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Showing posts with the label राजस्थान की स्थापत्य कला

बाडोली का मंदिर समूह-

बाडोली के मंदिरों का समूह राजस्थान के प्रमुख नगर कोटा से लगभग 50 किलोमीटर दूर दक्षिण में चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा से मात्र 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह स्थल चंबल तथा बामिनी नदी के संगम से मात्र पाँच किलोमीटर दूर है। बाडोली प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला की दृष्टि से राजस्थान का एक प्रसिद्ध स्थल है। यहाँ स्थित मन्दिर समूह का काल 8वीं से 11वीं शताब्दी तक का है। नवीं तथा दसवीं शताब्दी में यह स्थल शैव पूजा का एक प्रमुख केंद्र था, जिनमें शिव तथा शैव परिवार के अन्य देवताओं के मंदिर थे। यहाँ स्थित मन्दिर समूह में नौ मन्दिर हैं, जिनमें शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मन्दिर आदि प्रमुख हैं। बाडोली के 9 मंदिरों में से आठ दो समूहों में हैं। मंदिर संख्या 1-3 जलाशय के पास हैं एवं अन्य पाँच मंदिर इनसे कुछ दूर एक दीवार से घिरे अहाते में स्थित है जबकि एक अन्य मंदिर उत्तर-पूर्व में लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित हैं। इसके अलावा कुछ अन्य मंदिरों के अवशेष भी यहाँ विद्यमान हैं। यहाँ के इस मन्दिर समूह में शिव मन्दिर प्रमुख है, जो घटेश्वर शिवालय के नाम से

Cultural achievements of Maharana Kumbha- महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ -

कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ - मेवाड़ के राणाओं की विरासत में महाराणा कुम्भा एक महान योद्धा, कुशल प्रशासक, कवि, संगीतकार जैसी बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी होने साथ-साथ विभिन्न कलाओं के कलाकारों तथा साहित्यसर्जकों के प्रश्रयदाता भी थे। इतिहासकार कुम्भा की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि महाराणा कुंभा के व्यक्तित्व में कटार, कलम और कला की त्रिवेणी का अद्भुत समन्वय था। लगातार युद्धों में लगे रहने के बावजूद 35 वर्ष लम्बा कुम्भा का काल सांस्कृतिक दृष्टि से मेवाड़ के इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है। निःसंदेह हम कह सकते हैं कि इतिहास में कुंभा का जो स्थान एक महान विजेता के रूप में है, उससे भी बड़ा व महत्त्वपूर्ण स्थान उसका स्थापत्य और विविध विद्याओं की उन्नति के पुरोधा के रूप में है। कुम्भा काल की वास्तुकला - कुंभा वास्तु व स्थापत्य कला का मर्मज्ञ था। कुम्भाकालीन सांस्कृतिक क्षेत्र में वास्तु-कला का महत्त्व सर्वाधिक है। इस काल में मेवाड़ ने वास्तुकला के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगति की थी। उसकी स्थापत्य कला को हम निम्नांकित तीन भागों में बांट सकते हैं - 1. मंदिर                          

Deeg's fascinating water castle - डीग के चित्ताकर्षक जल महल

डीग के चित्ताकर्षक जलमहल- भरतपुर जिले में स्‍थित प्राचीन दीर्घपुरा, डीग ( अक्षांश 27° 25', रेखांश 77° 15' ) को 18वीं-19वीं शताब्‍दी ई. के दौरान जाट शासकों का मजबूत गढ़ बना था। राचीन पवित्र ब्रज-भूमि की क्षेत्रीय सीमाओं में आने वाला डीग दिल्‍ली से 153 कि.मी. तथा आगरा से 98 कि.मी. की दूरी पर स्‍थित है। भरतपुर के महाराजा बदन सिंह (1722-56 ई.) ने राज्य सिंहासन प्राप्‍त करने के पश्‍चात् समुदाय प्रमुखों को इकट्ठा किया था और इस प्रकार वे भरतपुर में जाट घराने का प्रसिद्ध संस्‍थापक बने। डीग का नगरीकरण शुरू करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। उन्होंने ही इस स्‍थान को अपनी नवस्‍थापित जाट रियासत के मुख्‍यालय (राजधानी) के रूप में चुना था। डीग के भवनों एवं उद्यानों के विन्यास से यह स्पष्ट हो जाता है कि भरतपुर के शासक कुशल शासक ही नहीं थे, वरन अच्छे कला-प्रेमी एवं कला संरक्षक थे। उनके समय में हुए निर्माण वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं। बदन सिंह को सौन्दर्य कला, स्थापत्य कला और वास्तु का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने डीग के किले में सुन्दर भवन बनाए, जिनको पुराना महल नाम से जा

Hawelis of Rajasthan - राजस्थान का हवेली स्थापत्य

राजस्थान का हवेली स्थापत्य- राजस्थान में बड़े - बड़े सेठ साहूकारों तथा धनी व्यक्तियों ने अपने निवास के लिये विशाल हवेलियों का निर्माण करवाया। ये हवेलियाँ कई मंजिला होती थी। शेखावाटी , ढूँढाड़ , मारवाड़ तथा मेवाड़ क्षेत्रों की हवेलियाँ स्थापत्य की दृष्टि से भिन्नता लिए हुए हैं। शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियाँ अधिक भव्य, आकर्षक एवं कलात्मक है। जयपुर , जैसलमेर , जोधपुर , बीकानेर , तथा शेखावाटी के रामगढ़ , मण्डावा , पिलानी , सरदारशहर , रतनगढ़, नवलगढ़ , फतहपुर , मुकुंदगढ़ , झुंझुनूं, महनसर, चुरू आदि कस्बों में खड़ी विशाल हवेलियाँ आज भी अपने स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। राजस्थान की हवेलियाँ अपने छज्जों , बरामदों और झरोखों पर बारीक व उम्दा नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर की हवेलियाँ - जैसलमेर की हवेलियाँ सदैव ही देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रही है। 1. पटवों की हवेली - यहाँ की पटवों की हवेली अपनी शिल्पकला , विशालता एवं अद्भुत नक्काशी के कारण प्रसिद्ध है । पटवो