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राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र
राष्ट्रीय आजीविका मिशन की शुरुआत हुई बाँसवाड़ा से

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिनांक 3 जून को बांसवाड़ा से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की शुभारंभ किया तथा डूंगरपुर में 176.4 किमी. लंबी डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल लाइन का शिलान्यास किया। बांसवाड़ा में योजना का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि आज हमारा देश तेजी से प्रगति कर रहा है। ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज के विकास के साथ-साथ उनकी परंपराओं की रक्षा के लिए भी हमें उपाय करने की जरूरत है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन देश के सभी भागों में महिलाओं के और अधिक सशक्तीकरण की दिशा में एक नई महत्वपूर्ण पहल है। देश में इस समय 10 से 15 सदस्यों वाले लगभग 50 लाख स्वयं सहायता समूह हैं जिनसे प्राप्त रोजगार के अवसरों के कारण महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है। इस योजना के प्रारंभ के बाद गरीब व कमजोर वर्ग की लाखों महिलाएँ संगठित होकर अपने परिवारों के जीवन में परिवर्तन और सुधार के लिए प्रयास करेंगी। इस अवसर पर श्रीमती सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के डॉक्यूमेंट का लोकार्पण भी किया। कार्यक्रम में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री डॉ. सीपी जोशी, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री विल

राजस्थान सामान्य ज्ञान-
राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र


राजस्थान की निवेदिता एवरेस्ट पर पहुँचने वाली वायुसेना की पहली महिला भारतीय वायुसेना की 27 वर्षीय फ्लाइट लेफ्टिनेंट निवेदिता चौधरी ने 8848 मीटर की विश्व की सबसे ऊँची पर्वतचोटी एवरेस्ट पर चढ़कर 21 मई को नया इतिहास रच दिया। निवेदिता यह कारनामा करने वाली भारतीय वायुसेना की पहली महिला हैं। निवेदिता फिलहाल नेवीगेटर के रूप में आगरा में कार्यरत हैं। निवेदिता ने भारतीय वायुसेना के 11 सदस्यीय महिला पर्वतारोही दल के साथ अपने अभियान की शुरुआत की थी। एवरेस्ट पर जाने वाली सबसे उम्रदराज महिला- 20 मई को 45 वर्षीय प्रेमलता अग्रवाल ने एवरेस्ट फतह कर यह करिश्मा करने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला बन गई। राजस्थान के घमंडाराम ने लगाई एशियन ग्रांप्री में रजत की तिकडी मूल रूप से जोधपुर के रहने वाले राजस्थान के अंतरराष्ट्रीय धावक घमंडाराम ने चीन के जिया झियांग शहर में मई माह में हुई एशियन ग्रांप्री में पुरुषों की 800 मीटर दौड़ में तीसरा रजत पदक जीता। वे स्वर्ण पदक जीतने वाले एशियन गेम्स चैंपियन सजाद मोरादी से पीछे रह गए। सजाद ने पहला स्थान हासिल किया। चीन के यांग को कांस्य से संतोष करना पड़ा। घमंड

राजस्थान के उद्योग विभाग द्वारा स्वीकृत क्लस्टर

इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर या कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है। हस्तशिल्प या हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (गांवों,कस्बों) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं। 1. गोटा लूम व गोटा लेस क्लस्टर, अजमेर 2. प्रस्तर कलाकृति क्लस्टर, डूंगरपुर 3. मूतिर्कला (मार्बल मूर्ति) क्लस्टर , गोला का बास (थानागाजी ), अलवर 4. सेंड स्टोन उत्पाद क्लस्टर, पिचुपाड़ा, दौसा 5. कांच कशीदा क्लस्टर, धनाऊ (बाड़मेर) 6. शहद क्लस्टर, भरतपुर 7. आरी - तारी जरदोजी वर्क क्लस्टर, नायला (जयपुर) 8. चर्म जूती क्लस्टर , भीनमाल (जालौर) 9. स्टोन क्लस्टर, जैसलमेर 10. काष्ठ कला (कावड़ व अन्य लकड़ी उत्पाद) क्लस्टर, बस्सी, चित्तौड़गढ़ 11. कोटा डोरिया साड़ी क्लस्टर, कोटा 12. रंगाई-छपाई (फेंटिया, चूंदड़ी, साड़ी, बेडशीट व चादर) क्लस्टर, आकोला (चित्तौड़) 13. चर्म रंगाई एवं चर्म उत्पाद क्लस्टर, बानसूर (अलवर) 14. हथकरघा (खेस, टॉवेल, गमछे, चादर, ड

राजस्थान की सैकड़ों वर्ष पुरानी है अद्भुत ‘कावड़-कला’ - Hundreds of years old amazing 'Kavad-art' of Rajasthan

भारत में रंग-बिरंगे स्क्रॉल व बक्से, पाठ, नृत्य, संगीत, प्रदर्शन या सभी के संयोजन का उपयोग करके आवाज और हावभाव की मदद से कहानियाँ सुनाना एक समृद्ध विरासत रही है। यह हमारी संस्कृति और हमारी पहचान को परिभाषित करता है। कावड़ बांचना’ नामक कहानी कहने की एक मौखिक परंपरा अभी भी राजस्थान में जीवित है, जिसमें महाभारत और रामायण की कहानियों के साथ-साथ पुराणों, जाति वंशावली और लोक परंपरा की कथाएँ बांची जाती हैं। कावड़ एक पोर्टेबल लकड़ी का मंदिर होता है, जिसमें इसके कई पैनलों पर दृश्य कथाएं चित्रित होती हैं, जो एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं। ये पैनल एक मंदिर के कई दरवाजों की तरह खुलते और बंद होते हैं। पैनलों पर दृश्य देवी-देवताओं, संतों और स्थानीय नायकों आदि के होते हैं।  हालांकि भारत की कई मौखिक परंपराओं की तरह, कावड़ बांचने की उत्पत्ति में भी पौराणिक कथाओं या रहस्यमय शक्तियों को उत्तरदायी माना जाता है। कावड़ परंपरा को लगभग 400 साल पुरानी परंपरा मानते हैं। इस पोर्टेबल धार्मिक मंदिर के ऐतिहासिक प्रमाण कुछ धार्मिक ग्रंथों में मौजूद हैं, लेकिन कावड़ के बारे में कोई स्पष्ट सं

The Bhil Tribes of Rajasthan राजस्थान की भील जनजाति

राजस्थान की भील जनजाति - राजस्थान की आदिवासी जनसंख्या की दृष्टि से भील जनजाति का द्वितीय स्थान है। भील मुख्यतः दक्षिणी राजस्थान के बाँसवाड़ा , डूंगरपुर , उदयपुर व राजसमंद जिलों में निवास करते हैं। इनकी सर्वाधिक संख्या उदयपुर जिले में हैं। यह भारत की सबसे प्राचीन जनजाति मानी जाती है। ये मेवाड़ी, भीली तथा वागड़ी भाषा का प्रयोग करते हैं। सामाजिक दृष्टि से ये पितृसत्तात्मक होते हैं तथा आर्थिक रूप ये कृषक होते हैं। भील लोग परंपरागत रूप से तीरंदाज होते हैं। इतिहासकार टॉलमी ने भीलों को फिलाइट ( तीरंदाज ) कहा है। भील शब्द ' बील ' शब्द से बना है जिसका अर्थ तीर कमान रखने वाली जनजाति से है। सदैव संघर्षरत रहने के कारण भील अच्छे योद्धा भी होते हैं। महाराणा प्रताप की सेना में "भीलू राणा'' एवं अन्य कई वीर योद्धा थे, जिन्होंने उनकी युद्ध में बहुत सहायता की थी । मेवाड़ राज्य के राज चिह्न पर भीलू राणा और प्रताप की दोस्ती का प्रतीक आज भी अंकित है । अंग्रेजी शासन के दौरान 'मेवाड़ भील कोर' का गठन किया गया था जो आज भी विद्यमान है। भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसा