शिल्प सौंदर्य अनुपम है अर्थूना के मंदिरों में - sculptural Beauty is incomparable in the temples of Arthuna
राजस्थान के वागड़ क्षेत्र के बाँसवाड़ा नगर से लगभग 45 किमी दक्षिण पश्चिम में अर्थूना नामक स्थान भारतीय इतिहास के 11 वीं एवं 12 वीं सदी में निर्मित मंदिर समूह और मूर्तियों के लिए विख्यात है। वागड़ क्षेत्र में 8 वीं शताब्दी में मालवा के राजा उपेन्द्र ने परमार वंश की नींव डाली थी। बाद में इसी परमार वंश की उपशाखाएं राजस्थान में चंद्रावती, भीनमाल, किराडू एवं वागड़ में फैली। मध्यप्रदेश के परमार वंश के राजा पुण्डरीक ने प्राचीन अमरावती नगरी या उत्थुनक (अर्थूना) की स्थापना की थी। अर्थूना क्षेत्र को सन् 1954 में पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लेने के पश्चात इस पूरे क्षेत्र में हुई खुदाई में बड़ी संख्या में मूर्तियां और 30 से अधिक मंदिरों का अस्तित्व प्रकाश में आया है। ये मंदिर विभिन्न श्रेणी के हैं। इतिहासकारों ने यहाँ के शिल्प को सात भागों में बाँटा है- 1. शैव संप्रदाय से संबंधित शिल्प- शिवलिंग, शिवबाण, लकुलीश या लकूटीश की दण्डधारी मूर्तियाँ, शिव की अंधकासुर वध मूर्ति, भैरव मूर्ति, शिव के 12 वें अवतार के रूप में हनुमान की मूर्ति, उमा महेश अभिप्राय आदि। 2. वैष्णव संप्रदाय की