स्वतन्त्रता पूर्व राजस्थान में सामाजिक सुधार पृष्ठ भूमि - 19 वीं सदी में भारत ने पुनर्जागरण के युग में प्रवेश किया , समाज सुधार आन्दोलन हुए , राजस्थान भी इस जागरण से अछूता नहीं रहा। प्राचीन काल से ही कुछ प्रथाएं और परम्पराएं विकसित हुई कुछ नई प्रथाओं ने जन्म लिया कुछ पुरानी प्रथाओं ने विकृत स्वरूप ग्रहण कर लिया था , फलस्वरूप समाज को एक नई क्रांन्ति की आवश्यकता हुई। राजपूताना का समाज कई धर्मो मुख्यतः हिन्दू , जैन , मुस्लिम और सिक्खों से संगठित समुदाय था। हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था जातिगत स्वरूप में स्थापित थी , जातियाँ उपजातियों में विभक्त थी। प्राचीन काल में समाज में वर्ण व्यवस्था श्रम और कार्य विभाजन पर आधारित एक सकारात्मक व्यवस्था थी , लेकिन कालान्तर में यह जातीय स्वरूप ग्रहण करते हुए कार्य विभाजन के नकारात्मक स्वरूप सोपान व्यवस्था में बदल गई। विवाह संस्था सामाजिक संगठन की सबसे मजबूत व्यवस्था रही है , लेकिन इसमें भी बालविवाह , अनमेल विवाह , जैसे तत्व जुड़ गए। इसी प्रकार कुछ अन्य कुप्रथाऐं सती प्रथा , दासप्रथा , मानव व्यापार , डाकन प्रथा , समाधि , मृत्यु भोज आदि