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rajasthan gk Grasses of Rajasthan - राजस्थान में पशुचारे के लिए उपयोगी घासें

1. सेवण घास- सेवण घास का वानस्पतिक नाम: लेसीयूरस सिंडीकस (Lasiurus Sindicus) सेवण एक बहुवर्षीय घास है। यह पश्चिमी राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। यह घास 100 से 350 मिमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण घास है। इसमें जड़ तन्त्र अच्छा विकसित होता है, इस कारण यह सूखा सहन कर सकती है। यह कम वर्षा वाली रेतीली भूमि में भी आसानी से उगती है। सेवण का चारा पशुओं के लिए पौष्टिक तथा पाचक होता है। भारत के अलावा यह घास मिश्र, सोमालिया, अरब व पाकिस्तान में भी पाई जाती है। भारत में मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान, पंजाब व हरियाणा में पाई जाती है। राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर व चूरु जिले में यह अन्य घासों के साथ आसानी से उगती हुई पाई जाती है। इसकी मुख्य विशेषता है कि यह रेतीली  मिट्टी में आसानी से पनपती है, इसी कारण यह थार के रेगिस्तान में बहुतायत से विकसित होती है। इसको घासों का राजा भी कहते हैं। इसका तना उर्ध्व, शाखाओं युक्त लगभग 1.2 मीटर तक लम्बा होता है। इसकी पत्तियां रेखाकार, 20-25 सेमी. लम्बी तथा पुष्प गुच्छा 10 सेमी. तक लम्बा होता है। सेव

How to farming Moth - कैसे करें मोठ की खेती

कैसे करें मोठ की खेती - दलहनी फसलों में मोठ सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल है। असिंचित क्षेत्रों के लिए यह फसल लाभदायक है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, देश के प्रमुख मोठ उत्पादक राज्य हैं। फसल स्तर बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2015) के अन्तर्गत भारत में मोठ का कुल क्षेत्रफल 9.26 लाख हेक्टेयर व उत्पादन 2.77 लाख टन था। राजस्थान देश में मोठ ऊत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में मोठ का क्षेत्रफल (96.75 प्रतिशत) व उत्पादन (94.49%) सर्वाधिक है। इसके बाद गुजरात का स्थान (2.38% व 3.6%) आता है। यद्यपि राजस्थान की उपज (292 किग्रा./हेक्टेयर) राष्ट्रीय औसत उपज (299 कि.ग्रा./हेक्टेयर) से कम है। मोठ के लिए उपयुक्त जलवायु - मोठ की फसल बिना किसी विपरीत प्रभाव के फूल व फली अवस्था में उच्च तापमान को सहन कर सकती है और इसके वृद्धि व विकास 0 0 के लिये 25 -37 सेन्टीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता होती है। वार्षिक वर्षा 250-500 मि.मी. व साथ ही उचित निकास की आवश्यकता होती है।  मोठ की उन्नत प्रजातियाॅं - राज्यवार प्रमुख प्रजातियों का विवरण   -           

Rajasthan's major irrigation and river valley projects - राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं-

राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं- 1. इन्दिरा गांधी नहर जल परियोजना IGNP- यह परियोजना पूर्ण होने पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी इसे प्रदेश की जीवन रेखा/मरूगंगा भी कहा जाता है। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। 2 नवम्बर 1984 को इसका नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया है। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया जिसका विषय ‘ बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता‘ था। 1958 में इन्दिरा गांधी नहर परियोजना का निर्माण कार्य की शुरूआत हुई लेंकिन उससे पहले सन् 1955 के अर्न्तराष्ट्रीय समझौते के दौरान रावी और व्यास नदियों से उपलब्ध 19,568 मिलियन क्यूबिक जल में से 9876 क्यूबिक जल राजस्थान को पहले ही आवंटित किया जाने लगा था। राजस्थान के हिस्से का यह पानी पंजाब के ‘‘हरिके बैराज‘‘ से बाड़मेर जिले में गडरा रोड तक लाने वाली 9413 कि.मी. लम्बी इस नहर परियोजना द्वारा राजस्थान को आवंटित जल में से 1.25 लाख हेक्टेयर मीटर जल का उपयोग गंगनहर, भांखडा नहर व सिद्वमुख फीडर में दिया जाने लगा। इन्दिरा गांधी नहर जल परियोजना IGNP का मुख्यालय (बो

Agricultural practices in Rajasthan राजस्थान की कृषि पद्वतियां

Agricultural practices in Rajasthan - राजस्थान में कृषि पद्वतियां राजस्थान की कृषि मूलत: वर्षा आधारित है लेकिन सिंचाई के साधनों निरंतर वृद्धि के कारण यहाँ पर विभिन्न खाद्यान्न व व्यापारिक फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। राजस्थान की भौतिक जलवायुगत सामाजिक-आर्थिक दशाआें की विविधताओं के कारण कृषि पद्वति परम्पराओं साधनों आदि में स्थानिक भिन्नता पाई जाती है। राज्य में कृषि का आर्थिक दृष्टि से नहीं वरन् सामाजिक दृष्टि से भी महत्त्व है। वर्तमान में राज्य की कुल आय का लगभग 50 प्रतिशत एवं पशुपालन से ही प्राप्त होता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। कृषि क्षेत्र की दृष्टि से इसका देश में चौथा स्थान है। राजस्थान में देश के कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 11 प्रतिशत भाग है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 48.30 प्रतिशत शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। यहाँ की कृषि मुख्यतः वर्षा आधारित है। यहाँ की कृषि में स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है। यहाँ पर कृषि राष्ट्रीय आय का साधन, जीवन का आधार, रोजगार का प्रमुख साधन, खाद्यान्न प्राप्ति का स्रोत तथा द्वितीयक व तृतीयक व्यवसायों के

कैसे करें राजस्थान में खजूर की खेती - राज्य की सूक्ष्म एवं गर्म जलवायु में खजूर की खेती

खजूर शुष्क जलवायु में उगाया जाने वाला प्रचीनतम फलदार वृक्ष है। पाल्मेसी कुल के इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम फीनिक्स डेक्टीलीफेरा है। मानव सभ्यता के सबसे पुराने कृषि किए जाने वाले फलों में से यह एक फल है। इसकी उत्पत्ति फारस की खाड़ी मानी जाती है। दक्षिण इराक (मेसोपोटोमिया) में इसकी खेती ईसा से 4000 वर्ष पूर्व प्रचलित थी। मोहनजोदड़ों की खुदाई के अनुसार भारत-पाकिस्तान में भी ईसा से 2000 वर्ष पूर्व इसकी कृषि विद्यमान थी। पुरातन विश्व में खजूर की व्यवसायिक खेती पूर्व में सिन्धु घाटी से दक्षिण में तुर्की-परशियन-अफगान पहाड़ियों, इराक किरकुक-हाईफा तथा समुद्री तटीय सीमा के सहारे-सहारे टयूनिशिया तक बहुतायत में की जाती थी। इसकी व्यवसायिक खेती की शुरूआत सर्वप्रथम इराक में हुई। ईराक, सऊदी अरब, इरान, मिश्र, लिबिया, पाकिस्तान, मोरक्को, टयूनिशिया, सूडान, संयुक्त राज्य अमेरिका व स्पेन विश्व के मुख्य खजूर उत्पादक देश है। हमारे देश में सर्वप्रथम 1955 से 1962 के मध्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केन्द्र अबोहर द्वारा मध्यपूर्व के देशों संयुक्त राज्य अमेरिका व पाकिस्तान से खजूर की कुछ व्यवसायिक