Skip to main content

आत्महत्या एवं मानसिक बीमारी से संबंधित समाचारों की रिपोर्टिंग संवेदनशीलता और जिम्मेदारीपूर्वक हो

आत्महत्या एवं मानसिक बीमारी से संबंधित समाचारों की रिपोर्टिंग

संवेदनशीलता और जिम्मेदारीपूर्वक हो

                                                              -भारतीय प्रेस परिषद


जयपुर 26 सितम्बर। भारतीय प्रेस परिषद् ने मीडिया द्वारा आत्महत्या की संवेदनशीलता और जिम्मेदारीपूर्वक रिपोर्टिंग और कवरेज एवं मानसिक बीमारी से संबंधित समाचारों के प्रकाशन एवं रिपोर्टिंग के लिए  स्पष्ट मानदंड निर्धारित किये है। भारतीय प्रेस परिषद् ने आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसरण में दिशा निर्देशों को अपनाया है जिसके अनुसार-
 
  • मीडिया पेशेवरों, समाचार पत्र और समाचार ऎजेंसियों को आत्महत्या के मामलों की रिपोर्टिंग करते समय आत्महत्या के बारे में कहानियों को प्रमुखता से न रखें और ऎसी कहानियों को बार-बार न दोहराएं।

  • मीडिया द्वारा आत्महत्या की संवेदनशील रिर्पोटिंग करते समय ऎसी भाषा का उपयोग न करें जो आत्महत्या को सनसनीखेज या सामान्य बनाता है, या इसे समस्याओं के रचनात्मक विलय के रूप में प्रस्तुत करता है।

  • इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति द्वारा आत्महत्या के दौरान स्पष्ट रूप से इस्तेमाल की गई विधि का वर्णन न किया जाए। 

  • आत्महत्या के स्थान के बारे में विवरण नहीं देना चाहिये तथा ऎसी खबरों की कवरेज करते समय सनसनीखेज सुर्खियों का उपयोग नहीं करें।

  • इसके अलावा आत्महत्या की तस्वीरों, विडियो फुटेज या सोशल मीडिया लिंक का उपयोग भी नहीं किया जायेें। 

  • भारतीय प्रेस परिषद ने मानसिक बीमारी से संबंधित समाचारों के प्रकाशन एवं रिपोर्टिंग के लिए भी  स्पष्ट मानदंड तय किये है जिसके अनुसार मीडिया मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति की सहमति के बिना मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में उपचार के दौरान बीमार व्यक्ति के संबंध में तस्वीर या कोई अन्य जानकारी प्रकाशित नहीं करेगा। 


उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन द्वारा वर्ष 2017 में मीडिया पेशेवरों के लिए मार्गदर्शिका पुस्तिका बनाई गयी थी, जिसके लागू करने से व उपयोग करने से आत्महत्याएं करने वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी लायीं जा सकती हैं। यह मार्गदर्शक पुस्तिका आत्महत्या की रिपोर्टिंग ओर कवरेज करने के तरीके के बारें में मीडिया पेशेवरों के  लिए जानकारी प्रदान करती है और साथ ही यह सुझाव देती है कि कैसे सुनिश्चित किया जाये की रिपोर्टिंग व कवरेज सटीक, जिम्मेदारीपूर्वक और उचित हो।


Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...