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राजस्थान का हस्तशिल्प मीनाकारी

राजस्थान का हस्तशिल्प मीनाकारी -   ज्वैलरी पर मीनाकारी के लिए जयपुर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। जयपुर में मीनाकारी की कला महाराजा मानसिंह प्रथम (1589-1614) द्वारा लाहौर से लाई गई थी।    मीनाकारी का कार्य मूल्यवान व अर्द्धमूल्वान रत्नों तथा सोने व चांदी के आभूषणों पर किया जाता है। परंपरागत रूप से सोने पर मीनाकारी के लिए काले, नीले गहरे पीले नारंगी एवं गुलाबी रंग का प्रयोग किया जाता है। लाल रंग बनाने में जयपुर के मीनाकार कुशल हैं। मीनाकारी में फूल पत्ती, मोर आदि का प्रायः अंकन किया जाता है। जयपुर के अलावा राजसमंद जिले का नाथद्वारा भी मीनाकारी के लिए देश विदेश में प्रसिद्ध है। यहाँ पर भी सोने के आभूषणों और खिलौनों पर बड़ी सुंदर मीनाकारी की जाती है। यहाँ चाँदी के खिलौनों, बर्तनों एवं आभूषणों पर भी मीनाकारी की जाती है। कोटा के रेतवाली क्षेत्र में काँच पर विभिन्न रंगों से मीनाकारी की जाती है। बीकानेर में ऊँट की खाल पर स्वर्ण मीनाकारी की जाती है जिसे उस्ता कला के नाम से जाना जाता है। प्रतापगढ़ में भी यह कार्य दक्षता के साथ किया जाता है।   अन्य विशि

गहरे सदमे में हूँ!!

जी हाँ। जब से मुझे ये बात पता चली तब से ही गहरे सदमे में हूँ। एक प्रयास शुरू किया था पूरी मेहनत के साथ अच्छी और सारगर्भित वो सामग्री उपलब्ध कराने का जो इंटरनेट पर राजस्थान के बारे में उपलब्ध नहीं थी। एक गहरा धक्का उस समय लगा जब एक A Way For Sure Success... के नाम से झाँसा देने वाली और RPSC की प्रतियोगिताओं की तैयारी का दावा करने वाली तथाकथित PORTAL वेबसाइट ने एक ही दिन में मेरे ब्लॉग के सौ से अधिक पोस्ट ज्यों के त्यों कॉपी करके अपने नाम से प्रकाशित कर दिए। इतना गहरा सदमा लगने के बावजूद मैंने बेमन से लिखना जारी रखा लेकिन अब हिम्मत जवाब दे रही है। सोच रहा हूँ कि अब लिखना छोड़ दूँ ! दोस्तों एक पोस्ट को तैयार करने में दो से तीन घंटे लगते हैं। सामग्री जुटाने के लिए कई संदर्भ देखने पड़ते हैं। कहीं अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद भी करना पड़ता है। एक और बात कि मैं डेस्कटॉप से नहीं लिख रहा हूँ अपितु मोबाइल से ही टाइप कर रहा हूँ। बड़ी मेहनत लग रही है। लेकिन उन भाईसाहब ने तो एक ही दिन में मेरी मेहनत का सारा माल उड़ा कर अपनी वेबसाइट बना डाली। तो अब अलविदा कहने का वक्त आ गया है। अब और पोस्ट नहीं??

राजस्थान सामान्य ज्ञान क्विज

1. मोरध्वज राजस्थान की किस प्राचीन शैली के प्रसिद्ध चित्रकार हैं? उत्तर- किशनगढ़ शैली 2. मथेरण परिवार राजस्थान की किस प्रसिद्ध चित्रशैली से संबंधित हैं? उत्तर- बीकानेर शैली 3. राजस्थान की किस शैली में राजस्थानी चित्रकला का प्रारम्भिक और मौलिक रूप दिखाई देने के कारण इसे राजस्थानी चित्रशैलियों की जनक शैली कहा जाता है? उत्तर- मेवाड़ शैली 4. किस महाराणा के शासनकाल में मेवाड़ चित्रशैली का बहुत अधिक विकास हुआ? उत्तर- अमरसिंह के 5. काव्य और कला का मणिकाँचन संयोग राजस्थान की किस चित्रशैली में सर्वाधिक है? उत्तर- किशनगढ़ शैली में 6. महाराजा अनूपसिंह के शासनकाल में किस चित्रकला शैली का वास्तविक रूप में विकास हुआ? उत्तर- बीकानेर शैली 7. अनेक कलाविद् ने राजस्थान की किस शैली को मुगल शैली की प्रतिछाया बताया है? उत्तर- अलवर शैली को 8. खूबीराम शर्मा, घासीराम शर्मा और रेवाशंकर शर्मा किस शैली के प्रसिद्ध चित्रकार हैं? उत्तर- नाथद्वारा शैली के 9. नाथद्वारा शैली में कागज पर बनाए जाने वाले चित्रों को क्या कहा जाता है? उत्तर- पाना 10. उदयपुर शैली और ब्रज शैली का समन्वय किस चित्रकला शैली की विशेषता है? उत्तर- ना

सांस्‍कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्‍द्र (सीसीआरटी), उदयपुर

सीसीआरटी की स्‍थापना भारत सरकार, द्वारा मई, 1979 में नई दिल्ली में की गई थी। तब से इस केन्‍द्र ने महाविद्यालयों एवं विद्यालयों के विद्यार्थियों में संस्‍कृति के प्रचार एवं प्रसार की योजना अपने हाथों में ली। वर्ष 1995 में सीसीआरटी द्वारा मानव संसाधन और विकास मंत्रालय की स्‍थायी संसदीय समिति की अनुशंसा के अनुसार उदयपुर तथा हैदराबाद में दो क्षेत्रीय केन्‍द्रों की स्‍थापना की गई। सीसीआरटी का उदयपुर का क्षेत्रीय कार्यालय स्वरूपसागर के पास अंबावगढ़ में स्थित है। सीसीआरटी भारत सरकार के संस्‍कृति मंत्रालय के अधीन एक स्‍वायत्तशासी संगठन के रूप में कार्यरत है। सीसीआरटी का मुख्‍य लक्ष्‍य- छात्रों को संस्‍कृति की महत्‍ता के प्रति जागरूक बनाना है। इस हेतु देश भर के सेवारत शिक्षकों, शिक्षक प्रशिक्षकों, शैक्षिक प्रशासकों, छात्रों, युवाओं हेतु विविध प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन किए जाते हैं। इस केन्‍द्र की सर्वोच्‍च सत्‍ता सोसाइटी के पास निहित है जो एक नियंत्रक निकाय के रूप में कार्य करती है। सोसाइटी के मामलों का प्रबंधन, प्रशासन, निर्देशन तथा नियंत्रण सोसाइटी की कार्यकारिणी समिति द्व

राजस्थान की महिला विकास की योजनाएँ -

1. महिलाओं के प्रशिक्षण एवं रोजगार कार्यक्रम हेतु सहायता (स्टेप)– भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित इस योजना के अंतर्गत अल्प आयवर्ग की महिलाओं को रोजगार से जोड़ने हेतु भारत सरकार द्वारा स्वयंसेवी संस्थाओं को अनुदान दिया जाता है। योजना के उद्देश्य- महिलाओं को छोटे व्यावसायिक दलों में संगठित करना तथा प्रशिक्षण और ऋण के माध्यम से सुविधाएं उपलब्ध कराना। महिलाओं में कौशल वृद्धि के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध कराना। महिला दलों को सक्षम बनाना, ताकि वे स्वयं रोजगार तथा आयोत्पादक कार्यक्रम चला सके। महिलाओं के लिए प्रशिक्षण तथा रोजगार की परिस्थितियों में और अधिक सुधार करने के लिए समर्थन सेवाएं उपलब्ध कराना। कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण– यह योजना सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों, जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों, संघों, सहकारी तथा स्वैच्छिक संगठनों, गैर–सरकारी स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से चलाई जाती है। इस स्कीम के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले निकाय, संगठन अथवा अभिकरण ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत होने चाहिए भले ही उनके मुख्यालय

भारत सरकार द्वारा 1985-86 में स्थापित क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र का नाम व मुख्यालय, सदस्य राज्य 1. उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, पटियाला {जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश,पंजाब हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान व केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़} 2. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर {राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, केन्द्र शासित प्रदेश दमन और दीव तथा दादरा और नागर हवेली} 3. दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, तंजावुर {आंध्र प्रदेश, कर्नाटक,केरल, तमिलनाडु, केन्द्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, पुंडुचेरी} 4. दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, नागपुर {आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र} 5. पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, कोलकाता {असम, बिहार, झारखंड, मणिपुर, उड़ीसा, सिक्किम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल व केन्द्रशासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह} 6. उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहाबाद {उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली} 7. उत्तर पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, दिमापुर {अ

अद्भुत आकर्षण हैं उदयपुर के शिल्पग्राम में

भारत सरकार द्वारा स्थापित "पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र- WZCC" का ग्रामीण शिल्प एवं लोककला का परिसर 'शिल्पग्राम' उदयपुर नगर के पश्चिम में लगभग 3 किमी दूर हवाला गाँव में स्थित है। लगभग 130 बीघा (70 एकड़) भूमि क्षेत्र में फैला तथा रमणीय अरावली पर्वतमालाओं के मध्य में बना यह शिल्पग्राम पश्चिम क्षेत्र के ग्रामीण तथा आदिम संस्कृति एवं जीवन शैली को दर्शाने वाला एक जीवन्त संग्रहालय है। इस परिसर में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सदस्य राज्यों की पारंपरिक वास्तु कला को दर्शाने वाली झोंपड़ियां निर्मित की गई जिनमें भारत के पश्चिमी क्षेत्र के पांच राज्यों के भौगोलिक वैविध्य एवं निवासियों के रहन-सहन को दर्शाया गया है। इस परिसर में राजस्थान की सात झोपड़ियां है। इनमें से दो झोंपड़ियां बुनकर का आवास है जिनका प्रतिरूप राजस्थान के उदयपुर के गांव रामा तथा जैसलमेर के रेगिस्तान में स्थित सम से लिया गया है। मेवाड़ के पर्वतीय अंचल में रहने वाले कुंभकार की झोंपड़ी उदयपुर के 70 किमी दूर स्थित ढोल गाँव से ली गई है। दो अन्य झोंपड़ियां दक्षिण राजस्थान की भील व सहरिया आदि