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राजस्थान की विद्यार्थी रियायती यात्रा योजना

विद्यार्थी रियायती यात्रा योजना

राजस्थान के धरातलीय प्रदेश- अरावली पर्वत श्रेणी और पहाड़ी प्रदेश-

राजस्थान के धरातलीय प्रदेश- अरावली पर्वत श्रेणी और पहाड़ी प्रदेश - अरावली पर्वत श्रृंखला प्रदेश राजस्थान की मुख्य एवं विशिष्ट पर्वत श्रेणी है।  यह विश्व की प्राचीनतम् पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है।  यह दक्षिण-पश्चिम में सिरोही से प्रारंभ होकर उत्तर-पूर्व में खेतड़ी तक तथा आगे उत्तर में छोटी-छोटी श्रृंखलाओं के रूप में दिल्ली तक विस्तृत है।  भूगर्भिक इतिहास की दृष्टि से अरावली पर्वत श्रेणी धारवाड़ समय के समाप्त होने के साथ से संबधित है।  यह श्रृंखला समप्राय: थी और केम्ब्रियन युग में पुन: उठी और विध्ययन काल के अंत तक यह पर्वत श्रृंखला अपने अस्तित्व में आयी।  यह पर्वत श्रृंखला सर्वप्रथम मेसाजोइक युग में समप्राय: हुई और टरशरी काल के आरंभ में इसका पुरुत्थान हुआ।  इसका दक्षिण की ओर विस्तार इस समय समुद्र के नीचे है जो टरशरी काल में दक्कन ट्रेप के एकत्रीकरण के पश्चात विस्तृत हुआ।  इस प्रदेश में  फाइलाईट्स, नीस, शिष्ट और ग्रेनाइट चट्टानों की प्रधानता है।  इस प्रदेश की औसत ऊँचाई 1225 मीटर है।  इस पर्वत श्रेणी की प्रमुख चोटियों में गुरुशिखर (1727 मीटर) सर्व

ऐतिहासिक स्थल- ‘भाद्राजून’

‘ भाद्राजून ’ राजस्थान के ऐतिहासिक तथा प्राचीन स्थलों में से एक हैं। यह राजस्थान के जालोर-जोधपुर मार्ग पर जालोर जिला मुख्यालय से लगभग 54 किलोमीटर दूर अव स्थित हैं। यह स्थल जोधपुर से तकरीबन 97 किमी , उदयपुर से 200 किमी , जयपुर से 356 किमी एवं दिल्ली से 618 किमी हैं। यह एक छोटा सा गांव हैं , जो यहां के इतिहास , दुर्ग व महल के कारण राज्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता हैं। भाद्राजून पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिले में यह प्राचीन स्थल लूणी नदी के बेसिन पर स्थित हैं। भाद्राजून पिछली कई सदियों में हुए अनेक ऐतिहासिक घटनाओं और युद्धों का गवाह रहा है। यहाँ पर मारवाड़ राजवंश तथा मुगल साम्राज्य के शासकों के बीच अनेक युद्ध एवं आक्रमण हुए। यहां के शासकों ने मारवाड़ के जोधपुर राजघराने के अधीन रहकर शासन चलाया और क्षेत्र की समृद्धि के लिए व प्रजा की रक्षा के लिए काम किया। एक छोटे से पहाड़ पर स्थित मजबूत व सुरक्षित भाद्राजून के किले का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में किया गया। इसके चारों ओर पहाड़ियां व घाटियां होने के कारण इस दुर्ग को अत्यधिक प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई थी। इसी कारण यह दुर्