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'राजस्थान रत्न' महाकवि कन्हैया लाल सेठिया-









राजस्थानी एवं हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध कवि श्री कन्हैया लाल जी सेठिया का जन्म राजस्थान के चूरु जिले के सुजानगढ़ शहर में 11 सितंबर 1919 को पिता श्री छगनमलजी सेठिया एवं माता श्रीमती मनोहरी देवी के यहाँ हुआ। सेठिया जी की प्रारम्भिक पढ़ाई कलकत्ता में हुई। स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के कारण कुछ समय के लिए आपकी शिक्षा बाधित हुई, लेकिन बाद में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दर्शन, राजनीति और साहित्य आपके प्रिय विषय थे। 1937 में इनका विवाह श्रीमती धापू देवी के साथ हुआ। साहित्य रचना के साथ साथ श्री सेठिया जी समाज सुधार एवं आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय रहे हैं उन्होंने राजस्थान में सामंतवाद के विरुद्ध जबरदस्त मुहिम चलाई तथा पिछडे वर्ग को आगे लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1942 के वे भारत छोडो आन्दोलन के समय कराची में थे। 1943 में सेठिया जी जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए।
व्यापारिक घराने से होने के बावजूद श्री सेठिया ने कभी भी साहित्य के साथ समझौता नहीं किया। आ तो सुरगा नै सरमावै, ई पै देव रमन नै आवे .......... धरती धोराँ री एवं अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो.... जैसी लोकप्रिय और सर्वविदित अमर कविताओं के रचनाकार पद्मश्री (2004) सेठिया जी को सन् 1976 उनके राजस्थानी कविता संग्रह 'लीलटांस' पर साहित्य अकादमी, नई दिल्ली का पुरस्कार प्रदान किया गया तथा वर्ष 1988 में उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सेठिया जी को सन् 1983 में राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा सर्वोच्च सम्मान 'साहित्य मनीषी` की उपाधि से अलंकृत किया एवं श्री सेठिया की काव्य यात्रा पर अपनी 'मधुमति` नामक मासिक पत्रिका का विशेषांक भी प्रकाशित किया। उनकी राजस्थानी काव्यकृति 'सबद` पर 1987 ई.  में राजस्थानी भाषा अकादमी का सर्वोच्च 'सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार` प्रदान किया गया। साहित्य जगत एवं शिक्षा के लिए की गई अविस्मरणीय अमूल्य सेवाओं के लिए सेठिया जी को वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से नवाजा गयाउन्हें इसी वर्ष राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा राजस्थानी भाषा की उन्नति में योगदान हेतु सर्वोच्च सम्मान 'पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार` से सम्मानित किया गया। सेठिया जी को वर्ष 2005 में राजस्थान फाउन्डेशन, कोलकाता चेप्टर द्वारा 'प्रवासी प्रतिभा पुरस्कार` से सम्मानित किया गया किन्तु राजस्थानी भाषा के लिए समर्पित मायड़ भाषा के सच्चे सपूत सेठिया जी ने इसमें दी गई एक लाख रुपये की पुरस्कार राशि राजस्थानी भाषा के कार्य में लगाने हेतु फाउन्डेशन को वापस लौटा दी जिसे फाउन्डेशन ने राजस्थान परिषद को राजस्थानी के विकास के लिए समर्पित किया। साहित्य, जगत के क्षेत्र में विशिष्ट उल्लेखनीय योगदान के लिए राजस्थान सरकार द्वारा प्रारंभ किये गए राजस्थान के सर्वोच्च सम्मान प्रथम 'राजस्थान रत्न पुरस्कार' से मरणोपरांत सम्मानित किया गया                   
सेठिया जी की प्रमुख कृतियाँ-
हिंदी भाषा में-
वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, दीप किरण, देह-विदेह, आकाश गंगा, वामन विराट, श्रेयस, निष्पति, प्रतिबिम्ब, आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, प्रणाम, मर्म, अनाम, निर्ग्रन्थ, स्वागत एवं त्रयी  इत्यादि
राजस्थानी भाषा में-
लीलटांस, धर कूंचा धर मंजलां, मायड़ रो हेलो, सबद, गळगचिया, मींझर, कूं-कूं, रमणियां रा सोरठा, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, क-क्को कोड रो, लीकलकोळिया आदि
पुरस्कार, सम्मान एवं अलंकरण-
स्वतन्त्रता सेनानी, दार्शनिक, समाज सुधारक एवं  राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कवि व लेखक श्री सेठिया जी को विभिन्न क्षेत्रों में किये गए योगदानों के लिए कई पुरस्कार, सम्मान तथा अलंकरण प्राप्त हुए हैं, जिनमें से प्रमुख सम्मान निम्नांकित हैं-
वर्ष
सम्मान/पुरस्कार
1976
राजस्थानी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में राजस्थानी काव्यकृति 'लीलटांस` के लिए साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कृत।
1979
राजस्थानी समाज, हैदराबाद द्वारा मायड़ भाषा की मान्यता के लिए संघर्ष करने हेतु सम्मानित।
1981
राजस्थानी की उत्कृष्ट रचनाओं हेतु लोक संस्कृति शोध संस्थान, चूरू द्वारा 'डॉ. तेस्सीतोरी स्मृति स्वर्ण पदक` सम्मान।
1982
उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए विवेक संस्थान, कलकत्ता द्वारा 'पूनमचन्द भूतोड़िया पुरस्कार`
1983
राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा सर्वोच्च सम्मान 'साहित्य मनीषी` की उपाधि से अलंकृत किया एवं उनकी काव्य यात्रा पर अपनी 'मधुमति` नामक मासिक पत्रिका का विशेषांक प्रकाशित किया।
1983
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 'साहित्य वाचस्पति` की उपाधि से विभूषित।
1987
राजस्थानी काव्यकृति 'सबद` पर राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी बीकानेर का सर्वोच्च सम्मान 'सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार`
1988
हिन्दी काव्य पुस्तक 'निर्ग्रन्थ` पर भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा 'मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार`
1989
राजस्थानी वेलफेयर एसोशियेशन, मुंबई द्वारा 'नाहर सम्मान`
1989
राजस्थानी काव्यकृति 'सत् वाणी` हेतु भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता द्वारा 'टांटिया पुरस्कार`
1990
मित्र मन्दिर, कलकत्ता द्वारा उत्तम साहित्य सृजन हेतु सम्मानित।
1992
राजस्थान सरकार द्वारा 'स्वतन्त्रता सेनानी` का ताम्रपत्र प्रदत्त कर सम्मानित।
1997
रामनिवास आशादेवी लखोटिया ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा 'लखोटिया पुरस्कार`
1997
मायड़ भाषा की सेवा हेतु हैदराबाद के राजस्थानी समाज द्वारा सम्मानित।
1998
80 वें जन्म दिन के अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर तथा अन्य अनेक विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा सम्मानित।
2004
साहित्य और शिक्षा में उत्कृष्ट कार्य व अविस्मरणीय अमूल्य सेवाओं के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अलंकरण
2004
राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा राजस्थानी भाषा की उन्नति में योगदान हेतु सर्वोच्च सम्मान 'पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार` से सम्मानित।
2005
राजस्थान फाउन्डेशन, कोलकाता चेप्टर द्वारा 'प्रवासी प्रतिभा पुरस्कार` से सम्मानित।
2005
राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पी.एच.डी. की मानद उपाधि।
2012
साहित्य, जगत के क्षेत्र में विशिष्ट उल्लेखनीय योगदान के लिए राजस्थान सरकार द्वारा प्रारंभ किये गए राजस्थान के सर्वोच्च सम्मान प्रथम 'राजस्थान रत्न पुरस्कार' से मरणोपरांत अलंकृत।

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