जोधपुर में आयोजित होने वाला घुड़ला पर्व अत्यंत महत्त्व रखता है लेकिन इन्हीं दिनों ऐसा भी घुड़ला निकाला जाता है जिसमें पुरुष महिलाओं का वेश धारण कर घुड़ला निकालते हैं। जोधपुर का ये पर्व आयोजन महिला आजादी के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
मारवाड़ में महिलाओं के प्रमुख लोकपर्व गणगौर पूजन के आठवें दिन फगड़ा घुड़ला का अनोखा मेला आयोजित किया जाता है। इस आयोजन की प्रमुख बात यह है कि राजस्थान के जोधपुर में सामान्यतया घुड़ला लेकर महिलाएं ही निकलती हैं, लेकिन इस घुड़ला मेले की विशेषता यह भी है कि इसमें घुड़ला लेकर पुरुष निकलते हैं और वो भी महिलाओं का वेश धारण कर घुड़ला लेकर चलते हैं। जिसे ''फगड़ा घुड़ला मेला'' कहते हैं। जोधपुर में यह मेला ओलंपिक रोड से जालोरी गेट होते हुए सिरे बाजार से घंटाघर होता हुआ मूरजी का झालरा तक निकाला जाता है।
घुड़ला एक छिद्र युक्त घड़ा होता है जिसमें एक दीपक जला कर रखा जाता है और गीत गाती महिलाएं इसे नगर में घुमाती है। घुड़ला पर्व की शुरुआत में जोधपुर में महिला तीजणियां आकर्षक
पारम्परिक परिधानों में सजधज कर शीतलाष्टमी की संध्या को अलग अलग टोलियों
में ढोल-थाली की मधुर लहरियों के साथ पवित्र मिट्टी से निर्मित घुड़ला लेने
कुम्हार के घर पहुंचती है। फिर शाम को इन तीजणियों की ओर से घुड़ला पूजन
शुरू किया जाता है। गौरी पूजन करने वाली वे तीजणियां एक
पखवाड़े तक इस छिद्रयुक्त घुड़ले में आत्म दर्शन के प्रतीक दीप
प्रज्ज्वलित करने के बाद उसे गवर पूजन स्थल पर विराजित करती हैं। गणगौरी
तीज तक सगे-संबंधियों के घर ले जाकर मां गौरी से जुड़े मंगल गीत गाती हैं।
घुड़ला लेकर घूमर और पणिहारी अंदाज में किया जाने वाला घुड़ला नृत्य आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस नृत्य को प्रोत्साहित करने और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की लोकप्रियता प्रदान करने में जयपुर के कलाविद मणि गांगुली, लोक कला मंडल उदयपुर के संस्थापक देवीलाल सामर और जोधपुर स्थित राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व सचिव पदमश्री कोमल कोठारी (संस्थापक रूपायन संस्थान, बोरूंदा, जोधपुर) का विशेष सहयोग रहा है।
मारवाड़ में महिलाओं के प्रमुख लोकपर्व गणगौर पूजन के आठवें दिन फगड़ा घुड़ला का अनोखा मेला आयोजित किया जाता है। इस आयोजन की प्रमुख बात यह है कि राजस्थान के जोधपुर में सामान्यतया घुड़ला लेकर महिलाएं ही निकलती हैं, लेकिन इस घुड़ला मेले की विशेषता यह भी है कि इसमें घुड़ला लेकर पुरुष निकलते हैं और वो भी महिलाओं का वेश धारण कर घुड़ला लेकर चलते हैं। जिसे ''फगड़ा घुड़ला मेला'' कहते हैं। जोधपुर में यह मेला ओलंपिक रोड से जालोरी गेट होते हुए सिरे बाजार से घंटाघर होता हुआ मूरजी का झालरा तक निकाला जाता है।
कब होती है घुड़ला की शुरुआत -
क्या अंतर होता है घुड़ला गवर और धींगा गवर में -
राजस्थान में स्त्रियों के सामूहिक व्रत और पूजन का एक पखवाड़े लम्बा पारम्परिक गणगौर उत्सव होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाता है। इस पर्व को जोधपुर में दो अलग-अलग नाम से मनाने की परम्परा चली आ रही है। पहले पखवाड़े में पूजे जाने वाली गणगौर ''घुड़ला गवर'' कहलाती है, जबकि दूसरे पखवाड़े में ''धींगा गवर'' का पूजन होता है। प्रथम पखवाड़े में गवर का पूजन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल तीज तक किया जाता है। कुंवारी कन्याएं मनोवांछित वर और सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए गवर पूजन और व्रत रखती हैं।घुड़ला लेकर घूमर और पणिहारी अंदाज में किया जाने वाला घुड़ला नृत्य आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस नृत्य को प्रोत्साहित करने और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की लोकप्रियता प्रदान करने में जयपुर के कलाविद मणि गांगुली, लोक कला मंडल उदयपुर के संस्थापक देवीलाल सामर और जोधपुर स्थित राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व सचिव पदमश्री कोमल कोठारी (संस्थापक रूपायन संस्थान, बोरूंदा, जोधपुर) का विशेष सहयोग रहा है।
क्या होता है फगड़ा घुड़ला और कैसे शुरू हुआ -
अजमेर
के सेनापति घुड़ले खान के अत्याचारों से परेशान और लोगों को उसके अत्याचारों से
परिचित कराने के उद्देश्य से मारवाड़ की महिलाएं पिछले कई शताब्दियों से सिर पर घुड़ला रख
शहर में निकलती रही है जिसे घुड़ला पर्व कहते हैं। लेकिन लगभग 50 वर्ष पूर्व एकबार इन महिलाओं ने इस पर्व में कुछ नवाचार करने की ठानी और उन्होंने यह घुड़ला पुरुषों के सिर पर थमा दिया एवं पुरुषों ने स्त्री वेश में घुड़ला पूरे नगर में
घुमाया और फिर इसका नया नाम दे दिया ''फगड़ा घुड़ला''।
ये परंपरा तभी से चली आ रही
है।
क्या है घुड़ला घूमाने के पीछे पूरी कहानी -
मारवाड़ के प्राचीन दस्तावेजों व बहियों के अनुसार घुड़ले खां गवर पूजन के दौरान तीजणियों को उठाकर ले जाने लगा, तब जोधपुर के राजा राव सातल ने उसका पीछा किया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। कहा जाता है कि उसी अत्याचारी घुड़ले खां के सिर के प्रतीक स्वरुप घुड़ले को लेकर आक्रोशित तीजणियां घर-घर घूमी थी तभी से इस पर्व की शुरुआत हुई थी और मारवाड़ में गणगौर पूजन के दौरान चैत्र वदी अष्टमी के दिन इतिहास से जुडी इस घटना को आज भी याद कर प्रतीक स्वरुप घुड़ले को नगर में घुमाया जाता है।
कहानी यूँ है कि वर्ष 1545 में जोधपुर की स्थापना करने वाले राव जोधा के पुत्र राव सातल गद्दीनशीन हुए थे। सातल के दो बेटों दूदाजी व परसिंह ने सांभर पर आक्रमण कर दिया। इसकी जानकारी जब अजमेर के सूबेदार मल्लू खान, सीरिया खान व मीर घुड़ले खान को हुई, तो उन लोगों ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया। ये लोग मांडू के राजा के सिपाही थे। मांडू के राजा ने भी अजमेर की सेना के साथ मिल कर जोधपुर पर हमला बोल दिया। इसी सेना ने पीपाड़ पर हमला कर लूटपाट मचाई और वहां तीज करने वाली महिलाओं को पकड़ लिया। फिर सेना ने कोसाणा के पास पड़ाव डाला। उधर, इस हमले के कारण दूदाजी व परसिंह को जोधपुर पहुंचना पड़ा।
राव सातल ने अपने दोनों पुत्रों के साथ मिलकर शाही सेना पर हमला बोल दिया। राव सातल ने घुड़ले खान का वध करके तीजणियों को उससे मुक्त करवाया। उस दिन के बाद तीजणियों ने घुड़ले खान के सर के प्रतीक के रूप में मिट्टी का छोटा घड़ा बनवाया और घुुड़ले खान के चेहरे पर हुए घावों की संख्या के बराबर उसमें छेद करवाए। इस घड़े में एक दीपक जला कर महिलाएं अपने सिर पर रख घर-घर घूमी और लोगों को ये कहानी सुनाई। इस युद्ध को महिलाओं की मुक्ति का प्रतीक दिवस मान प्रतिवर्ष यह पर्व पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। हालांकि राव सातल इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। यह घटना 1548 वैशाख सुदी तीज को हुई थी। द्वितीया को युद्ध हुआ व तीज को बंदी महिलाओं को मुक्त करा लिया गया। कोसाणा में जहां महिलाओं को मुक्त कराया गया, वहीं राव सातल का अंतिम संस्कार भी किया गया। वहां आज भी चबूतरा बना हुआ है। जोधपुर में चैत्र बदी अष्टमी को इस घुड़ले का मेला आयोजित होता है। चैत्र सुदी तीज को घुड़ले के पात्र को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।
Comments
Post a Comment
Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार