राजस्थान की स्त्री वेशभूषा-चूंदड़ या चूंदड़ी
लाल रंग में रंगी विशेष प्रकार की ओढ़नी चूंदड़ या चूंदड़ी कहलाती है। यह ढाई गज लम्बी और पौने दो गज चौड़ी होती है। इसमें विशेष रूप से बंधेज की छोटी-छोटी बिन्दियों से भांति-भांति के अलंकरण किए जाते हैं। इसे चूनरी, बदांगर, कोसनिया आदि नामों से जाना जाता है। राजस्थानी संस्कृति में चूंदड़ का अत्यंत महत्व है। लगभग सभी मांगलिक अवसरों पर इसका प्रयोग होता है। यह सुहागिन स्त्रियों द्वारा विशेष रूप से पहनी जाती है। विवाह में अपने ननिहाल से प्राप्त चूंदड़ी पहनकर वधू सात फेरों को पूर्ण करती हैं, कुछ स्थानों पर यह चूंदड़ी ससुराल पक्ष से पहनाई जाती है। लड़की जब पीहर से ससुराल जाती है तब देहरी पूजते समय चूंदड़ धारण करती है। विवाह के बाद वर्ष भर किसी भी शुभ आयोजन या त्यौहार पर उन्हें वही चूंदड़ी पहनकर विभिन्न रस्मों या पूजा का निर्वाह करना होता है। विवाह के पश्चात पहली गणगौर पर नववधू को सिंजारे के दिन अपने ससुराल से विशेष चूंदड़ पहनाई जाती है, जिसे पहनकर वह गणगौर की पूजा करती हैं। बहन के बच्चों के विवाह के समय "भात" रस्म में भी भाई अपनी बहन को चूंदड़ी भेंट करते हैं। सुहागिन स्त्री की मृत्यु पश्चात् भी श्मशान ले जाते समय चूनड़ ओढ़ाई जाती है।
विवाह में ससुराल पक्ष अपनी बहु को चूंदड़ ओढाकर ही विदा करता है। चूंदड़ ओढ़नी महिलाओं में सौभाग्य वृद्धि का प्रतीक है, अतः इसमें सौभाग्य सूचक प्रतीकों को उकेरा जाता है। चूंदड़ी में कैरी, पुतली, मकई, ज्वार, फूल, डाबा, मोतीचूर, लुमक-झुमक, हाठा, चौकड़ी, बाड़ी, मुठिया व कोर, चारों कोने में चांद, चिड़ियां, हंस, तोता, चकोर, चकोरी, मोर-मोरनी, हाथी, शेर, गाय, पेड़-पौधे, फूल-पत्तियाँ, लताएं, वर-वधू इत्यादि का अंकन बहुत ही आकर्षक होता है। चूनड़ चार विशेष प्रक्रियाओं द्वारा सम्पन्न की जाती थी। इन्हें रंगों से भी पहचाना जाता था, जैसे काली चूनड़, लाल चूनड़ आदि।
राजस्थानी लोकगीतों में भी इन रंग-बिरंगी चूंदड़ों का वर्णन किया गया है।
नायिका अपने पति से चूंदड़ी की मांग करते हुए गाती है -
म्हाने चूंदड़ी मंगादे रे, ओ नण्दी के बीरा,
तने यूँ घूंघट में राखूंगी ओ नण्दी के बीरा,
म्हाने रखड़ी घड़ादे रे ओ नण्दी के बीरा,
तने यूँ माथे पर सजालूंगी ओ नण्दी के बीरा,
म्हाने चूंदड़ी मंगादे रे, ओ नण्दी के बीरा
एक अन्य लोकगीत की बानगी देखिए- इसमें बलमा काली चूनड़ पर विशेष रूप से मोहित होता है लेकिन नायिका को काली वस्तुएँ पसंद नहीं है -
काली चूंनड़ ऊपर बालमा बोत राजी
काली नदी रो पाणी न पीऊं
काला न बेंगन खाऊं।
काला पिया की सेज न सोऊं
म्हैं काली पड़ जाऊं।।
अर्थात् काली नदी का पानी नहीं पीऊं और काले बैंगन ही खाऊं। काले प्रिय की सेज भी नहीं सोऊं, कहीं मैं काली न पड़ जाऊं लेकिन प्रिय तो काली चूनड़ पर ही मोहित है।
चूंदड़ी विशेष महत्व है और यह सुहाग एवं सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। प्रत्येक शुभ कार्य एवं मांगलिक अवसर पर चूनड़ पहनाने की प्रथा रही है। गणगौर पर मोतीचूर नामक चूंदड़ ओढ़ी जाती है, चंवरी में चूंदड़ ओढ़ते समय गाये जाने वाले गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं-
लाड़ी सेर भर्या री चूंदड़ी,
लाड़ी पाव भर्या री मजीठ
लाड़ी ओढ़ो सवागण चूंदड़ी।
राजस्थानी गीत ''चम चम चमके चूंदड़ी बिन्जारा रे, कोई थोड़ो सा म्हारे सामी नाळ रे बिन्जारा'' अत्यंत ही लोकप्रिय हुआ है। पूरा गीत इस प्रकार से है-
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे नाळ रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे...
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
म्हारी तो रंग दे चुन्दडी बिण्जारा रे
म्हारे साहेबा रो , म्हारे पिवजी रो ,
म्हारा साहेबा रो रंगदे रूमाल रे बिण्जारा रे
म्हारा साहेबा रो रंगदे रूमाल रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
जोधाणा सरीखा सैर मैं बिण्जारा रे
कोई सोनो तो घड़े रे सुनार रे बिण्जारा रे
कोई सोनो तो घड़े रे सुनार रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
पायल घड़ दे बाजणी बिण्जारा रे
म्हारी नथली पळ्कादार रे बिण्जारा रे
म्हारी नथली पळ्कादार रे बिण्जारा रे
चम चम चमके चुन्दडी बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
कोई थोडो सो म्हारे सामे झांक रे बिण्जारा रे
एक अन्य गीत में नायिका अपने पति से कसूमल रंग की चूंदड़ लाने का आग्रह करती है-
नायिका -
बाई सा रा बीरा जयपुर जाजो जी
वठा सू लाजो तारा री चूंदड़ी
आ साथे लाजो तारा री चूंदड़ी
पति-
सुन्दर गोरी बात बताओ जी
कसिक ल्यावां तारा री चूंदड़ी
नायिका -
बाई सारा बीरा हरा हरा पल्ला जी
कसुमर रंग की तारा री चूंदड़ी
बाई सा रा बीरा जयपुर जाजो जी
वठा सू लाजो तारा री चूंदड़ी
पति-
म्हारी मिरगा नैणी और बताओ जी
कसिक सोवे तारा री चूंदड़ी
नायिका -
बाई सारा बीरा ननद हठेली जी
ओढ़न नहीं दे तारा री चूंदड़ी
बाई सा रा बीरा जयपुर जाजो जी
वठा सू लाजो तारा री चूंदड़ी
पति-
म्हारी चंदा बदनी, ओढ बताओ जी
महेला में लास्या जाली री चूंदड़ी
नायिका -
बाई सा रा बीरा जयपुर जाजो जी
वठा सू लाजो तारा री चूंदड़ी
बाई सा रा बीरा जयपुर जाजो जी......
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