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ऐतिहासिक स्थल- ‘भाद्राजून’

‘ भाद्राजून ’ राजस्थान के ऐतिहासिक तथा प्राचीन स्थलों में से एक हैं। यह राजस्थान के जालोर-जोधपुर मार्ग पर जालोर जिला मुख्यालय से लगभग 54 किलोमीटर दूर अव स्थित हैं। यह स्थल जोधपुर से तकरीबन 97 किमी , उदयपुर से 200 किमी , जयपुर से 356 किमी एवं दिल्ली से 618 किमी हैं। यह एक छोटा सा गांव हैं , जो यहां के इतिहास , दुर्ग व महल के कारण राज्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता हैं। भाद्राजून पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिले में यह प्राचीन स्थल लूणी नदी के बेसिन पर स्थित हैं। भाद्राजून पिछली कई सदियों में हुए अनेक ऐतिहासिक घटनाओं और युद्धों का गवाह रहा है। यहाँ पर मारवाड़ राजवंश तथा मुगल साम्राज्य के शासकों के बीच अनेक युद्ध एवं आक्रमण हुए। यहां के शासकों ने मारवाड़ के जोधपुर राजघराने के अधीन रहकर शासन चलाया और क्षेत्र की समृद्धि के लिए व प्रजा की रक्षा के लिए काम किया। एक छोटे से पहाड़ पर स्थित मजबूत व सुरक्षित भाद्राजून के किले का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में किया गया। इसके चारों ओर पहाड़ियां व घाटियां होने के कारण इस दुर्ग को अत्यधिक प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी। इसी कारण यह दुर्

चित्‍तौड़गढ़ किला - स्वतंत्रता और स्वाभिमान के संघर्ष का प्रतीक

चितौड़गढ़ दुर्ग स्वतंत्रता और स्वाभिमान के संघर्ष का प्रतीक है । चित्तौडगढ़ को प्राचीन चित्रकूट दुर्ग भी कहा जाता है । यह किला उत्तरी अक्षांश 24° 59 ' से पूर्वी देशांतर 75°33 ' पर स्थित है । इस दुर्ग से राजपूत वीरों की कई वीरगाथाएं जुडी है । चितौड़ राजपूतों के शौर्य, साहस और बलिदान के कारण इतिहास में गौरवपूर्ण स्‍थान रखता है । यह दुर्ग स्थापत्य कला का बेजोड़ अद्भुत नमूना है।  इसीलिए इसे गढ़ों का सिरमोर कहा जाता है। इसके बारे में कहा गया है-   "गढ़ तो चितौडगढ़, बाकि सब गढ़ैया" यह किला अजमेर-रतलाम रेलमार्ग पर चित्तौडगढ़ जंक्शन से 4 किमी दूर बेडच और गंभीरी नदियों के संगम पर 152 मीटर ऊंची पहाड़ी पर लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। इसकी लम्बाई लगभग 8 किमी तथा चौडाई 2 किमी है। वीर-विनोद के अनुसार इसका निर्माण 7 वीं शताब्‍दी ई. में मोरी (मौर्य) राजवंश के चित्रांगद मोरी द्वारा करवाया गया था। चित्रांगद के नाम पर ही इसका नाम 'चित्रकोट या चित्रकूट' पड़ा जो अपभ्रंश होकर बाद में चित्तौड़ हो गया । मोरी वंश का यहाँ शासन आठवीं साड़ी तक रहा तथा इसका अं