट्टी भी कहते हैं।
15. सीरोजम मिट्टी का विस्तार पाली, नागौर, अजमेर व जयपुर जिले के बहुत बड़े क्षेत्र में पाया जाता है ।
16. सीरोजम मिट्टी छोटे टीलों वाले भागों में पाई जाती है।
17. लाल बलुई मिट्टी का रंग लाल होता है ।
18. लाल बलुई मिट्टी मुख्यतः मरुस्थलीय भागों में पाई जाती है ।
19. लाल बलुई मिट्टी का विस्तार जालौर, जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर, चूरू और झुंझनू जिलों के कुछ भागों पाई जाती है ।
20. लाल बलुई मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक तत्त्वों की मात्रा कम होती है।
21. लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में बरसाती घास व कुछ झाड़ियाँ पाई जाती है।
22. लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में खरीफ के मौसम में बारानी खेती की जाती है, जो पूर्णतः वर्षा पर निर्भर होती है।
23. लाल बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में रासायनिक खाद डालने और सिंचाई करने पर ही रबी की फसलें (गेंहूँ, जौ, चना आदि) होती है।
24. लाल दुमट मिट्टी के कण बारीक होते हैं।
25. पानी ज्यादा समय तक रहने के कारण लाल दुमट मिट्टी में नमी लम्बे समय तक बनी रहती है ।
26. लाल दुमट मिट्टी का रंग लाल होने का कारण लौह ऑक्साइड की अधिकता हैं।
27. लाल दुमट मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कैल्सियम लवणों की कमी होती है।
28. लाल दुमट मिट्टी में रासायनिक खाद देने व सिंचाई करने से कपास, गेंहूँ, जौ, चना आदि की फसलें अच्छी होती हैं।
29. लाल दुमट मिट्टी दक्षिणी राजस्थान में पाई जाती है।
30. लाल दुमट मिट्टी राजस्थान के डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिलों के कुछ भागों में पाई जाती है।
31. अरावली पर्वतों के नीचे के प्रदेशों में पर्वतीय मिट्टी पाई जाती है।
32. पर्वतीय मिट्टी का रंग लाल से लेकर पीले, भूरे रंग तक होता है।
33. पर्वतीय मिट्टी पहाड़ी ढालों पर होती है ।
34. पर्वतीय ढलानों पर होने के कारण पर्वतीय मिट्टी की गहराई कम होती है, कुछ गहराई के बाद चट्टानी धरातल होता है ।
35. पर्वतीय मिट्टी पर खेती नहीं की जा सकती, जबकि जंगल लगाए जा सकते हैं ।
36. पर्वतीय मिट्टी सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर और अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में पाई जाती है ।
37. राजस्थान में बलुई मिट्टी रेत के टीलों के रूप में मिलती है ।
38. बलुई मिट्टी पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है ।
39. बलुई मिट्टी के कण मोटे होते हैं, जिनमें पानी शीघ्र ही विलीन हो जाता है ।
40. बलुई मिट्टी के कण मोटे होने के कारण जल बहुत थोड़े समय के लिए नमी बना पाता है और सिंचाई का भी विशेष लाभ नहीं होता।
41. बलुई मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक लवणों की कमी होती है ।
42. बलुई मिट्टी में कैल्सियम लवणों की अधिकता रहती है ।
43. बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में बाजरा, मोठ, मूँग आदि खरीफ की फसलें होती हैं ।
44. बलुई मिट्टी वाले सिंचित क्षेत्रों में रबी में गेहूँ की खेती भी की जाती है ।
45. बलुई मिट्टी के ऊँचे टीलों के निचले भाग में बारीक कणों वाली मटियारी मिट्टी पाई जाती है।
46. बलुई मिट्टी के ऊँचे टीलों के निचले भू-भागों को खडीन कहते हैं, ये बहुत उपजाऊ होते हैं।
47. जलोढ़ मिट्टी की रचना नदी-नालों के किनारे तथा उनके प्रवाह क्षेत्र में होती है।
48. जलोढ़ मिट्टी नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी होती है।
49. जलोढ़ मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है।
50. जलोढ़ मिट्टी के उपजाऊ होने का कारण इसमें लम्बे समय तक रहने वाली नमी है।
51. जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक लवण पर्याप्त मात्रा में होते हैं ।
52. जलोढ़ मिट्टी का रंग पीला होता है ।
53. जलोढ़ मिट्टी में कहीं-कहीं कंकरों का जमाव भी होता है, जिसमें कैल्सियम तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाती है।
54. जलोढ़ मिट्टी में खरीफ व रबी दोनों प्रकार की फसलें उगाई जा सकती हैं ।
55. जलोढ़ मिट्टी अलवर, जयपुर, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर, भरतपुर व धौलपुर, कोटा आदि जिलों में पाई जाती है ।
56. लवणीय मिट्टी में क्षारीय लवण तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है ।
57. लवणीय मिट्टी में लवणों का जमाव अधिक सिंचाई से भी हो जाता है ।
58. लवणीय मिट्टी प्राकृतिक रूप से निम्न भू-भागों में, जहाँ पानी का जमाव निरन्तर रहता है ।
59. लवणीय मिट्टी पूर्णतः अनुपजाऊ होती है ।
60. लवणीय मिट्टी में केवल चारागाह, प्राकृतिक झाड़ियाँ व बरसाती पेड़ ही उग सकते हैं।
61. लवणीय मिट्टी के अधिकांश क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान में पाए जाते हैं ।
62. लवणीय मिट्टी राजस्थान के बाड़मेर व जालौर में विशेषतः तथा श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, भरतपुर व कोटा जैसे सिंचाई वाले भागों में पाई जाती है।
शानदार प्रस्तुति के लिय हार्दिक आभार व् बधाई .
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteरतनजीत जी, महावीर जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteWow
ReplyDeleteThanks...
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