Skip to main content

Posts

Showing posts with the label राजस्थान के प्राचीन मंदिर

नागदा के प्राचीन "सासबहू" के मंदिर- Temples of Rajasthan- Sahastra Bahu Temple of Nagda Udaipur

  उदयपुर से लगभग 25 - 26 किलोमीटर दूरी पर नाथद्वारा मार्ग पर स्थित नागदा एक प्राचीन दर्शनीय स्थान है। यह एकलिंगजी (कैलाशपुरी) से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित है। नागदा के मंदिर उदयपुर जिले के कैलाशपुरी गाँव की सुंदर बाघेला झील के किनारे प्राकृतिक वादियों के मध्य स्थित है। नागदा राज्य की स्थापना 6ठी शताब्दी में मेवाड़ के चतुर्थ शासक नागदित्य द्वारा की गई। प्रारंभ में इस नगर को नागह्रिदा के नाम से जाना जाता था क्योंकि राजा सिलादित्य के पिता नागादित्य द्वारा इसको स्थापित किया गया था, जो 646 ई. में वहां शासन कर रहे थे। नागदा का यह नगर यह मेवाड़ की प्राचीन राजधानी था। यह शिव, वैष्णव और जैन मंदिरों से समृद्ध शहर था। बाद में जब मेवाड़ पर सिसोदिया वंश का आधिपत्य हुआ तो यह स्थान भी उन शासकों के अधीन हो गया। इसके बाद पंद्रहवीं शताब्दी में, गुहिल राजा मोकल ने अपने भाई बाघ सिंह के नाम पर एक बड़ी झील ( बाघेला झील) का निर्माण किया। यहाँ स्थित 661 ई. का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह स्थान पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है क्योंकि

प्रसिद्ध शक्तिपीठ तनोटराय माता जैसलमेर

भारत पाकिस्तान सीमा पर स्थित माता "तनोटराय" का मन्दिर अत्यंत प्रसिद्ध है। यह मंदिर जैसलमेर जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर एवं भारत पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 20 किलोमीटर अंदर की और स्थित है। तनोट माता जैसलमेर के भाटी शासकों की कुलदेवी मानी जाती है। कहा जाता है कि जैसलमेर का तनोट नामक स्थान भाटी राजाओं की राजधानी हुआ करता था। भाटी शासक मातेश्वरी श्री तनोट राय के भक्त थे। यह भी कहा जाता है कि उनके आमंत्रण पर महामाया सातों बहने तणोट पधारी थी , इसी कारण भक्ति भाव से प्रेरित होकर राजा ने इस मन्दिर की स्थापना की थी। यह माता भारत-पाकिस्तान के मध्य 1965 तथा 1971 के युद्ध के दौरान सीमा क्षेत्र की रक्षा करने वाली तनोट माता के मन्दिर के रूप में प्रसिद्ध है। तनोट माता के प्रति आम भक्तों के साथ-साथ सैनिकों में भी अतीव आस्था है। माता के मन्दिर की देखरेख, सेवा, पूजापाठ, आराधना व अर्चना सीमा सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं। तनोट माता के बारे में विख्यात है कि 1971 में हुए भारत पाकिस्तान के युद्ध के दौरान सैकड़ों बम मंदिर परिसर में पाकिस्तान की सेना द्वारा गिराए गए थे किंतु माता की कृप

राजस्थान का खजुराहो है जगत का अंबिका मंदिर

राजस्थान के खजुराहो के नाम से विख्यात स्थापत्य कला व शिल्प कला अनुपम उदाहरण जगत का अंबिका मंदिर उदयपुर से करीब 58 किलोमीटर दूर अरावली की पहाडियों के बीच 'जगत गाँव' में स्थित है। मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्रृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का यह अंबिका मंदिर मेवाड़ की प्राचीन उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना है। इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान 5 वीं व 6 ठीं शताब्दी में शिव शक्ति सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा था। इसका निर्माण खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर से पूर्व लगभग 960 ई. के आस पास माना जाता है। मंदिर के स्तम्भों के लेखों से पता चलता है कि 11वीं सदी में मेवाड़ के शासक अल्लट ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रधान पीठिका पर मातेश्वरी अम्बिका की प्रतिमा स्थापित है। राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का चमकता मोती यह अंबिका मंदिर आकर्षक अद्वितीय स्थापत्य व मूर्तिशिल्प के कलाकोष को समेटे हुए है। प्रणयभाव में युगल, अंगडाई लेती व दर्पण निहारती नायिका, क्रीड़ारत शि

शिल्प सौंदर्य अनुपम है अर्थूना के मंदिरों में - sculptural Beauty is incomparable in the temples of Arthuna

राजस्थान के वागड़ क्षेत्र के बाँसवाड़ा नगर से लगभग 45 किमी दक्षिण पश्चिम में अर्थूना नामक स्थान भारतीय इतिहास के 11 वीं एवं 12 वीं सदी में निर्मित मंदिर समूह और मूर्तियों के लिए विख्यात है। वागड़ क्षेत्र में 8 वीं शताब्दी में मालवा के राजा उपेन्द्र ने परमार वंश की नींव डाली थी। बाद में इसी परमार वंश की उपशाखाएं राजस्थान में चंद्रावती, भीनमाल, किराडू एवं वागड़ में फैली। मध्यप्रदेश के परमार वंश के राजा पुण्डरीक ने प्राचीन अमरावती नगरी या उत्थुनक (अर्थूना) की स्थापना की थी। अर्थूना क्षेत्र को सन् 1954 में पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लेने के पश्चात इस पूरे क्षेत्र में हुई खुदाई में बड़ी संख्या में मूर्तियां और 30 से अधिक मंदिरों का अस्तित्व प्रकाश में आया है। ये मंदिर विभिन्न श्रेणी के हैं। इतिहासकारों ने यहाँ के शिल्प को सात भागों में बाँटा है- 1. शैव संप्रदाय से संबंधित शिल्प- शिवलिंग, शिवबाण, लकुलीश या लकूटीश की दण्डधारी मूर्तियाँ, शिव की अंधकासुर वध मूर्ति, भैरव मूर्ति, शिव के 12 वें अवतार के रूप में हनुमान की मूर्ति, उमा महेश अभिप्राय आदि। 2. वैष्णव संप्रदाय की

राजस्थान के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल

1. रामदेवरा (जैसलमेर)- देश में ऐसे देवता कम ही हैं जिनके दर पर हिन्दू-मुसलमान दोनों ही श्रद्धा और आस्था से सिर नवाते हैं। ऐसे ही एक लोक देवता है परमाणु विस्फोट के लिए प्रसिद्ध जैसलमेर के पोकरण से 13 किमी दूर स्थित रुणीजा अर्थात रामदेवरा के बाबा रामदेव। हिन्दू-मुस्लिम एकता व पिछडे वर्ग के उत्थान के लिए कार्य करने वाले प्रसिद्ध संत बाबा रामदेव की श्रद्धा में डूबे लाखों भक्त प्रतिवर्ष दर्शनार्थ आते है। हिन्दू मुस्लिम दोनों की आस्था के केन्द्र रामदेव के मंदिर में लोक देवता रामदेवजी की मूर्ति भी है और रामसा पीर की समाधि (मजार) भी। मान्यता है कि यहाँ के पवित्र राम सरोवर में स्नान से अनेक चर्मरोगों से मुक्ति मिलती है। चमत्कारी रामसा पीर के श्रद्धालु केवल आसपास के इलाकों से ही नहीं वरन् गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी सैंकडों किलोमीटर पैदल चल कर आते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष भादवा शुक्ल द्वितीया से भादवा शुक्ल एकादशी तक विशाल मेला लगता है। बाबा रामदेव का जन्म विक्रम संवत 1409 की भादवा शुक्ल पंचमी को तोमर वंशीय अजमल जी और माता मैणादे के यहाँ हुआ था। माना जाता है कि ये भगवान श्रीक