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Showing posts from July, 2012

थेवा कला पर प्रकाशित पुस्तक का राज्यपाल द्वारा विमोचन

पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर के पदेन अध्यक्ष राज्यपाल श्रीमती मार्ग्रेट अल्वा ने गुरूवार दिनांक 19 जुलाई 2012 को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा प्रलेखन योजना के अंतर्गत प्रकाशित पुस्तकों ‘‘थेवा कला’’ तथा ‘‘वॉल पेन्टिंग्स ऑफ चारोतर’’ का विमोचन किया। राजस्थान के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के सेवानिवृत तथा स्वतंत्र पत्रकार श्री नटवर त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘थेवा कला’’ में प्रतापगढ़ की विश्व प्रसिद्ध थेवा कला पर सचित्र उपयोगी जानकारी दर्शाई गई है। इस पुस्तक में थेवा शिल्पकारों से लिए गए साक्षात्कार के माध्यम से थेवा शिल्प सृजन तकनीक तथा उन कलाकारों की उपलब्धियों को उल्लिखित किया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इस शिल्पकला पर यह अपने प्रकार का प्रथम प्रकाशन है। पुस्तक के संदर्भ में प्रस्तुत की गई लघु फिल्म में बताया गया कि यह कला लगभग 400 वर्ष पुरानी है। इस कला के 12 शिल्पकारों को आज तक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चुका है। इनमें से 9 शिल्पकार प्रतापगढ के राज सोनी परिवार के हैं। शिल्पकार जगदीश राजसोनी को दो बार राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कर उन्हें

राजीव गांधी डिजिटल विद्यार्थी योजना की घोषणा के अनुरूप क्रियान्वयन हेतु कार्य आरंभ-

मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत द्वारा प्रदेश के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा सुलभ करवाने तथा मेरिट में आने वाले प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को समुचित प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से पहली बार बजट में ’राजीव गांधी डिजिटल विद्यार्थी योजना’ के तहत लेपटॉप देने की घोषणा को मूर्तरूप देने के लिये शिक्षा विभाग द्वारा कार्य आरम्भ कर दिया गया है। इस योजना पर लगभग 70 करोड़ रूपये व्यय होंगे तथा आगामी 6-7 महीनों में इस योजना का लाभ प्रतिभावान विद्यार्थियों को मिलने लगेगा। उल्लेखनीय है कि श्री गहलोत ने वर्ष 2012-13 के अपने बजट भाषण में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10 वीं और 12 वीं कक्षा के मेरिट में आने वाले प्रथम 10-10 हजार छात्र-छात्राओं को लेपटॉप तथा समस्त उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 8 वीं कक्षा में प्रथम आने वाले 24 हजार विद्यार्थियों को ’विशेष लर्निंग लेपटॉप’ का तोहफा देने की घोषणा की थी। इन लेपटॉप में पाठ्यक्रम संबंधी जानकारियों के साथ अन्य तकनीकी एवं देश और दुनिया के संदर्भ में जानकारी समाहित होगी। इससे विद्यार्थी अपनी जिज्ञासाओं के हल ढूंढ सकेंगे। इस योजना से भविष्य में 10 वीं, 12 वीं

कहाँ पर है राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल 'लोहार्गल धाम' - लोहार्गल तीर्थ स्थान

लोहार्गल किस जिले में है? राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल 'लोहार्गल (Lohargal)' शेखावाटी क्षेत्र में झुन्झुनू जिले में उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस किमी की दूरी पर आड़ावल पर्वत की घाटी में स्थित है। नवलगढ़ तहसील में स्थित इस तीर्थ 'लोहार्गल जी' को स्थानीय अपभ्रंश भाषा में लुहागरजी Luhagar Ji कहा जाता है। लोहार्गल का अर्थ वह स्थान जहाँ लोहा गल जाए । पुराणों में भी इस स्थान का वर्णन है। झुन्झुनू जिले में अरावली पर्वत की शाखाएँ उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतड़ी व सिंघाना तक निकलती हैं, जिसकी सबसे ऊँची पर्वत चोटी (1050 मीटर) लोहार्गल में ही है। पांडवों की प्रायश्चित स्थली है लोहार्गल तीर्थ स्थान (Lohargal Teerth Sthan) - क्यों नाम पड़ा इस स्थान का लोहार्गल - महाभारत युद्ध समाप्ति के पश्चात पाण्डव जब आपने भाई बंधुओं और अन्य स्वजनों की हत्या करने के पाप से अत्यंत दुःखी थे, तब भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर वे पाप मुक्ति के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शन करने के लिए गए। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जाए, वहीं तुम्हारा पाप म

मोहन लाल सुखाड़िया जी के जीवन का अनछुए पहलू-

मेवाड़ में प्रजामंडल की राजनीतिक गतिविधियों में अपनी अग्रणी स्थिति बनाने से पहले राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने इंदुबाला सुखाड़िया के साथ अंतर्जातीय विवाह कर लिया। ब्यावर के शिक्षित एवं प्रगतिशील समाज के लोगों ने आर्य समाज की वैदिक रीति से यह विवाह 1 जून 1938 को संपन्न करवाया। अपने संस्मरणों में सुखाड़ियाजी ने लिखा है- " विवाह के बाद नाथद्वारा जाकर मां का आशीर्वाद पाना मेरा कर्तव्य था, जो मुझे सबसे अधिक भयपूर्ण और मानसिक रूप से कष्टप्रद लग रहा था, लेकिन मुझमें आक्रोश भी बहुत था। जो मां मुझे बचपन में स्नेह से पालती रही तथा हजारों कल्पनाएं मेरे लिए संजोती रहीं, वही आज मुझसे मिलने में आत्मग्लानि और मुंह देखने में घृणा तथा मौत की सी अनुभूति कर उठी है। मेरे लिए यह विषम परिस्थिति थी। इसमें मां का भी क्या दोष था? वह ऐसे ही वातावरण में पली थी। जीवन भर श्रीनाथजी की भक्ति एवं साधना में छुआछूत की पृष्ठभूमि में सतत संलग्न रही। वह भला मेरे इस विवाह से कैसे प्रसन्न होकर आशीर्वाद दे सकती थी? और उनके इस व्यवहार के प्रति मेरा भी क्रोध कैसे शांत हो सकता था? दोनों ओर ही मजबूरी थी

आधुनिक राजस्थान के निर्माता 'पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया'

आधुनिक राजस्थान के निर्माता के रूप में लोकप्रिय 'पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया' का जन्म 31 जुलाई 1916 को झालावाड़ में एक जैन परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री पुरुषोत्तम लाल सुखाडिया एक क्रिकेटर थे जो बॉम्बे तथा सौराष्ट्र की टीम से खेले थे। नाथद्वारा तथा उदयपुर में प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के लिए मुंबई चले गए जहाँ वे छात्र राजनीति से जुड़े तथा अपने कॉलेज के महासचिव बने। वहाँ वो छात्र हितों के लिए लगातार सक्रिय रहे। इसी दौरान वे प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं यथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, युसुफ मेहेरली तथा अशोक मेहता आदि के संपर्क में आए। वे सरदार पटेल के नेतृत्व में होने वाली कांग्रेस की बैठकों में नियमित रूप से शरीक होते थे। नाथद्वारा लौटने पर उन्होंने इलेक्ट्रिकल का छोटा सा प्रतिष्ठान प्रारंभ किया। यही प्रतिष्ठान उनकी स्वाधीनता आंदोलन के लिए युवा मित्रों की बैठकों व गतिविधियों का केन्द्र बना। यहाँ वे ब्रिटिश शासन की तानाशाही व अनियमिताओं के अलावा इलाके में सामाजिक-आर्थिक सुधार पर चर्चा करते थे। उन्होंने तथा उनके

राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जालौर की "सुंधामाता"- (Sundha Mata)

अरावली की पहाड़ियों में 1220 मीटर की ऊँचाई के सुंधा पहाड़ पर चामुंडा माता जी का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जिसे सुंधामाता के नाम से जाना जाता है। सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी में सागी नदी से लगभग 40-45 फीट ऊंची एक प्राचीन सुरंग से जुड़ी गुफा में अघटेश्वरी चामुंडा का यह पुनीत धाम युगों-युगों से सुशोभित माना जाता है। यह जिला मुख्यालय जालोर से 105 Km तथा भीनमाल कस्बे से 35 Km दूरी पर दाँतलावास गाँव के निकट स्थित है। यह स्थान रानीवाड़ा तहसील में मालवाड़ा और जसवंतपुरा के बीच में है। यहाँ गुजरात, राजस्थान और अन्य राज्यों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पर्यटक माता के दर्शन हेतु आते हैं। यहाँ का वातावरण अत्यंत ही मोहक और आकर्षक है जिसे वर्ष भर चलते रहने वाले फव्वारे और भी सुंदर बनाते हैं। माता के मंदिर में संगमरमर स्तंभों पर की गई कारीगरी आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों के स्तंभों की याद दिलाती है। यहाँ एक बड़े प्रस्तर खंड पर बनी माता चामुंडा की सुंदर प्रतिमा अत्यंत दर्शनीय है। यहाँ माता के सिर की पूजा की जाती है। यह कहा जाता है कि चामुंडा जी का धड़ कोटड़ा में तथा चरण सुंदरला पाल (जालोर) में पू

पालीवाल ब्राह्मणों के प्राचीन वैभव का प्रतीक- कुलधरा और खाभा गाँवों के खंडहर

कुलधरा के खंडहर जैसलमेर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा वर्षों पूर्व परित्यक्त कुलधरा एवं खाभा नामक दो गाँवों के प्राचीन खंडहर स्थित है जो पालीवालों की संस्कृति, उनकी जीवनशैली, वास्तुकला एवं भवन निर्माण कला को अभिव्यक्त करते हुए अद्भुत अवशेष हैं। प्राचीन काल में बसे पालीवालों की सामूहिक सुरक्षा, परस्पर एकता व सामुदायिक जीवन पद्धति को दर्शाने वाले कुलधरा व खाभा गाँवों को पालीवाल ब्राह्मणों ने जैसलमेर रियासत के दीवान सालिम सिंह की ज्यादतियों से बचने तथा अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए एक ही रात में खाली करके उजाड़ कर दिए। पश्चिमी राजस्थान के पालीवालों की सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक इन खंडहरों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा प्रयास किए गए हैं। कुलधरा में पालीवालों द्वारा निर्मित कतारबद्ध मकानों, गांव के मध्य स्थित कलात्मक मंदिर, कलात्मक भवन एवं कलात्मक छतरियां पालीवाल-वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। जैसलमेर विकास समिति द्वारा पुराने क्षतिग्रस्त भवनों का रखरखाव किया जा रहा है। इनमें पालीवालों की समृद्ध संस्कृति, वास्तुकला, गाँव के इतिहास तथ

राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावन का परिचय - Introduction Of State Bird Of Rajasthan 'Godawan'

गोडावण यानी "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड" राजस्थान का राज्य पक्षी है। इसका वैज्ञानिक नाम Choriotis Nigriceps या Ardeotis Nigriceps है।  उड़ने वाले पक्षियों में यह सबसे अधिक भारी पक्षियों में से एक है। यह जैसलमेर के मरू उद्यान , सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत् र में पाया जाता है। राष्ट्रीय मरु उद्यान (डेज़र्ट नेशनल पार्क) को गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। जैसलमेर की सेवण घास ( Lasiurus sindicus) इसके लिए उपयुक्त है। गोडावण को 1981 में राज्य पक्षी घोषित किया गया था। यह पक्षी सोहन चिडिया तथा शर्मिला पक्षी के उपनामों से भी प्रसिद्ध है। यह एक शांत पक्षी है, लेकिन जब इसे डराया जाए तो यह हुक जैसी ध्वनि निकालता है। इसीलिए उत्तरी भारत के कुछ भागों में इसे हुकना के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके द्वारा बादल के गरजने अथवा बाघ के गुर्राने जैसी ध्वनि उत्पन्न करने के कारण गगनभेर या गुरायिन का नाम से भी जाना जाता है। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है अ

प्रसिद्ध लोक कलाविद् पद्मश्री देवीलाल सामर -

जन्म :- 30 जुलाई 1911, उदयपुर में पिता-माता :- अर्जुन सिंह सामर, अलोल बाई स्वर्गवास :- 3 दिसंबर 1981 भारतीय लोक कला मंडल के संस्थापक- प्रसिद्ध लोक कलाविद् पद्मश्री देवीलाल सामर मूलत: नाटककार, लेखक, कवि और नर्तक थे। वे प्रारंभ में विद्या भवन स्कूल उदयपुर में शिक्षक रहे थे। इस समय उनका कुछ साहित्य प्रकाशित हो चुका था, लेकिन उनकी नृत्य कला का व्यापक प्रदर्शन नहीं हो पाया। विभिन्न कठिनाइयों के बावजूद भी श्री सामर ने 22 फरवरी 1952 को उदयपुर में "भारतीय लोक कला मंडल" संस्था की स्थापना राजस्थान की लोक कलाओं के प्रोत्साहन के उद्देश्य से की। इसके बाद श्री सामर ने संस्था के विकास के लिए देश भर के कई कलाकारों व अन्य हस्तियों से संपर्क स्थापित किया और उन्हें इससे जोड़ने का प्रयास किया। इसी क्रम में प्रख्यात फिल्म स्टार पृथ्वीराज कपूर सन् 1970 से तीन साल तक भारतीय लोक कला मंडल के अध्यक्ष रहे। सन् 1952 में आर.आर. दिवाकर, 1967 में बी. गोपाल रेड्डी, 1967 में डॉ. बी. वी केसरकर, 1970 में पृथ्वीराज कपूर, 1973 में पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया इसके अध्यक्ष रहे। इसके बाद प्रमोद प्