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Kya hota hai Fagda-Ghudla - क्या होता है फगड़ा घुड़ला Fairs of Rajasthan

जोधपुर में आयोजित होने वाला घुड़ला पर्व अत्यंत महत्त्व रखता है लेकिन इन्हीं दिनों ऐसा भी घुड़ला निकाला जाता है जिसमें पुरुष महिलाओं का वेश धारण कर घुड़ला निकालते हैं। जोधपुर का ये पर्व आयोजन महिला आजादी के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।  मारवाड़ में महिलाओं के प्रमुख लोकपर्व गणगौर पूजन के आठवें दिन फगड़ा घुड़ला का अनोखा मेला आयोजित किया जाता है। इस आयोजन की प्रमुख बात यह है कि राजस्थान के जोधपुर में सामान्यतया घुड़ला लेकर महिलाएं ही निकलती हैं, लेकिन इस घुड़ला मेले की विशेषता यह भी है कि इसमें घुड़ला लेकर पुरुष निकलते हैं और वो भी महिलाओं का वेश धारण कर घुड़ला लेकर चलते हैं। जिसे ''फगड़ा घुड़ला मेला'' कहते हैं। जोधपुर में यह मेला ओलंपिक रोड से जालोरी गेट होते हुए सिरे बाजार से घंटाघर होता हुआ मूरजी का झालरा तक निकाला जाता है।  कब होती है घुड़ला की शुरुआत - घुड़ला एक छिद्र युक्त घड़ा होता है जिसमें एक दीपक जला कर रखा जाता है और गीत गाती महिलाएं इसे नगर में घुमाती है। घुड़ला पर्व की शुरुआत में जोधपुर में महिला तीजणियां आकर्षक पारम्परिक परिधानों में सजधज कर शी

आस्था के धाम बेणेश्वर का मेला BENESHWAR FAIR RAJASTHAN

अपनी लोक संस्कृति एवं परम्पराओं के लिए सुविख्यात राजस्थान के दक्षिण में स्थित जनजाति बहुल जिला डूंगरपुर अब जनजाति महाकुंभ कहे जाने वाले बेणेश्वर मेले से भी विश्व पर्यटन मानचित्र पर पहचान बनाने लगा है। साबला के निकट डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा जिले की सीमा रेखा पर अवस्थित वागड प्रयाग के नाम से सुविख्यात आस्था, तप एवं श्रद्धा के प्रतीक बेणेश्वर धाम पर प्रतिवर्ष बांसती बयार के बीच आध्यात्मिक एवं लोक संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।  सोम-माही-जाखम के मुहाने पर अवस्थित ‘बेणेका टापू’ लोक संत मावजी महाराज की तपोस्थली है। श्रद्धा व संस्कृति के इस संगम मेले में राजस्थान के साथ ही पूरे देशभर व पड़ौसी राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र से भी लाखों श्रद्धालु पहुंचते है। वैसे तो यह मेला ध्वजा चढ़ने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है परंतु ग्यारस से माघ पूर्णिमा तक लगने वाले मुख्य मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। मेले में तीन दिन तक जिला प्रशासन, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग एवं पर्यटन विभाग के द्वारा संयुक्त तत्वाधान में विभिन्न सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार

जयपुर के पास भरता है गधों का विचित्र मेला

जयपुर से करीब दस किलोमीटर दूर गोनेर रोड पर लूणियावास के निकट भावगढ़ बंध्या में स्थित कुम्हारों की कुलदेवी खनकानी माता ( पूर्व नाम कल्याणी माता ) के मंदिर परिसर के मैदान में गधों का विचित्र-सा सालाना मेला भरता है, जिसका मुख्य उद्देश्य घोडों गधों और खच्चरों की खरीद और बिक्री है। यूं तो मेले की शुरूआत गधों की खरीद बिक्री से होती है, लेकिन धीरे धीरे अन्य जानवर भी बिकने के लिए आने लगते हैं। मेले में गधों की रोमांचक दौड़ और सौन्दर्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। गधों , खच्चरों और घोडों के स्वामी प्रतियोगिता जीतने के लिए उन्हें चना , गुड , चने की दाल खिलाते हैं वहीं कुछ मालिक उनकी मालिश करके तैयार करते हैं। इन्हें सजाया संवारा जाता है तथा उनके गले में घंटिया बांधी जाती है। पशुओं को बुरी नजर से बचाने के लिए काला धागा सहित अन्य कुछ टोटके भी किए जाते हैं। खलकाणी माता के प्रति कुम्हार , धोबी , खटीक आदि जातियों में बरसों पहले से आस्था रही है।   भावगढ़ पर राजपूतों का शासन रहा था। भावगढ़ के एक पूर्व जागीरदार के अनुसार माधोसिंह द्वितीय ने ईश्वरसिंह राजावत को भावगढ़

Sitabari Fair of Baran, Rajasthan सीताबाड़ी का मेला, बारां (राजस्थान)

सीताबाड़ी का मेला, बारां (राजस्थान) सीताबाड़ी का वार्षिक मेला बारां जिले की शाहबाद तहसील के केलवाड़ा गांव के पास सीताबाड़ी नामक स्थान पर आयोजित किया जाता है। इस स्थान पर यह 15 दिवसीय विशाल मेला ज्येष्ठ महीने की अमावस्या ( बड़ पूजनी अमावस ) के आसपास भरता है। 15 दिनों का ये मेला अपने पूर्ण परवान पर अमावस्या के दिन ही चढ़ता है तथा इस दिन ही भारी संख्या में लोग उमड़ते हैं। केलवाड़ा गाँव से कोटा की दूरी 117 किलोमीटर है तथा सीताबाड़ी स्थान बारां जिले के केलवाड़ा ग्राम से लगभग मात्र 1 किमी की दूरी पर है। तीर्थ यात्रियों के आवागमन के लिए कई बसें इस मार्ग पर चलाई जाती हैं। मेले के समय हजारों की संख्या में यात्रियों के यहाँ आने के कारण बसों की संख्या वृद्धि की जाती है। यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन बारां है जो केलवाड़ा से 75 किलोमीटर की दूरी पर है। सहरिया जनजाति का कुंभ - यह मेला दक्षिण - पूर्वी राजस्थान की ' सहरिया जनजाति ' के सबसे बड़े मेले