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Showing posts with the label राजस्थान के दर्शनीय स्थल

सवाईमाधोपुर का प्रसिद्ध चमत्कारजी जैन मंदिर

 सवाईमाधोपुर का प्रसिद्ध चमत्कारजी जैन मंदिर चमत्कारजी जैन मंदिर सवाई माधोपुर में स्थित है। यह दिगंबर जैन समुदाय का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक आकर्षण है जिसे "चमत्कार जी अतिशय क्षेत्र" भी कहा जाता है। यह सवाईमाधोपुर के रेलवे स्टेशन मुख्य मार्ग पर स्थित है। यहाँ मूल नायक चमत्कार जी (भगवान आदिनाथ या ऋषभदेव जी ) है। यहाँ के मंदिर में भगवान आदिनाथ की 6 इंच ऊँची पद्मासन मुद्रा में स्फटिक मणि (सफेद क्वार्टज) से निर्मित मुख्य प्रतिमा स्थापित है।  मंदिर में दो वेदियां हैं। सामने की वेदी में बैठने की मुद्रा में मूल नायक भगवान पद्मप्रभु की मूर्ति स्थापित है, जो कि गहरे लाल पत्थर से बनी 1 फीट 3 इंच ऊँची है और इसे विक्रम संवत 1546 में स्थापित किया गया था। भगवान चंद्रप्रभु, पंच बाल यति और अन्य तीर्थंकरों की अन्य कलात्मक मूर्तियाँ भी यहाँ देखने लायक हैं। इसके पीछे दूसरी वेदी है जहाँ मूल नायक श्री चमत्कार जी की मूर्ति स्थापित है और अन्य प्राचीन मूर्तियाँ भी यहाँ स्थापित हैं। कहा जाता है कि यह प्रतिमा जोगी नामक किसान को अपने खेत को जोतते समय प्राप्त हुई थी। भगवान आदि

विभीषण का विश्व में एकमात्र मंदिर है कोटा के कैथून में

विश्व में विभीषण का एकमात्र मंदिर राजस्थान के कोटा जिले के उस स्थान में स्थित है जो कोटा डोरिया साड़ियों के हस्तकला उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध है। जी हाँ मित्रों, कोटा से 16 किमी दूर कैथून कस्बे में विभीषण का प्रसिद्ध मंदिर एक बड़े भू-भाग में स्थित है। इसमें विभीषण की विशाल मूर्ति लगी है, जहां इसका विधिवत पूजा-पाठ होता है। यह प्राचीन मंदिर चौथी सदी के आसपास निर्मित माना जाता है। कैथून में होली के दिन से अगले 7 दिनों तक एक विशाल मेला लगता है जिसमें विभीषणजी की विशेष पूजा चलती है। इस आकर्षक सात दिवसीय मेले में लाखों लोग भाग लेते हैं तथा अधर्म व अहंकार के खिलाफ धर्म की विजय में विभीषण जी की मुख्य भूमिका की सराहना करके उनकी पूजा व स्तुति करते हैं। कैथून कस्बा अपने इस विशिष्ट होली उत्सव के लिए पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। अन्याय के घोर विरोधी भक्तराज विभीषण की यहाँ बड़ी मान्यता है। होली के अवसर पर कैथून के इस विभीषण मंदिर में उत्सव-सा माहौल रहता है। इस अवसर पर होली के दिन शोभायात्रा निकाली जाती है जिसके पश्चात राक्षस हिरण्यकश्यप के विशाल पुतले का विधिवत दहन किया जाता है तथा इसके बाद राम

राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जालौर की "सुंधामाता"- (Sundha Mata)

अरावली की पहाड़ियों में 1220 मीटर की ऊँचाई के सुंधा पहाड़ पर चामुंडा माता जी का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जिसे सुंधामाता के नाम से जाना जाता है। सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी में सागी नदी से लगभग 40-45 फीट ऊंची एक प्राचीन सुरंग से जुड़ी गुफा में अघटेश्वरी चामुंडा का यह पुनीत धाम युगों-युगों से सुशोभित माना जाता है। यह जिला मुख्यालय जालोर से 105 Km तथा भीनमाल कस्बे से 35 Km दूरी पर दाँतलावास गाँव के निकट स्थित है। यह स्थान रानीवाड़ा तहसील में मालवाड़ा और जसवंतपुरा के बीच में है। यहाँ गुजरात, राजस्थान और अन्य राज्यों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पर्यटक माता के दर्शन हेतु आते हैं। यहाँ का वातावरण अत्यंत ही मोहक और आकर्षक है जिसे वर्ष भर चलते रहने वाले फव्वारे और भी सुंदर बनाते हैं। माता के मंदिर में संगमरमर स्तंभों पर की गई कारीगरी आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों के स्तंभों की याद दिलाती है। यहाँ एक बड़े प्रस्तर खंड पर बनी माता चामुंडा की सुंदर प्रतिमा अत्यंत दर्शनीय है। यहाँ माता के सिर की पूजा की जाती है। यह कहा जाता है कि चामुंडा जी का धड़ कोटड़ा में तथा चरण सुंदरला पाल (जालोर) में पू

Dadhimati Mata temple of Goth Manglod-
गोठ मांगलोद का दधिमति माता मंदिर शक्तिपीठ-

गोठ और मांगलोद नामक गाँवों के मध्य नागौर जिला मुख्यालय से उत्तर पूर्व में लगभग 44 किमी दूरी पर जायल तहसील में एक प्राचीन शक्ति पीठ स्थित है जो दधिमति माता के मंदिर के नाम से विख्यात है। 'दाहिमा' (दाधीच) ब्राह्मण दधिमति माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं तथा इस मंदिर को अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित मंदिर मानते हैं। यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 665 (608 ई.) के लगभग माना जाता है, जिसके अनुसार इस मंदिर के निर्माण के लिए दाधीच ब्राह्मणों द्वारा दान किया गया था, जिसका मुखिया 'अविघ्न नाग' था। कुछ विद्वान अभिलेख लिपि के अक्षर तथा राजस्थान में गुप्त राजाओं का शासन क्षेत्र के आधार पर इस मंदिर का निर्माण गुप्त शासनकाल के अंतिम दिनों में चौथी शताब्दी में हुआ मानते हैं। कुछ विद्वान उपरोक्त काल से असहमत होते हुए, इसे 9 वीं शताब्दी का मानते हैं।   दधिमति दधिची ऋषि की बहन थी। दधिमति माता को महालक्ष्मी का अवतार माना जाता है। दधिमति का जन्म माघ शुक्ल सप्तमी (रथ सप्तमी) को आकाश के माध्यम से हुआ माना जाता है। दधिमति माता का मंदिर देवी महामात्य का वर्

राजस्थान की धरोहर किराडू के प्राचीन मंदिर

यह स्थान राजस्थान के बाड़मेर से लगभग 35 किमी उत्तर-पश्चिम में है। किराडू के विश्व प्रसिद्ध पाँच मंदिरों का समूह बाड़मेर मुनाबाव रेलमार्ग पर खड़ीन स्टेशन से 5 किमी पर हथमा गांव के पास पहाड़ी के नीचे अवस्थित है। किराडू की स्थापत्य कला भारतीय नागर शैली की है। बताया जाता है कि यहाँ इस शैली के लगभग दो दर्जन क्षत विक्षत मंदिर थे लेकिन अभी ये केवल 5 हैं। यहाँ के मंदिरों में रति दृश्यों के स्पष्ट अंकन होने की वजह से किराडू को राजस्थान का खजूराहो भी कहा जाता है। सन् 1161 के एक शिलालेख के अनुसार किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप था तथा यह किसी समय परमार राजाओं की राजधानी था। इतिहासकारों के अनुसार किरातकूप पर गुजरात के चालुक्य राजवंश के प्रतिनिधि के रूप में परमार शासकों का शासन था। बताया जाता है कि चन्द्रावती के परमार राजा कृष्णराज द्वितीय के पुत्र सच्चा राजा ने 1075 एवं 1125 ईस्वी के मध्य इस स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इन्हीं के वंशज सोमेश्वर ने सन् 1161 तक किराडू पर शासन किया तथा सन् 1178 तक यह महाराज पुत्र मदन ब्रह्मदेव के अधीन रहा और उसके बाद आसल ने यहाँ शासन किया था। यही वह काल था

तीर्थों का भांजा धौलपुर का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मचकुण्ड
Rajasthan GK

धार्मिक स्थल मचकुण्ड अत्यंत ही सुन्दर व रमणीक धार्मिक स्थल है जो प्रकृति की गोद में राजस्थान के धौलपुर नगर के निकट स्थित है। यहां एक पर्वत है जिसे गन्धमादन पर्वत कहा जाता है। इसी पर्वत पर मुचुकुन्द नाम की एक गुफा है। इस गुफा के बाहर एक बड़ा कुण्ड है जो मचकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। इस विशाल एवं गहरे जलकुण्ड के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे मंदिर तथा पूजागृह पाल राजाओं के काल (775 ई. से 915 ई. तक) के बने हुए है। यहां प्रतिवर्ष ऋषि पंचमी तथा भादों की देवछट को बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मचकुण्ड को सभी तीर्थों का भान्जा कहा जाता है। मचकुण्ड का उद्गम सूर्यवंशीय 24 वें "राजा मुचुकुन्द" द्वारा बताया जाता है। यहां ऐसी धारणा है कि इस कुण्ड में नहाने से पवित्र हो जाते हैं। यह भी माना जाता है कि मस्‍सों की बीमारी से त्रस्‍त व अन्य चर्म रोगों से परेशान लोग इस कुण्‍ड में स्‍नान करें तो वे इनसे छुटकारा पा जाते हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि इस कुंड में बरसात के दिनों में जो पानी आकर इकट्ठा होता है उसमें गंधक व चर्म रोगों में उपयोगी अन्य

मीणा समाज का भूरिया बाबा का प्रसिद्ध मेला

सिरोही जिले के पोसालिया से करीब 10 किमी दूर ग्राम चोटिला के पास सुकड़ी नदी के किनारे मीणा समाज के आराध्यदेव एवं प्राचीन गौतम ऋषि महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे " भूरिया बाबा " के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वस्तुतः मीणा समुदाय के लोग गौतम महादेव को भूरिया बाबा के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर के परिसर में पश्चिमी राजस्थान के आदिवासियों का सबसे बड़ा दो दिवसीय वार्षिक मेला भरता है। इस वर्ष यह मेला 14 एवं 15 अप्रैल को भरा। मीणा समाज के लिए यह मेला अत्यंत महत्वपूर्ण और भारी आस्था का प्रतीक होता है। मेले को लेकर मीणा समाज की ओर से जोर शोर से तैयारियाँ की जाती है तथा मंदिर को खूब सँवार कर आकर्षक रोशनी से सजाया जाता है। इस मेले में प्रतिवर्ष सिरोही , पाली व जालोर जिलों सहित पड़ोसी राज्यों से मीणा समाज के लाखों लोग भाग लेते हैं। मेले से एक दिन पूर्व से ही यहाँ श्रद्धालुओं के आने जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है