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राजपूतों की उत्पत्ति के मत

‘अग्निवंशीय सिद्धान्त’ राजपूताना के इतिहास के सन्दर्भ में राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का अध्ययन बड़ा महत्त्व का है। राजपूतों का विशुद्ध जाति से उत्पन्न होने के मत को बल देने के लिए उनको अग्निवंशीय बताया गया है। इस मत का प्रथम सूत्रपात चन्दबरदाई के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘पृथ्वीराजरासो’ से होता है। उसके अनुसार राजपूतों के चार वंश प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान ऋषि वशिष्ठ के यज्ञ कुण्ड से राक्षसों के संहार के लिए उत्पन्न किये गये।  इस कथानक का प्रचार 16वीं से 18वीं सदी तक भाटों द्वारा खूब होता रहा।  मुहणोत नैणसी और सूर्यमल्ल मिसण ने इस आधार को लेकर उसको और बढ़ावे के साथ लिखा।  परन्तु इतिहासकारों के अनुसार ‘अग्निवंशीय सिद्धान्त’ पर विश्वास करना उचित नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण कथानक बनावटी व अव्यावहारिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्दबरदाई ऋषि वशिष्ठ द्वारा अग्नि से इन वंशों की उत्पत्ति से यह अभिव्यक्त करता है कि जब विदेशी सत्ता से संघर्ष करने की आवश्यकता हुई तो इन चार वंश के राजपूतों ने शत्रुओं से मुकाबले हेतु स्वयं को सजग कर लिया।  गौरीशकंर हीराचन्द ओझा, सी.वी.वैद्य, दशर

श्रीनाथजी का नाथद्वारा पधारने का इतिहास

श्रीनाथजी का नाथद्वारा पधारने का इतिहास राजस्थान का श्रीनाथद्वारा शहर पुष्टिमार्गिय वैष्णव सम्प्रदाय का प्रधान पीठ है जहाँ भगवान श्रीनाथजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। प्रभु श्रीजी का प्राकट्य ब्रज के गोवर्धन पर्वत पर जतिपुरा गाँव के निकट हुआ था। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने यहाँ जतिपुरा गाँव में मंदिर का निर्माण करा सेवा प्रारंभ की थी।   भारत के मुगलकालीन शासक बाबर से लेकर औरंगजेब तक का इतिहास पुष्टि संप्रदाय के इतिहास के समानान्तर यात्रा करता रहा। सम्राट अकबर ने पुष्टि संप्रदाय की भावनाओं को स्वीकार किया था। मंदिर गुसाईं श्री विट्ठलनाथजी के समय सम्राट की बेगम बीबी ताज तो श्रीनाथजी की परम भक्त थी तथा तानसेन , बीरबल , टोडरमल तक पुष्टि भक्ति मार्ग के उपासक रहे थे। इसी काल में कई मुसलमान रसखान , मीर अहमद इत्यादि ब्रज साहित्य के कवि श्रीकृष्ण के भक्त रहे हैं। भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने यहाँ तक कहा है- '' इन मुसलमान कवियन पर कोटिक हिन्दू वारिये '' किन्तु मुगल शासकों में औरंगजेब अत्यन्त असहिष्णु था। कहा जाता

पूर्व मध्यकालीन राजस्थान-

इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना युद्धप्रिय राजपूत जाति का उदय एवं राजस्थान में राजपूत राज्यों की स्थापना है। गुप्तों के पतन के बाद केन्द्रीय शक्ति का अभाव उत्तरी भारत में एक प्रकार से अव्यवस्था का कारण बना। राजस्थान की गणतन्त्र जातियों ने उत्तर गुप्तों की कमजोरियों का लाभ उठाकर स्वयं को स्वतन्त्र कर लिया। यह वह समय था, जब भारत पर हूण आक्रमण हो रहे थे। हूण नेता मिहिरकुल ने अपने भयंकर आक्रमण से राजस्थान को बड़ी क्षति पहुँचायी और बिखरी हुई गणतन्त्रीय व्यवस्था को जर्जरित कर दिया। परन्तु मालवा के यशोवर्मन ने हूणों को लगभग 532 ई. में परास्त करने में सफलता प्राप्त की। इधर राजस्थान में यशोवर्मन के अधिकारी जो राजस्थानी कहलाते थे, अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होने की चेष्टा कर रहे थे। किसी भी केन्द्रीय शक्ति का न होना इनकी प्रवृत्ति के लिए सहायक बन गया। लगभग इसी समय उत्तरी भारत में हर्षवर्धन का उदय हुआ। उसके तत्त्वावधान में राजस्थान में व्यवस्था एवं शांति की लहर आई, परंतु जो बिखरी हुई अवस्था यहाँ पैदा हो गयी थी, वह सुधर नहीं सकी। इन राजनीतिक उथल-पुथल के सन्दर्भ में यहाँ के समाज में एक परिवर्

राजस्थान में प्राचीन सभ्यताएँ

राजस्थान और प्रस्तर युग रा जस्थान में आदिमानव का प्रादुर्भाव कब और कहाँ हुआ अथवा उसके क्या क्रिया-कलाप थे, इससे संबंधित समसामयिक लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है,परन्तु प्राचीन प्रस्तर युग के अवशेष अजमेर, अलवर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, जयपुर, जालौर, पाली, टोंक आदि क्षेत्रों की नदियों अथवा उनकी सहायक नदियों के किनारों से प्राप्त हुये हैं। चित्तौड़ और इसके पूर्व की ओर तो औजारों की उपलब्धि इतनी अधिक है कि ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह क्षेत्र इस काल के उपकरणों को बनाने का प्रमुख केन्द्र रहा हो। लूनी नदी के तटों में भी प्रारम्भिक कालीन उपकरण प्राप्त हुये हैं। राजस्थान में मानव विकास की दूसरी सीढ़ी मध्य पाषाण एवं नवीन पाषाण युग है। आज से हजारों वर्षों से पूर्व लगातार इस युग की संस्कृति विकसित होती रही। इस काल के उपकरणों की उपलब्धि पश्चिमी राजस्थान में लूनी तथा उसकी सहायक नदियाँ की घाटियों व दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में चित्तौड़ जिले में बेड़च और उसकी सहायक नदियाँ की घाटियों में प्रचुर मात्रा में हुई है। बागौर और तिलवाड़ा के उत्खनन से नवीन पाषाणकालीन तकनीकी उन्नति पर अच्छा प्रकाश पड़ा है। इनके अ

राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र | राजस्थान के छः पहाड़ी किले विश्व धरोहर सूची में चयनित

अरावली की चट्टानी तलहटियों में स्थित राजस्थान के छः पहाड़ी किलों यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में स्थान प्राप्त कर लिया है। ये किले निम्न हैं - 1. चित्तौड़गढ़ (जिला- चित्तौड़गढ़) 2. कुंभलगढ़ (जिला- राजसमंद) 3. रणथंभौर (जिला- सवाईमाधोपुर) 4. आमेर (जिला- जयपुर) 5. जैसलमेर (जिला- जैसलमेर) 6. नागौर (जिला- नागौर) इनमें से प्रथम तीन किलों का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (The Archaeological Survey of India (ASI) ) द्वारा संरक्षण किया जा रहा है जबकि अन्य तीन किले राजस्थान के पुरातत्व विभाग के अधीन है। कंबोडिया के नामपेन्ह शहर में यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36 वीं बैठक में दिनांक 21 जून 2013 शुक्रवार को इन पहाड़ी किलों के चयन की घोषणा की गई थी। इस महत्वपूर्ण चयन से राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर और स्मारकों को विश्व स्तर पर पहचान मिली है जिससे राजस्थान का गौरव निःसंदेह बढ़ा है। वर्ष 2010 में जंतर-मंतर को विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया था, तभी से राज्य सरकार द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे थे कि प्रदेश के अन्य महत्वपूर्ण किलों एवं स्मारकों को भी उक्त सूची में सम्मिलि

राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र- राजस्थान के छः पहाड़ी किले विश्व धरोहर सूची में चयनित

राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र- राजस्थान के छः पहाड़ी किले विश्व धरोहर सूची में चयनित अरावली की चट्टानी तलहटियों में स्थित राजस्थान के छः पहाड़ी किलों यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में स्थान प्राप्त कर लिया है। ये किले निम्न हैं - 1. चित्तौड़गढ़ (जिला- चित्तौड़गढ़) 2. कुंभलगढ़ (जिला- राजसमंद) 3. रणथंभौर (जिला- सवाईमाधोपुर) 4. आमेर (जिला- जयपुर) 5. जैसलमेर (जिला- जैसलमेर) 6. नागौर (जिला- नागौर) इनमें से प्रथम तीन किलों का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (The Archaeological Survey of India (ASI) ) द्वारा संरक्षण किया जा रहा है जबकि अन्य तीन किले राजस्थान के पुरातत्व विभाग के अधीन है। कंबोडिया के नामपेन्ह शहर में यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36 वीं बैठक में दिनांक 21 जून 2013 शुक्रवार को इन पहाड़ी किलों के चयन की घोषणा की गई थी। इस महत्वपूर्ण चयन से राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर और स्मारकों को विश्व स्तर पर पहचान मिली है जिससे राजस्थान का गौरव निःसंदेह बढ़ा है। वर्ष 2010 में जंतर-मंतर को विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया था, तभी से राज्य सरकार द्वारा लगातार प्रयास

सवाईमाधोपुर का प्रसिद्ध चमत्कारजी जैन मंदिर

 सवाईमाधोपुर का प्रसिद्ध चमत्कारजी जैन मंदिर चमत्कारजी जैन मंदिर सवाई माधोपुर में स्थित है। यह दिगंबर जैन समुदाय का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक आकर्षण है जिसे "चमत्कार जी अतिशय क्षेत्र" भी कहा जाता है। यह सवाईमाधोपुर के रेलवे स्टेशन मुख्य मार्ग पर स्थित है। यहाँ मूल नायक चमत्कार जी (भगवान आदिनाथ या ऋषभदेव जी ) है। यहाँ के मंदिर में भगवान आदिनाथ की 6 इंच ऊँची पद्मासन मुद्रा में स्फटिक मणि (सफेद क्वार्टज) से निर्मित मुख्य प्रतिमा स्थापित है।  मंदिर में दो वेदियां हैं। सामने की वेदी में बैठने की मुद्रा में मूल नायक भगवान पद्मप्रभु की मूर्ति स्थापित है, जो कि गहरे लाल पत्थर से बनी 1 फीट 3 इंच ऊँची है और इसे विक्रम संवत 1546 में स्थापित किया गया था। भगवान चंद्रप्रभु, पंच बाल यति और अन्य तीर्थंकरों की अन्य कलात्मक मूर्तियाँ भी यहाँ देखने लायक हैं। इसके पीछे दूसरी वेदी है जहाँ मूल नायक श्री चमत्कार जी की मूर्ति स्थापित है और अन्य प्राचीन मूर्तियाँ भी यहाँ स्थापित हैं। कहा जाता है कि यह प्रतिमा जोगी नामक किसान को अपने खेत को जोतते समय प्राप्त हुई थी। भगवान आदि