Skip to main content

मांड गायिका मांगीबाई को ‘रूपराम लोकगीत पुरस्कार’

मांड गायकी के क्षेत्र में देश भर में अपनी विशिष्ट पहचान रखने एवं पारंपरिक लोकगीत परंपरा के प्रति पूरा जीवन समर्पित करने वाली उदयपुर की प्रसिद्ध मांड गायिका मांगीबाई आर्य का दिल्ली की राजस्थान रत्नाकर संस्था द्वारा ‘श्री रूपराम लोकगीत पुरस्कार 2011’ के लिए चयन किया गया है।
यह पुरस्कार उन्हें 11 सितंबर की शाम चार बजे नई दिल्ली के शाह ऑडिटोरियम में प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार में 15 हजार नकद, प्रशस्ति पत्र एवं शॉल भेंट किए जाएंगे।
श्रीमती आर्य ऑल इंडिया रेडियो एवं दूरदर्शन की ‘ए ग्रेड’ कलाकार हैं। उनके कार्यक्रमों पर आधारित कैसेट, रिकॉर्ड व प्रकाशन भी जारी हो चुके हैं।

श्रीमती मांगीबाई द्वारा अर्जित अन्य प्रमुख पुरस्कार-

> केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी (नई दिल्ली) का राष्ट्रीय पुरस्कार

> राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर राज्य स्तरीय पुरस्कार (1994)

> राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी पुरस्कार

> ‘मरुधरा’ संस्था कोलकाता मुंबई के सिद्धार्थ मैमोरियल ट्रस्ट पुरस्कार


वर्ष 2010 और 2011 के " श्रीमती बसंती देवी धानुका युवा साहित्यकार पुरस्कार " वितरित

राजस्थानी भाषा का प्रतिष्ठित श्रीमती बसंती देवी धानुका युवा साहित्यकार पुरस्कार-2010 सूरतगढ़ के युवा कवि सतीश छिम्पा को प्रदान किया गया है। राजस्थानी कविता पुस्तक ‘डांडी सूं अणजाण’ के लिए उन्हें पुरस्कार के रूप में ग्यारह हजार रुपए नकद, शॉल, श्रीफल, प्रमाण पत्र एवं प्रतीक चिन्ह प्रदान किए गए। इस वर्ष का श्रीमती बंसती देवी धानुका युवा साहित्यकार पुरस्कार-2011 चूरू के सहायक सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी श्री कुमार अजय को उनकी ‘संजीवणी’ पुस्तक के लिए प्रदान किया गया। यह पुरस्कार धानुका सेवा ट्रस्ट की ओर से दिया गया है।

जोधपुर में " यूनेस्को चेतना अवार्ड " प्रदान किए गए

जोधपुर में भारतीय यूनेस्को क्लब द्वारा मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष हाईकोर्ट के पूर्व जज एन के जैन और बीकानेर के महापौर भवानीशंकर शर्मा को यूनेस्को चेतना अवार्ड से सम्मानित किया गया।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली