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How to Farm Drumstick in rajasthan - कैसे करे सहजन की खेती rajasthan

 कैसे करे सहजन की खेती Rajasthan

How to Farm Drumstick in rajasthan - कैसे करे सहजन की खेती rajasthan
सहजन की खेती


क्या है सहजन (Moringa oleifera)


सहजन को अंग्रेजी भाषा में ड्रमस्टिक कहा जाता हैं, यह एक औषधीय पौधा होता है। यह मोरिंगंसी कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। यह 7-8 मीटर ऊँचा वृक्ष होता है, जो भारत में प्राय: सभी भागों में पाया जाता है। अलग - अलग क्षेत्रों में इसे अलग - अलग नाम से भी जाना जाता है।

इसकी छाल एवं शाखाएँ कोमल होती हैं तथा पर्ण संयुक्त त्रिपिच्छकी व लम्बी होती है। फूल हल्के नीले-सफेद रंग के होते हं जो गुच्छों में लगते हैं। फल हरे-भूरे रंग की लम्बी फलियों जैसे लटके हुए रहते है।

सहजन का रासायनिक संगठन-

इसकी पत्तियों, फलों व फूलों में कई तरह के आवश्यक एमिनो अम्ल पाये जाते हैं जैसे एलानिन, आर्जिनिन, गलाइसिन, सेरीन, लाइसीन, थ्रिओनिन, वेलीन, एस्पार्टीक तथा ग्लूटेमिक अम्ल आदि। इसकी पत्तियां व फलों में विटामिन ‘ए‘, ‘सी‘ (एस्कोर्बिक अम्ल) व निकोइनिक अम्ल पाया जाता है। इसके फलों में कई तरह के एल्केलॉइड्स तथा क्विरसीटिन व केम्पफेरॉल फ्लेवोनॉइड्स होते है।

इसके तने में गौंद निकलता है जो एक पॉलीयुरोनाइड होती है जिसमें आर्बीनोज, ग्लेक्टोज व ग्लूकोरोनिक अम्ल होते हैं। इसके बीजों में स्टिगमास्टिरोल तथा मोरिगाइन नामक ग्लूकोसाइड भी पाया जाता है। इसके तने से 4- हाइड्रोक्सीमेलेइन, वेनीलिन, ऑक्टाकोजेनोइक अम्ल, घ्-साइटोस्टिरॉल व घ्- साइटोस्टिनॉन पृथक् किये गये हैं।

इस पौधे से कई तरह की औषधियां बनाई जाती हैं, इसलिए देश में ही नहीं विदेशों में भी इसकी मांग बहुत अधिक होती हैं, इस कारण इसका निर्यात का कार्य भी काफी अधिक होता है। इसकी फसल की बुवाई में बहुत ही कम लागत आती है, अतः काफी इसकी कृषि करके धन कमाया जा सकता है। सहजन की कृषि करना आपके लिए काफी लाभकारी व्यवसाय है।

सहजन के औषधीय उपयोग-

Drumstick सहजन


1. ताजी जड़ व तने की छाल को पानी के साथ रगड़कर पेस्ट बनाया जाता है जिसे जोडों के दर्द में प्रयोग किया जाता है।

2. सर्प व कुुत्ते के काटने पर जो घाव बनते हैं उनको भरने के लिये इसकी पत्तियों को नींबू के साथ रगड़कर लगाया जाता है।

3. इसकी व नीम की छाल का पाउड़र बराबर मात्रा में दो-तीन दिन तक लेने से घाव भर जाते हैं।

4. ताजी पत्तियों के अर्क को दूध व चीनी के साथ लेने से अजीर्ण या मदाग्नि में आराम मिलता है।

5. बीज पाउड़र को ट्यूब द्वारा नाक में डालने से माइगे्रन, सिर दर्द, सिर का भारीपन आदि में आराम मिलता है।

6. इसकी पत्तियों के रस को शहद के साथ मिलाकर आँखों में डालने से कन्जक्टिवाइटिस में आराम मिलता है।

7. इसके बीजों का तेल जोड़ो पर लगाने से जोड़ों के दर्द व सूजन में आराम मिलता है।

8. इसके पुष्पों व फलों का साग खाने से भूख बढ़ती है।

9. गर्दन में सूजन आने पर इसकी पत्तियों का काढा़ घी के साथ लेने से आराम मिलता है।

10. इसकी ताजी जड़ों का काढ़ा मूत्र मार्ग की पथरी के लिये हितकारी है।

11. इसकी पत्तियों को काढ़ा पीने से पसीना बहुत निकलता है। इसलिये यह बुखर में लाभदायक है।

12. इसके पुष्प टॉनिक के रूप में उपयोग किये जाते हैं।

13. इसके पुष्पों का सेवन करने से मूत्र खुलकर आता है।

14. हृदय व मधुमेह रोगियों के लिये फलियों को उबाल कर लेना लाभदायक होता है।

15. इसकी पत्तियों को रस एंटीबैक्टीरियल गुण दर्शाता है।

कैसे करे सहजन की खेती-


आप सहजन की कृषि लगभग 1 एकड़ जमीन में कर सकते हैं, जिसमें आप कम से कम 1200 बीज बो सकते हैं। सहजन की कृषि करने के लिए आप इसके बीज को दिन के समय में बोए। इसकी बुवाई आप सूखी मिट्टी में करनी चाहिए। सहजन की कृषि करने के लिए आप 1 फुट चौड़ा एवं 1 फुट गहरा गड्ढा करें। इसके बाद इसे ढीली मिट्टी से भर दें और साथ में जैविक खाद भी डाले। इसके बाद इसमें थोड़ा - थोड़ा पानी देते रहें ध्यान रहे ज्यादा पानी की आवश्यकता इसे नहीं होती है। लगभग 12 दिनों के अंदर पौधा उगना शुरू हो जायेगा। इसकी बुवाई करने के बाद इसका थोड़ा बहुत रख रखाव करना ही बहुत होता है। बुवाई करने के बाद जब यह अच्छे से पनप जाये तो इसके बाद इसकी कटाई एवं छटाई करें।  सहजन के पौधों से पौधों की दूरी व लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखते हुए रोपाई करनी चाहिए तथा पौधे जब 75 सेंटीमीटर के हो जाए तो इस के मुख्य कल्ले की कटिंग कर देनी चाहिए, इस से पौध में अधिक कल्ले निकल आते हैं।

सहजन की उन्नत किस्में -


सहजन की फसल साल भर में सिर्फ एक बार ही, वह भी कुछ ही महीने के लिए मिल पाती है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी प्रजातियों को ईजाद करने में कामयाबी पाई हैं, जो साल में 2 बार फसल देने में सक्षम हैं। इन प्रजातियों में रोहित 1, धनराज, केएम 1, केएम 2, पीकेएम-1 और पीकेएम-1 प्रमुख हैं।

रोपाई के 4-6 महीने बाद ही सहजन की रोहित 1 प्रजाति के पौधे से पैदावार मिलनी शुरू हो जाती है। इस से 10 साल तक व्यावसायिक उपज ली जा सकती है। यह प्रजाति सालभर में 3 बार फसल देती है। इस की फलियां गहरे हरे रंग की होती हैं, वह क्वालिटी में बहुत अच्छी होती हैं।

सहजन के कोयंबटूर 2 प्रजाति में फलियों की लंबाई 25 से 35 सेंटीमीटर होती है। यह रंग में गहरा हरा और स्वादिष्ट होती है। पीकेएम-1 किस्म से साल में 2 बार उपज ली जा सकती हैजबकि पीएम 2 किस्म का कच्चा लिका रंग में हरा है और अच्छा स्वाद देता है, इस का भी उत्पादन अच्छा होता है।

खाद एवं उर्वरक -


सहजन की फसल में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 30 किलोग्राम सल्फर और 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट की आवश्यकता होती है। बुवाई से पूर्व 30 किलोग्राम नाइट्रोजन व बाकी उर्वरक की पूरी मात्रा को मिट्टी में मिला देना चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 दिन से 45 दिन बाद देनी चाहिए।


सिंचाई-


अगर आप नर्सरी से पौधे लाकर रोपाई करते हैं तो आपको खेत में पौधों की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। पहली सिंचाई के एक हफ्ते बाद दूसरी सिंचाई व बाकी सिंचाई हर 15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। फूल लगने के दौरान खेत ज्यादा सूखा नहीं रहना चाहिए या ज्यादा नमी रहने पर फूल के झड़ने की समस्या होती है।

खरपतवार नियंत्रण-


सहजन की फसल में उगे खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से पेंडीमिथेलिन का छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही 25 से 30 दिन के अंतराल पर निराई गुड़ाई करने से भी खरपतवार नियंत्रण किया जाना चाहिए।

कीट की रोकथाम-


सहजन की फसल में आमतौर पर पत्तों को खाने वाली इल्लियां पिल्लू, फल मक्खी का प्रकोप होता है जो अकसर बारिश में फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। ये इल्लियां सहजन की पत्तियों को खा कर नष्ट कर देती हैं, इन इल्लियों की रोकथाम के लिए घर पर तैयार किए गए जैव कीटनाशी या नीम तेल का छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है। इनकी रोकथाम हेतु 0.2 प्रतिशत मेलाथियोन या 0.15 प्रतिशत मोनोक्रोटोफास दवा का छिड़काव भी कर सकते हैं ।

उखटा रोग के नियंत्रण के लिए हमें 0.2 प्रतिशत कार्बेंडाजिम का छिड़काव कर सकते हैं ।

सहजन के पाउडर का आरम्भ हुआ निर्यात -

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए भारत ने सहजन-मोरिंगा पाउडर का निर्यात शुरू कर दिया है। दिसम्बर 2020 महीने की 29 तारीख को दो टन जैविक सहजन पाउडर अमेरिका को वायु मार्ग के जरिये भेजा गया। कृषि और प्रसंस्करित खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण-एपीडा ने इस संबंध में निजी कंपनियों को आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराया है। सहजन सदियों से औषधीय गुणों और स्वास्थ्यवर्धक होने के कारण कई रूपों में इस्तेमाल किया जाता है।

Comments

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