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Showing posts with the label राजस्थान के मंदिर

Statue of belief 351ft.(world's tallest lord shiva statue ) nathdwara rajsamand mewar rajasthan

भगवान शिव के भक्तों के लिए दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा को पूरा तैयार होने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता है, इसके निर्माता ने बताया कि यह प्रतिमा 351 फीट ऊंची है, और यह राजस्थान के पुष्टिमार्ग के प्रथम पीठ ऐतिहासिक शहर नाथद्वारा में स्थित है। जल्द ही इसका उद्घाटन किया जाना था, किन्तु निर्माण अपेक्षा से अधिक लंबा हो गया है, और उद्घाटन की तारीख स्थगित हो गई। कथित तौर पर, प्रतिमा का निर्माण अगस्त तक पूरा होने वाला है। यह नाथद्वारा नगर जहाँ विश्व प्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर है, में गणेश टेकरी पर बनाई जा रही है। इस प्रतिष्ठित संरचना को ''स्टैच्यू ऑफ बिलीफ़'' का नाम दिया गया है। इसका निर्माण 2,500 टन परिष्कृत स्टील के साथ किया गया, जो उच्च गुणवत्ता वाले तांबे और जस्ता के पेडस्टल से युक्त है। प्रतिमा को विभिन्न स्तरों पर तीन दीर्घाओं से सुसज्जित किया गया है; जहाँ आगंतुक क्रमशः 20 फीट, 110 फीट और 270 फीट की ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं। भगवान शिव के त्रिशूल का निर्माण 315 फीट की ऊंचाई पर किया गया है। गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बाद भारत में दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा होगी, जिसे

नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा) पर्व

आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, शनिवार, 06 जून 2020 है। आज ज्येष्ठाभिषेक है। इसे केसर स्नान अथवा स्नान-यात्रा भी कहा जाता है। आप सभी को स्नान यात्रा पर्व की खूब खूब मंगल बधाई और शुभकामनाएं। नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा) ★☆★आज के उत्सव का भाव ★☆★ ◆ श्रीनाथजी में प्रभु सेवा में चार यात्रा के मनोरथ होते हैं - अक्षय तृतीया को चन्दन यात्रा गंगा दशहरा को जल यात्रा आज के दिन स्नान यात्रा और रथ यात्रा ज्येष्ठ नक्षत्र में पूर्णिमा होने से आज किया जाने वाला यह स्नान ज्येष्ठाभिषेक या स्नान यात्रा कहा जाता है। अर्थात आज के दिन ही ज्येष्ठाभिषेक स्नान होने एवं सवा लाख आम अरोगाए जाने का भाव ये हे कि यह स्नान ज्येष्ठ मास में चन्द्र राशि के ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है और सामान्यतया यह ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है। किंतु तिथि क्षय के कारण पूर्णिमा आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को दोपहर 12.41 बजे तक है एवं ज्येष्ठा नक्षत्र दोपहर 3.13 बजे तक होने से ज्येष्ठाभिषेक आज आषाढ़ कृष्ण एकम को होगा। ◆ ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में पूरे ज्येष्ठ मास में आदि भक्तों के साथ जल विहार किया था तथ

Gopashtami of Nathdwara नाथद्वारा की गोपाष्टमी

नाथद्वारा की गोपाष्टमी - कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी  में पूरे देश भर में मनाया जाता है। पुष्टिमार्ग में गौ सेवा का विशेष महत्त्व है। यह ऐसा संप्रदाय है, जिसमें गौपालन, गौ-क्रीड़न, गौ-संवर्धन आदि कार्य अतिविशिष्ट तरीके से किये जाते हैं। इसमें गौ-सेवा प्रभु की सेवा की भांति की जाती है। इसलिए महाप्रभु वल्लभाचार्य जी द्वारा प्रवर्तित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय की प्रथम पीठ नाथद्वारा में भी यह गोपाष्टमी उत्सव अति विशिष्ठ तरीके से धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीनाथजी के दर्शनों में आज भक्तजन गोपाल प्रभु के ''प्रथम गौचारण'' के मनमोहक स्वरूप को ह्रदय में आत्मसात करते हुए गोपाष्टमी के दर्शन का आनंद लेते हैं।  गोपाष्टमी की कथा एक पौराणिक कथा अनुसार एकबार बालक श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की थी और कहा था कि माँ मुझे गाय चराने अनुमति देवें। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा कार्तिक शुक्ल अष्टमी का अच्छा मुहूर्त देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने की अनुमति प्रदान की गई। गोपाष्टमी के शुभ दिन को बालक कृष्ण ने गायों की पूजा उपरां

Kshetrapal's temple of Khadagda - खड़गदा का क्षेत्रपाल का मंदिर

Kshetrapal's temple of Khadagda - खड़गदा का क्षेत्रपाल का मंदिर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला 200 वर्ष पुराना स्थानीय लोकदेवता क्षेत्रपाल जी (खेतपाल जी) का यह मंदिर डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र के 'खड़गदा' गाँव में गलियाकोट मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर डूंगरपुर जिला मुख्यालय से दूरी 55 किमी. तथा बांसवाड़ा से 80 किमी दूर है। इस मंदिर की लोकप्रियता खेतपाल भैरव व देवी के मंदिर होने के कारण है। यहाँ की भगवान क्षेत्रपाल की प्रतिमा 11वीं-12 वीं शताब्दी के होने का अनुमान है। मंदिर के गर्भगृह में पश्चिमोन्मुखी छह फीट ऊंची तथा ढाई फीट चौड़ी दिव्य आभा युक्त मनोहारी चतुर्भुज प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के हाथों में त्रिशूल, डमरु, ढाल एवं मुंड़ सुशोभित है। साथ ही स्वामी भक्ति के प्रतीक के रूप ''भैरव वाहन श्वान'' भी स्थापित है। यहां भगवान क्षेत्रपाल की आज्ञा लिए बगैर कोई कार्य प्रारंभ नहीं करने की परम्परा रही है। इस मंदिर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर हैं, जिनमें देवी गणपति, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान हनुमान स्थापित हैं।    हनुमान जयंती पर लगता ह

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

Sun temples of Rajasthan - राजस्थान के सूर्य मंदिर

हिन्दू देवमण्डल में सूर्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था। सूर्य को वैदिककाल से ही देवता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। सूर्य की कल्पना जगत के प्रकाश  के स्वामी के रूप में की गयी है। संभवतः सूर्य प्रकृति की उन शक्तियों में था, जिसे सर्वप्रथम देवत्व प्रदान किया गया। सूर्यदेव को हिन्दू धर्म के पंचदेवों में से प्रमुख देवता माना जाता है। सूर्यदेव की उपासना करने से ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि आदि प्राप्त होता है। भारत में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित रही है। विद्वानों के अनुसार आज जिस देवत्रयी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सम्मिलित किया जाता है, वस्तुतः किसी समय सूर्य, विष्णु और महेश को सम्मिलित किया जाता था। राजपूताना म्यूजियम अजमेर में दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं सदी की सूर्य प्रतिमाएं है। भरतपुर संग्रहालय में दसवीं-ग्यारहवीं सदी की दो सूर्य प्रतिमाएँ विद्यमान है। चौहान राजा उदयसिंहदेव के भीनमाल अभिलेख वि.सं. 1306 (1249 ई.) का आरम्भ ‘‘नमः सूर्याय’’ से हुआ है। इसी अभिलेख में जगत स्वामी (सूर्य) के मन्दिर में माथुर (कायस्थ) ठाकुर उदयसिंह के दो पुत्रों द्वारा चालीस द्र

श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय शिवाड़

सवाईमाधोपुर जिले के शिवाड़ नामक स्थान पर स्थित शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शंकर के निवास के रूप में द्धादशवां एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग मानने पर हालाँकि कुछ विवाद है किन्तु यहाँ के लोगों के पास इसके पक्ष में कई प्रमाण भी है जिनसे वे इसे 12 ज्योतिर्लिंग सिद्ध करते हैं। यह शिवालय राज्य के सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल में स्थित है, जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे सं.12 पर बरोनी से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।  घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर कई वर्षो पुराना है। वर्षभर में लाखों लोग यहाँ आते है। देवगिरी पर्वत पर बना घुश्मेश्वर उद्यान रात के समय लाइटिंग में अदभुत छटा बिखेरता हैं। श्रद्धालुओं की मण्डली शिवरात्रि  [फाल्गुन महीने (फरवरी- मार्च)] एवं श्रावण मास के दौरान बहुत ही रंगीन नजर आती है। भगवान शिव के बहारवें (द्धादशवें) ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले वर्