Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Folk Musical Instruments of Rajasthan

Pakhavaj Vadan in Nathdwara - नाथद्वारा में पखावज वादन की परम्परा

  नाथद्वारा में पखावज वादन की परम्परा नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में पखावज वादन की परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ की यह वादन प्रणाली परम्परागत रूप से कई वर्षों से चली आ रही  है, जो अब तक भी मंदिर में विद्यमान है। बताया जाता है कि राजस्थान के केकटखेड़ा ग्राम में कुछ उपद्रव हो जाने से अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, इस कारण वहाँ के कुछ लोग उस स्थान को छोड़कर जंगलों की ओर चले गए। इनमें नाथद्वारा की पखावज परम्परा से सम्बन्धित तीन आपस में भाई श्री  तुलसीदास  जी,  श्री  नरसिंह  दास  जी  और  श्री  हालू  जी का नाम विशेष रूप से आता है।   ये तीनों भाई जंगलों में भ्रमण करते रहे तथा भक्ति में लीन हो गये। कहा जाता है कि भक्ति मार्ग से इन्हें संगीत की शक्ति प्राप्त हुई। इस तरह उन तीनों भाईयों का झुकाव संगीत की ओर हो गया। इनमें से दो भाईयों श्री तुलसीदास जी व नरसिंह दास जी की कोई संतान नहीं थी तथा तीसरे भाई हालू जी से ही आगे का वंश चला, जो आज भी पखावज परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वह लौटकर आमेर आये और वहीं उन्होने निवास किया। श्री हालू जी के दो पुत्र हुए श्री स्वामी जी और श्री छबील दास जी। दूसरे

Some other Folk Musical Instruments of Rajasthan
राजस्थान के कुछ अन्य लोक-वाद्य -

Folk Musical Instruments of Rajasthan-
रावण हत्था, सारंगी, शहनाई, सुरणाई और ताशा-
राजस्थान के लोक-वाद्य यंत्रों की चित्रात्मक जानकारी-

Folk Musical Instruments of Rajasthan- करणा, खड़ताल, खंजरी, मशक, मोरचंग, पुंगी, रबाब और नगाड़ा
राजस्थान के लोक-वाद्य यंत्रों की चित्रात्मक जानकारी

मोरचंग वादन यहाँ सुने......

Folk Musical Instruments of Rajasthan-
अलगोजा, बाँकिया, भपंग, चंग, डमरू, इकतारा, जंतर और कमांयाचा-
राजस्थान के लोक-वाद्य यंत्रों की चित्रात्मक जानकारी

   

राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र - घन लोक वाद्य

घन वाद्य वे वाद्य हैं लकड़ी या धातु के परस्पर आघात करके या ठोंक कर बजाए जाते हैं। खडताल- इस घन वाद्य 'खड़ताल' में लकड़ी के चार टुकड़े होते हैं तथा एक हाथ में दो-दो टुकड़ों को पकड़ कर उनका परस्पर आघात करके बजाया जाता है। लकडी के टुकडों के बीच पीतल की छोटी-छोटी तस्तरीनुमा आकृतियाँ भी लगी होती है। इसे माँगणियार व लंगा अपने गीतों की प्रस्तुति में करते हैं। इस वाद्य यंत्र को करताल भी कहते हैं। झाँझ- मिश्र धातु से बने दो चक्राकार टुकड़े होते हैं जिनके मध्य भाग में छेद होता है। प्रत्येक झाँझ के छेद में एक डोरी लगी होती है व बाहर की ओर से इस डोर पर कपड़े के गुटके लगे होते हैं जिन्हें हाथों से पकड़ कर एक दूसरे पर आघात कर बजाया जाता है। मंजीरा- इसे भजन गायन में प्रयुक्त किया जाता है। मिश्र धातु से बनी दो कटोरियां होती है जिनका मध्य भाग गहरा होता है। इनके मध्य में छेद होते हैं जिनमें डोर लगी होती है। इन डोरियोँ से दोनों हाथों में एक एक मंजीरा पकड़ कर परस्पर आघात कर बजाया जाता है। थाली- यह घन वाद्य एक कांसे की थाली होती है जिसके एक किनारे पर छेद करके एक

राजस्थान के अवनद्ध लोक वाद्य

अवनद्ध वाद्य वे होते हैं जिनके मुँह पर चमड़ा या खाल मढ़ी होती है। इन्हें हाथ या डंडों से बजाया जाता है। 1. मांदल- मिट्टी से बना यह लोक वाद्य मृदंग की आकृति की तरह गोल घेरे जैसा होता है। इस पर हिरण या बकरे की खाल मंढ़ी होती है। दोनों ओर की चमड़े के मध्य भाग में जौ के आटे का लोया लगाकर स्वर मिलाया जाता है। इसे हाथ के आघात से बजाया जाता है। यह भीलों व गरासियों का प्रमुख वाद्य है। गवरी और गैर नृत्य के अलावा मेवाड़ के देवरों में इसे थाली के साथ बजाया जाता है। 2. ताशा- तांबे की चपटी परात पर बकरे का पतला कपड़ा मंढ़ कर इसे बनाया जाता है तथा बाँस की खपच्ची से बजाया जाता है। इसे मुसलमान अधिक बजाते हैं। 3. ढोल- राजस्थान के लोक वाद्यों इसका प्रमुख स्थान है। यह लोहे या लकड़ी के गोल घेरे पर दोनों तरफ चमड़ा मढ़ कर बनाया जाता है। इस पर लगी रस्सियों को कड़ियों के सहारे खींच कर कसा जाता है। वादक इसे गले में डाल कर लकड़ी के डंडे से बजाता है। 4. नौबत- नौबत अवनद्ध वाद्य है जिसे प्रायः मंदिरों या राजा-महाराजाओं के महलों के मुख्य द्वार पर बजाया जाता था। इसे धातु की लगभग चार फु

राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र - सुषिर लोक वाद्य

सुषिर वाद्य वे होते हैं जिन्हें फूँक या वायु द्वारा बजाया जाता है। 1. अलगोजा- यह प्रसिद्ध फूँक वाद्य बाँसुरी की तरह का होता है। वादक दो अलगोजे मुँह में रख कर एक साथ बजाता है। एक अलगोजे पर स्वर कायम किया जाता है तथा दूसरे पर बजाया जाता है। धोधे खाँ प्रसिद्ध अलगोजा वादक हुए है जिनके अलगोजा वादन है 1982 के दिल्ली एशियाड का शुभारंभ हुआ था। उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के विवाह में भी अलगोजा बजाया था। यह वाद्य केर व बाँस की लकड़ी से बनाया जाता है तथा इसे राणका फकीरों का वाद्य कहा जाता है। अलगोजे का वादन यहाँ सुने.... 2. शहनाई- यह एक मांगलिक वाद्य है। इसे विवाहोत्सव पर नगाड़े के साथ बजाया जाता है। चिलम की आकृति का यह वाद्य शीशम या सागवान की लकड़ी से निर्मित किया जाता है। इसके ऊपरी सिरे पर ताड़ के पत्ते की तूती लगाई जाती है। फूँक देने पर इसमें से मधुर स्वर निकलते हैं। 3. पूंगी या बीन- यह सुशिर वाद्य विशेष प्रकार के तूंबे से बनाया जाता है जिसका ऊपरी हिस्सा लंबा व पतला तथा निचला हिस्सा गोल होता है। तूंबे के निचले गोल भाग में छेद कर दो नलियां लगाई जाती है जिनमें छेद होते है

Folk Instruments of Rajasthan - राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र

तार वाद्य (तत् या वितत् वाद्य) :-   भपंग, सारंगी, तंदूरा (चौतारा) , इकतारा, जंतर, चिकारा, रावण हत्था, कमायचा, सुरिन्दा। फूँक (सुषिर) वाद्य :-   शहनाई, पूँगी, अलगोजा, बाँकिया, भूंगल या भेरी, मशक, तुरही, बाँसुरी। खाल मढ़े वाद्य (अवनद्ध या आनद्ध वाद्य) :- ढोलक, ढोल, नगाड़ा, बड़ा नगाड़ा (बम या टापक), ताशा, नौबत, धौंसा, मांदल, चंग (ढप), डैरूं, खंजरी, मृदंग। अन्य वाद्य (घन वाद्य) :- खड़ताल, नड़, मंजीरा, मोरचंग, झांझ, थाली (काँसे की) । 1. इकतारा :- एक प्राचीन वाद्य जिसमें तूंबे में एक बाँस फँसा दिया जाता है तथा तूंबे का ऊपरी हिस्सा काटकर उस पर चमड़ा मढ़ दिया जाता है। बाँस में छेद कर उसमें एक खूंटी लगाकर तार कस दिया जाता है। इस तार को उँगली से बजाया जाता है। इसे एक हाथ से ही बजाया जाता है। इसे कालबेलिया, नाथ साधु व सन्यासी आदि बजाते हैं। 2. रावण हत्था :- यह भोपों का प्रमुख वाद्य, बनावट सरल लेकिन सुरीला। इसमें नारियल की कटोरी पर खाल मढ़ी होती है जो बाँस के साथ लगी होती है। बाँस में जगह जगह खूंटियां लगी होती है जिनमें तार बँधे होते हैं। इसमें ल