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राजस्थान में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 का तिथि क्रम –

1 दिनांक मुख्य स्थल विवरण 25-8-1857 नसीराबाद नसीराबाद (अजमेर) छावनी में ब्रिटिश सेना के भारतीय जवानों के दस्तों द्वारा विद्रोह और दिल्ली कूच । 21, अगस्त 1857 एरिनपुरा एरिनपुरा (जोधपुर) में भारतीय सैनिको का विद्रोह । 1857-1858 आबू, जोधपुर, आहुवा एरिनपुरा   के सैनिकों द्वारा आबू में अंग्रेज अधिकारियों का क़त्ल । विद्रोही दस्तों का आहुवा आगमन । आहुवा ठाकुर कुशाल सिंह चाम्पावत द्वारा विद्रोहियों का नेतृत्व । जोधपुर की सेना परास्त । अंग्रेजी सेना से मुठभेड़ । विद्रोहियों कि दूसरी विजय । गवर्नर जनरल केनिंग द्वारा 20-1-1858 को एक बड़ी सेना आहुवा भेजी, विद्रोही परास्त । 1857-1858 कोटा 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा की सेना द्वारा विद्रोह । अंग्रेज अधिकारियों का क़त्ल । राज्य के कई भागों पर विद्रोहियों का अधिकार। 1 मार्च, 1858 को कर्नल रॉबर्ट की सेना द्वारा विद्रोही परास्त । विद्रोही नेताओं को फांसी। 1857 बांसवाडा बांसवाडा पर तांत्या टोपे का 1 दिसम्बर 1857 को अधिका

राजस्थान की मीनाकारी-

मीनाकारी की सर्वोत्कृष्ट कृति जयपुर में तैयार की जाती है जबकि कागज जैसे पतले परत पर मीनाकारी का कार्य बीकानेर के मीनाकार करते हैं।  थेवा कला (कांच के पर स्वर्ण मीनाकारी) के लिए प्रतापगढ़ प्रसिद्ध है।  संगमरमर पर मीनाकारी का कार्य जयपुर में होता है।  कुंदन कला (सोने के आभूषणों में रत्नों की जड़ाई) का कार्य जयपुर तथा नाथद्वारा में बहुतायत से होता है।  पीतल पर मीनाकारी का कार्य जयपुर तथा अलवर में बहुतायत से होता है।  पीतल पर सूक्ष्म मीनाकारी के कार्य को "मुरादाबादी काम" कहा जाता है।  कोफ्तगिरी - फौलाद (स्टील) से बनी वस्तुओं पर सोने के तारों की जड़ाई को कोफ्तगिरी कहते हैं।  कोफ्तगिरी का कार्य जयपुर तथा अलवर में अत्यधिक होता है।  कोफ्तगिरी की कला दमिश्क से पंजाब व गुजरात होते हुए राजस्थान में आई थी।  तहनिशा - तहनिशा के कार्य में डिजाइन को गहरा खोद कर उसमें तार भर दिए जाते हैं। अलवर के तारसाज तथा उदयपुर के सिकलीगर यह कार्य करते हैं।  बीकानेर में चांदी के डिब्बे तथा किवाड़ की जोड़िया बनाने का काम बहुत प्रसिद्ध है।  उदयपुर में व्हाइट मेटल के पशु

Jama Masjid of Tonk

टौंक की जामा मस्जिद -  टोंक की जामा मस्जिद का निर्माण टोंक रियासत के नवाब अमीर खां द्वारा 1246 हिजरी में शुरू करवाया था। बाद में उसके पुत्र नवाब वजीरुदौला ने 1297 से 1298 हिज़री संवत में इसे पूर्ण करवाया तथा। यह भारत की बड़ी मस्जिदों में से एक है और बीते युग की मुगल वास्तुकला को प्रदर्शित करती है।    अद्भुत है जमा मस्जिद की सुनहरी चित्रकारी और मीनाकारी- जामा मस्जिद नामक इस इमारत में इबादतगाह सहित चार विशाल मीनारें अपनी ऊँचाई और सुन्दर वास्तुकला के लिए अलग ही पहचान रखती है। मीनार की ऊंचाई इतनी है कि इन्हें काफी दूर से देखी जा सकती हैं। इस मस्जिद के मुगल शैली में निर्मित चार दरवाजे है। मस्जिद की मुख्य ईमारत पर तीन गुम्बद उसी तरह से निर्मित है जैसे दिल्ली व आगरा के शाहजहाँ एवं अन्य मुग़ल बादशाहों के महलों में बनाए गए हैं। यहाँ की स्थापत्य कला सोने-चाँदी व नीलम, पन्नों के रंग से की गई आकर्षक व मनोहारी बेलबूटों की चित्रकारी के कारण यह मस्जिद अपनी अनूठी पहचान रखती है। दीवारों पर बने हुए ये सुनहरे चित्र और मीनाकारी इस मस्जिद की सुंदरता को कई गुना बढ़ाते हैं।

राजपूताना में 1857 की क्रांति -

सूत्रपात एवं विस्तार - 1857 की क्रांति प्रारम्भ होने के समय राजपूताना में नसीराबाद , नीमच , देवली , ब्यावर , एरिनपुरा एवं खेरवाड़ा में सैनिक छावनियाँ थी। इन 6 छावनियों में पाँच हजार सैनिक थे किन्तु सभी सैनिक भारतीय थे। मेरठ में हुए विद्रोह ( 10 मई , 1857) की सूचना राजस्थान के ए.जी.जी. (एजेन्ट टू गवर्नर जनरल) जार्ज पैट्रिक लारेन्स को 19 मई , 1857 को प्राप्त हुई। सूचना मिलते ही उसने सभी शासकों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने राज्य में शान्ति बनाए रखें तथा अपने राज्यों में विद्रोहियों को न घुसने दें। यह भी हिदायत दी कि यदि विद्रोहियों ने प्रवेश कर लिया हो तो उन्हें तत्काल बंदी बना लिया जावे। ए.जी.जी. के सामने उस समय अजमेर की सुरक्षा की समस्या सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण थी , क्योंकि अजमेर शहर में भारी मात्रा में गोल बारूद एवं सरकारी खजाना था। यदि यह सब विद्रोहियों के हाथ में पड़ जाता तो उनकी स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो जाती। अजमेर स्थित भारतीय सैनिकों की दो कम्पनियाँ हाल ही में मेरठ से आयी थी और ए.जी.जी. ने सोचा कि सम्भव है यह इन्फेन्ट्री ( 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री) मेरठ से विद्रोह