लंगा व माँगणियार समुदाय के लोक कलाकार मूलतः मुस्लिम हैं लेकिन इसके बावजूद इनके अधिकतर गीतों की विषयवस्तु हिंदू देवी-देवताओं की गाथा तथा हिंदू त्योहार दीपावली, होली, गणगौर आदि पर आधारित होती है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो ये पूर्व में हिंदू थे किंतु कालांतर में मुस्लिम हो गए। इनमें से कई परिवार स्वयं को मूलतः राजपूत जाति का मानते हैं। ये 'कमयाचा' नामक एक विशेष वाद्य का प्रयोग करते हैं जो सारंगी का ही तरह होता है। इसे घोड़े के बालों से बने गज को इसके तारों पर फ़ेरकर बजाया जाता है। इसके अतिरिक्त उनके वाद्य यंत्रों में खड़ताल, ढोलक, हारमोनियम आदि भी शामिल हैं। माँगणियार समुदाय में कई विख्यात कलाकार हुए हैं जिनमें से 3 विशिष्ट गायकों को 'संगीत नाटक अकादमी' पुरस्कार से सम्मनित किया गया है, वे हैं- सिद्दीक़ माँगणियार, साकर खाँ माँगणियार और लाखा खाँ माँगणियार। साकर खाँ को वर्ष 2012 में पद्मश्री भी प्रदान किया गया है। एक महत्त्वपूर्ण बात और यह है कि माँगणियार समुदाय की रुकमा देवी माँगणियार अपने समुदाय की एकमात्र महिला कलाकार रही है तथा इन्हें वर्ष 2004 में मध्यप्रदेश सरकार द्
राजस्थान की कला, संस्कृति, इतिहास, भूगोल व समसामयिक तथ्यों के विविध रंगों से युक्त प्रामाणिक एवं मूलभूत जानकारियों की वेब पत्रिका "The web magazine of various colours of authentic and basic information of Rajasthan's Art, Culture, History, Geography and Current affairs