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Cultural achievements of Maharana Kumbha- महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ -

कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ - मेवाड़ के राणाओं की विरासत में महाराणा कुम्भा एक महान योद्धा, कुशल प्रशासक, कवि, संगीतकार जैसी बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी होने साथ-साथ विभिन्न कलाओं के कलाकारों तथा साहित्यसर्जकों के प्रश्रयदाता भी थे। इतिहासकार कुम्भा की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि महाराणा कुंभा के व्यक्तित्व में कटार, कलम और कला की त्रिवेणी का अद्भुत समन्वय था। लगातार युद्धों में लगे रहने के बावजूद 35 वर्ष लम्बा कुम्भा का काल सांस्कृतिक दृष्टि से मेवाड़ के इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है। निःसंदेह हम कह सकते हैं कि इतिहास में कुंभा का जो स्थान एक महान विजेता के रूप में है, उससे भी बड़ा व महत्त्वपूर्ण स्थान उसका स्थापत्य और विविध विद्याओं की उन्नति के पुरोधा के रूप में है। कुम्भा काल की वास्तुकला - कुंभा वास्तु व स्थापत्य कला का मर्मज्ञ था। कुम्भाकालीन सांस्कृतिक क्षेत्र में वास्तु-कला का महत्त्व सर्वाधिक है। इस काल में मेवाड़ ने वास्तुकला के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगति की थी। उसकी स्थापत्य कला को हम निम्नांकित तीन भागों में बांट सकते हैं - 1. मंदिर                          

Maharana Kumbha and his political achievements - महाराणा कुम्भा एवं उनकी राजनीतिक उपलब्धियाँ -

महाराणा कुम्भा एवं उनकी राजनीतिक उपलब्धियाँ - महाराणा कुम्भा राजपूताने का ऐसा प्रतापी शासक हुआ है, जिसके युद्ध कौशल, विद्वता, कला एवं साहित्य प्रियता की गाथा मेवाड़ के चप्पे-चप्पे से उद्घोषित होती है। महाराणा कुम्भा का जन्म 1403 ई. में हुआ था। कुम्भा चित्तौड़ के महाराणा मोकल के पुत्र थे। उसकी माता परमारवंशीय राजकुमारी सौभाग्य देवी थी। अपने पिता चित्तौड़ के महाराणा मोकल की हत्या के बाद कुम्भा 1433 ई. में मेवाड़ के राजसिंहासन पर आसीन हुआ, तब उसकी उम्र अत्यंत कम थी। कई समस्याएं सिर उठाए उसके सामने खड़ी थी। मेवाड़ में विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियाँ थी, जिनका प्रभाव कुम्भा की विदेश नीति पर पड़ना स्वाभाविक था। ऐसे समय में उसे प्रतिदिन युद्ध की प्रतिध्वनि गूँजती दिखाई दे रही थी। उसके पिता के हत्यारे चाचा, मेरा (महाराणा खेता की उपपत्नी का पुत्र) व उनका समर्थक महपा पंवार स्वतंत्र थे और विद्रोह का झंडा खड़ा कर चुनौती दे रहे थे। मेवाड़ दरबार भी सिसोदिया व राठौड़ दो गुटों में बंटा हुआ था। कुम्भा के छोटे भाई खेमा की भी महत्वाकांक्षा मेवाड़ राज्य प्राप्त करने की थी और इसकी पूर्ति के लिए वह मांडू (मालवा) पह

Maharana Kumbha - 'A planner of 32 fortifications' -- महाराणा कुंभा - 'दुर्ग बत्‍तीसी' के संयोजनकार - डॉ. श्रीकृष्‍ण 'जुगनू'

दुर्ग या किले अथवा गढ किसी राज्‍य की बडी ताकत माने जाते थे। दुर्गों के स्‍वामी होने से राजा को दुर्गपति कहा जाता था, दुर्गनिवासिनी होने से ही शक्ति को भी दुर्गा कहा गया। दुर्ग बडी ताकत होते हैं, चाणक्‍य से लेकर मनु और राजनीतिक ग्रंथों में दुर्गों की महिमा में सैकडों श्‍लोक मिलते हैं। महाराणा कुंभा या कुंभकर्ण (शिव के एक नाम पर ही यह नाम रखा गया, शिलालेखों में कुंभा का नाम कलशनृ‍पति भी मिलता है, काल 1433-68 ई.) के काल में लिखे गए अधिकांश वास्‍तु ग्रंथों में दुर्ग के निर्माण की विधि लिखी गई है। यह उस समय की आवश्‍यकता थी और उसके जीवनकाल में अमर टांकी चलने की मान्‍यता इसीलिए है कि तब शिल्‍पी और कारीगर दिन-रात काम में लगे हुए रहते थे। यूं भी इतिहासकारों का मत है कि कुंभा ने अपने राज्‍य में 32 दुर्गों का निर्मा ण करवाया था। मगर, नाम सिर्फ दो-चार ही मिलते हैं। यथा- कुंभलगढ, अचलगढ, चित्‍तौडगढ और वसंतगढ। सच ये है कि कुंभा के समय में मेवाड-राज्‍य की सुरक्षा के लिए दुर्ग-बत्‍तीसी की रचना की गई, अर्थात् राज्‍य की सीमा पर चारों ही ओर दुर्गों की रचना की जाए। यह कल्‍पना 'सि