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Agricultural practices in Rajasthan राजस्थान की कृषि पद्वतियां

Agricultural practices in Rajasthan - राजस्थान में कृषि पद्वतियां राजस्थान की कृषि मूलत: वर्षा आधारित है लेकिन सिंचाई के साधनों निरंतर वृद्धि के कारण यहाँ पर विभिन्न खाद्यान्न व व्यापारिक फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। राजस्थान की भौतिक जलवायुगत सामाजिक-आर्थिक दशाआें की विविधताओं के कारण कृषि पद्वति परम्पराओं साधनों आदि में स्थानिक भिन्नता पाई जाती है। राज्य में कृषि का आर्थिक दृष्टि से नहीं वरन् सामाजिक दृष्टि से भी महत्त्व है। वर्तमान में राज्य की कुल आय का लगभग 50 प्रतिशत एवं पशुपालन से ही प्राप्त होता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। कृषि क्षेत्र की दृष्टि से इसका देश में चौथा स्थान है। राजस्थान में देश के कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 11 प्रतिशत भाग है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 48.30 प्रतिशत शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। यहाँ की कृषि मुख्यतः वर्षा आधारित है। यहाँ की कृषि में स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है। यहाँ पर कृषि राष्ट्रीय आय का साधन, जीवन का आधार, रोजगार का प्रमुख साधन, खाद्यान्न प्राप्ति का स्रोत तथा द्वितीयक व तृतीयक व्यवसायों के

कैसे करें राजस्थान में खजूर की खेती - राज्य की सूक्ष्म एवं गर्म जलवायु में खजूर की खेती

खजूर शुष्क जलवायु में उगाया जाने वाला प्रचीनतम फलदार वृक्ष है। पाल्मेसी कुल के इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम फीनिक्स डेक्टीलीफेरा है। मानव सभ्यता के सबसे पुराने कृषि किए जाने वाले फलों में से यह एक फल है। इसकी उत्पत्ति फारस की खाड़ी मानी जाती है। दक्षिण इराक (मेसोपोटोमिया) में इसकी खेती ईसा से 4000 वर्ष पूर्व प्रचलित थी। मोहनजोदड़ों की खुदाई के अनुसार भारत-पाकिस्तान में भी ईसा से 2000 वर्ष पूर्व इसकी कृषि विद्यमान थी। पुरातन विश्व में खजूर की व्यवसायिक खेती पूर्व में सिन्धु घाटी से दक्षिण में तुर्की-परशियन-अफगान पहाड़ियों, इराक किरकुक-हाईफा तथा समुद्री तटीय सीमा के सहारे-सहारे टयूनिशिया तक बहुतायत में की जाती थी। इसकी व्यवसायिक खेती की शुरूआत सर्वप्रथम इराक में हुई। ईराक, सऊदी अरब, इरान, मिश्र, लिबिया, पाकिस्तान, मोरक्को, टयूनिशिया, सूडान, संयुक्त राज्य अमेरिका व स्पेन विश्व के मुख्य खजूर उत्पादक देश है। हमारे देश में सर्वप्रथम 1955 से 1962 के मध्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केन्द्र अबोहर द्वारा मध्यपूर्व के देशों संयुक्त राज्य अमेरिका व पाकिस्तान से खजूर की कुछ व्यवसायिक

कैसे करें राजस्थान में रतनजोत की खेती -

राजस्थान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में उपयोगी है रतनजोत की खेती रतनजोत उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाने वाला एक झाडीनुमा पौधा है। यह वृक्षमूल वाले सभी तिलहनों में सर्वाधिक उपादेय, हरा-भरा रहने वाला, मुलायम व चिकनाईयुक्त लकड़ीवाला झाड़ीदार पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम जेट्रोफा करकास है । यह तीन व चार मीटर की ऊंचाई का यह पादप लगभग सदाबहार व मुलायम लकड़ी का पौधा होता है। इसे राजस्थान के अर्द्ध शुष्क जलवायु के पथरीले, रेतीले व पहाड़ी क्षेत्र में आसानी से लगाया जा सकता है। इसके लिए कम पानी की जरूरत होती है, यह जल्दी फल देना भी प्रारंभ कर देता है और लगभग 30-40 सालों तक कम देख-रेख के बावजूद बहुवर्षीय रूप में फलता रहता है । इसे पशु नहीं खाते हैं और न ही इस पर बीमारियों का प्रकोप होता है। इसे खेतों के बाड़  के रूप में लगाया जा सकता है।  इसका मुख्य उपयोगी भाग बीज है जिसमें लगभग पच्चीस से पैंतीस प्रतिशत तक अखाद्य तेल पाया जाता है। इसकी तीन व पाँच कोणीय हृदयाकार पत्तियाँ दो एवं पन्द्रह सेन्टीमीटर लंबी होती है। इसमें पीले-हरे फूल टहनियों के अंत में माह अप्रेल-मई

कैसे करें राजस्थान में जीरे की खेती

कैसे करें राजस्थान में जीरे की कृषि  जीरा कम समय में पकने वाली मसाले की एक प्रमुख फसल है। इससे अधिक आमदनी होती है। राज्य में जीरे की खेती मुख्यतः अजमेर, पाली, जालौर, सिरोही, बाड़मेर,नागौर जयपुर एवं टौंक जिलो में की जाती है। राजस्थान जीरा उत्पादन में गुजरात के बाद देशभर में दूसरे स्थान पर है। भूमि एवं जलवायुः-   जीरे की खेती के लिए हल्की एवं दोमट उपजाऊ भूमि अच्छी होती है तथा इसमें जीरे की खेती आसानी से की जा सकती है। जीरे की उन्नत किस्में- आर एस 1- यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है इसका बीज कुछ बड़ा रोएँदार होता है।  यह किस्म राजस्थान के समस्त भागों के लिये उपयुक्त है।  यह देशी किस्म की अपेक्षा अधिक रोग रोधी तथा 20 से 25 प्रतिशत अधिक उपज देती है।  यह किस्म 80 से 90 दिनों में पककर 6 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है। आर जेड 19- राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म के दाने सुडौल, आकर्षक तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं।  यह 125 दिन में पक जाती है। यह स्थानीय किस्मों तथा आर एस 1 की तुलना में उखटा,छाछ्या व झुलसा रोग से कम प्रभावित होती है। 

राजस्‍व मण्‍डल राजस्‍थान का इतिहास-

पृष्ठभूमि- राजस्थान में प्राचीन काल से ही भूमि, कृषि तथा इनके प्रशासन का प्रचलन रहा है। भारत में सदा से ही कृषि-भूमि और कृषक ही सर्वोपरि रहा है। यही कारण है कि भारत में विभिन्न शासकों ने भू-राजस्व व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक और कानूनी प्रावधान बनाये थे। अंग्रेजों ने भी ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी के माध्‍यम से भारतवर्ष में अपने शासन की जड़ें जमाने के लिए एक प्रभावी प्रशासनिक संस्‍था के रूप में राजस्‍व-मण्‍डल (Board of Revenue ) की स्‍थापना की, जिसका अनुसरण सभी देशी रियासतों ने किसी न किसी रूप में किया। अंग्रेजों द्वारा स्थापित राजस्‍व मण्‍डल के भू-राजस्‍व प्रशासन की विशेषताएं इसे मुगलों के भू-राजस्‍व प्रशासन से पृथक करती है। इसमें मुख्य अंतर यह था कि अंग्रेजी भू-राजस्व प्रशासन विभिन्‍न्‍ा मण्‍डलों (Boards ) के माध्‍यम से ही संचालित होता था। यह उनका अदभुत एवं सफल प्रशासनिक प्रयोग था। इसकी सफलता को देखते हुए ही स्‍वतंत्रता-प्राप्ति एवं रियासती एकीकरण के बाद भी इसे बनाए रखना आवश्‍यक समझा गया। पिण्‍डारी युद्वों तथा मराठों के आक्रमणों से बचने के लिए राजपूताना की विभिन्न देशी