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How to Farm Drumstick in rajasthan - कैसे करे सहजन की खेती rajasthan

 कैसे करे सहजन की खेती Rajasthan सहजन की खेती क्या है सहजन (Moringa oleifera) सहजन को अंग्रेजी भाषा में ड्रमस्टिक कहा जाता हैं, यह एक औषधीय पौधा होता है। यह मोरिंगंसी कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। यह 7-8 मीटर ऊँचा वृक्ष होता है, जो भारत में प्राय: सभी भागों में पाया जाता है। अलग - अलग क्षेत्रों में इसे अलग - अलग नाम से भी जाना जाता है। इसकी छाल एवं शाखाएँ कोमल होती हैं तथा पर्ण संयुक्त त्रिपिच्छकी व लम्बी होती है। फूल हल्के नीले-सफेद रंग के होते हं जो गुच्छों में लगते हैं। फल हरे-भूरे रंग की लम्बी फलियों जैसे लटके हुए रहते है। सहजन का रासायनिक संगठन- इसकी पत्तियों, फलों व फूलों में कई तरह के आवश्यक एमिनो अम्ल पाये जाते हैं जैसे एलानिन, आर्जिनिन, गलाइसिन, सेरीन, लाइसीन, थ्रिओनिन, वेलीन, एस्पार्टीक तथा ग्लूटेमिक अम्ल आदि। इसकी पत्तियां व फलों में विटामिन ‘ए‘, ‘सी‘ (एस्कोर्बिक अम्ल) व निकोइनिक अम्ल पाया जाता है। इसके फलों में कई तरह के एल्केलॉइड्स तथा क्विरसीटिन व केम्पफेरॉल फ्लेवोनॉइड्स होते है। इसके तने में गौंद निकलता है जो एक पॉलीयुरोनाइड होती है जिसमें आर्बीन

Statue of belief 351ft.(world's tallest lord shiva statue ) nathdwara rajsamand mewar rajasthan

भगवान शिव के भक्तों के लिए दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा को पूरा तैयार होने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता है, इसके निर्माता ने बताया कि यह प्रतिमा 351 फीट ऊंची है, और यह राजस्थान के पुष्टिमार्ग के प्रथम पीठ ऐतिहासिक शहर नाथद्वारा में स्थित है। जल्द ही इसका उद्घाटन किया जाना था, किन्तु निर्माण अपेक्षा से अधिक लंबा हो गया है, और उद्घाटन की तारीख स्थगित हो गई। कथित तौर पर, प्रतिमा का निर्माण अगस्त तक पूरा होने वाला है। यह नाथद्वारा नगर जहाँ विश्व प्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर है, में गणेश टेकरी पर बनाई जा रही है। इस प्रतिष्ठित संरचना को ''स्टैच्यू ऑफ बिलीफ़'' का नाम दिया गया है। इसका निर्माण 2,500 टन परिष्कृत स्टील के साथ किया गया, जो उच्च गुणवत्ता वाले तांबे और जस्ता के पेडस्टल से युक्त है। प्रतिमा को विभिन्न स्तरों पर तीन दीर्घाओं से सुसज्जित किया गया है; जहाँ आगंतुक क्रमशः 20 फीट, 110 फीट और 270 फीट की ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं। भगवान शिव के त्रिशूल का निर्माण 315 फीट की ऊंचाई पर किया गया है। गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बाद भारत में दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा होगी, जिसे

Haveli Sangeet and Ashtchhap Poet of Pushtimarg | पुष्टिमार्ग का हवेली संगीत और अष्टछाप कवि

संगीत मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग हो गया है। मनुष्य, प्रकृति, पशु-पक्षी सभी मिलकर एकतान संगीत की सृष्टि करते हैं। ऐसा मालूम होता है कि समस्त ब्रह्माण्ड ही एक सुन्दर संगीत की रचना कर रहा है। वैसे तो जो भी ऐसा गाया या बजाया जाए जो कर्णप्रिय हो संगीत ही होगा किन्तु कुछ निश्चित नियमों में बँधे हुए संगीत को शास्त्रीय संगीत कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत अथवा सरल संगीत आदि जो कुछ आज हमें सुनने को मिल रहा है उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में परम्परागत शास्त्रों के विचारों के साथ-साथ 15वीं, 16वीं, 17वीं शताब्दी के मध्यकालीन भक्ति संगीत से अवश्य प्रभावित है। अष्टछाप कवि मध्यकालीन संगीत में अष्टछाप या हवेली संगीत की स्थापना, पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक आचार्य श्री वल्लभाचार्य के पुत्र आचार्य गोस्वामी श्री विट्ठलनाथजी ने श्रीनाथ जी की सेवा करने एवं  पुष्टिमार्ग के प्रचार-प्रसार करने के लिए की थी। 'अष्टछाप' कृष्ण काव्य धारा के आठ कवियों के समूह को कहते हैं, जिनका मूल सम्बन्ध आचार्य वल्लभ द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय से है। जिन आठ कवियों को अष्टछाप कहा जाता है, व

नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा) पर्व

आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, शनिवार, 06 जून 2020 है। आज ज्येष्ठाभिषेक है। इसे केसर स्नान अथवा स्नान-यात्रा भी कहा जाता है। आप सभी को स्नान यात्रा पर्व की खूब खूब मंगल बधाई और शुभकामनाएं। नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा) ★☆★आज के उत्सव का भाव ★☆★ ◆ श्रीनाथजी में प्रभु सेवा में चार यात्रा के मनोरथ होते हैं - अक्षय तृतीया को चन्दन यात्रा गंगा दशहरा को जल यात्रा आज के दिन स्नान यात्रा और रथ यात्रा ज्येष्ठ नक्षत्र में पूर्णिमा होने से आज किया जाने वाला यह स्नान ज्येष्ठाभिषेक या स्नान यात्रा कहा जाता है। अर्थात आज के दिन ही ज्येष्ठाभिषेक स्नान होने एवं सवा लाख आम अरोगाए जाने का भाव ये हे कि यह स्नान ज्येष्ठ मास में चन्द्र राशि के ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है और सामान्यतया यह ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है। किंतु तिथि क्षय के कारण पूर्णिमा आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को दोपहर 12.41 बजे तक है एवं ज्येष्ठा नक्षत्र दोपहर 3.13 बजे तक होने से ज्येष्ठाभिषेक आज आषाढ़ कृष्ण एकम को होगा। ◆ ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में पूरे ज्येष्ठ मास में आदि भक्तों के साथ जल विहार किया था तथ

रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत दरियाव जी

रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत दरियाव जी - रामस्नेही सम्प्रदाय की प्राचीन शाखा ‘रेण’ के संस्थापक दरिया साहब की वाणी में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है जिसके आधार पर उनकी जन्म-तिथि या उपस्थिति काल का निर्णय किया जा सके। इस सम्बंध में हमें बहिर्साक्ष्यों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। दरिया साहब के प्रशिष्य और पूरणदास जी के शिष्य पदुमदास कृत ‘जन्म लीला’ के अनुसार- ''सतरा से के समत बरस तैंतीसा भारी। मास भादवा बद अष्टमी तिथ इदकारी।।'' अर्थात दरिया साहब का आविर्भाव भादों कृष्ण अष्टमी, वि.सं. 1733 को हुआ था। दरिया साहब के एक दूसरे शिष्य किशनदास जी के प्रपौत्र शिष्य मदाराम जी ने अपनी रचना दरिया साहब की परची में दरिया साहब का जन्म काल भाद्रपद कृष्ण आठ, संवत 1733 ही माना है- ''समत सत्रा सो जाणल्यो पुन तैतीसा सार। बदी भादवा अष्टमी जन दरिया अवतार।।'' सन्त जयराम दास जी ने भी “श्री दरियाव महाराज की लावणी” में भी इसी तिथि को माना है - ''सतरासें तेतीस का जन्म अष्टमी जाण। जन्म लियो दरियावजी सरे रोप्या भक्ति नो साण।।'' सन्त आत्

HOW TO DO MODERN FARMING OF GROUNDNUT - कैसे करें मूंगफली की आधुनिक खेती

HOW TO DO MODERN FARMING OF GROUNDNUT -  कैसे करें मूंगफली की आधुनिक खेती भारत में की जाने वाली तिलहनी फसलों की खेती में सरसों, तिल, सोयाबीन व मूँगफली आदि प्रमुख हैं। मूँगफली पडौसी राज्य गुजरात के साथ-साथ राजस्थान की भी एक प्रमुख तिलहनी फसल हैं। यह गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है।  मूँगफली (peanut, या groundnut) का वानस्पतिक नाम  ऐराकिस हाय्पोजिया (Arachis hypogaea) है। मूंगफली एक ऐसी फसल है जो लेग्युमिनेसी कुल की होते हुए भी तिलहनी के रूप में अधिक उपयोगिता रखती है। लेग्युमिनेसी कुल का पौधा होने के कारण मूंगफली की खेती करने से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है। मूंगफली की आधुनिक खेती करने से भूमि की उर्वरता बढ़ने से भूमि का सुधार होगा और इसके साथ साथ किसान की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ होती है। राजस्थान में बीकानेर जिले के लूणकरनसर में अच्छी किस्म की मूँगफली का अच्छा उत्पादन होता है, इस कारण लूणकरनसर को 'राजस्थान