जालौर का किला सुकडी नदी के किनारे स्थित है। इस किले का निर्माण प्रतिहारों ने 8वीं सदी में कराया था। स्वर्णगिरी (सोनगिरि) पर्वत पर निर्मित जालौर का ऐतिहासिक दुर्ग ' 'गिरि दुर्ग'' का अनुपम उदाहरण है। शिलालेखों में जालौर का नाम जाबालिपुर, जालहुर, जालंधर या स्वर्णगिरी (सुवर्ण गिरि या सोनगिरि या कनकाचल या सोनगढ़ या सोनलगढ़) मिलता है। इसका जबालिपुर, जालहुर या जालंधर नाम संभवत यहाँ के पर्वतों में जाबाली ऋषि और जालंधर नाथ जी के तपस्या करने के कारण पड़ा होगा। यहां सोनगिरि से प्रारंभ होने के कारण ही चौहानों की एक शाखा “सोनगरा” उपनाम से लोक प्रसिद्ध हुई है। जालौर दुर्ग पर विभिन्न कालों में प्रतिहार, परमार, चालूक्य (सोलंकी), चौहान, राठौड़ इत्यादि राजवंशो ने शासन किया था। वही इस दुर्ग पर दिल्ली के मुस्लिम सुल्तानो और मुग़ल बादशाहों तथा अन्य मुस्लिम वंशो का भी अधिकार रहा। जालौर का यह किला 800 सौ गज लंबा और 400 गज चौड़ा है तथा आसपास की भूमि से यह लगभग 1200 फीट ऊंचा है। जालौर दुर्ग के प्रमुख सामरिक स्थापत्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी उन्नत सर्पिलाकार प्राचीर ने अपन
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