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जैसलमेर का किला

जैसलमेर के किले का निर्माण वहाँ के शासक महारावल जैसल करवाया गया था। उन्होंने इसकी आधारशिला 12 जुलाई 1155 में रखी तथा यह सात वालों में बन कर तैयार हुआ। जैसलमेर राजस्‍थान का दूसरा सबसे पुराना राज्‍य है। यह त्रिकूटाकृति किला ढाई सौ फीट ऊँचाई पर पीले बलुआ पत्थरों (सेंड स्‍टोन) के विशाल खण्‍डों से निर्मित है। इन पत्थरों के कारण यह विशाल किला दूर से ऐसा लगता है जैसे समुद्र में कोई जहाज लंगर डाले खड़ा है। सोनार के किले के नाम से जाना जाने वाला यह किला अपनी सुनहरी आभा से सभी को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। सोने से चमकते रहने के कारण इस किले को स्वर्ण दुर्ग भी कहा जाता है। इस किले में मोर्चाबंदी तथा युद्ध काल में सैन्य सामग्री की व्यवस्था के लिए 30 फीट ऊंची दीवार वाले 99 बुर्ज बने हुए हैं, जिनमें से 92 का निर्माण 1633 एवं 1647 के बीच कराया गया था। इसके भीतर जैसलू कुएँ सहित कई कुएँ मौजूद है जो पेयजल का निरंतर स्रोत प्रदान करते हैं। यह मान्यता है कि जैसलू कुएँ का निर्माण भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से की थी। यहाँ के भाटी शासक अपने आप को यदुवंशी कृष्ण का वंशज मानते हैं। महारावल जैसल द्वारा निर्

मौर्य तथा प्राचीन राजस्थान

राजस्थान के कुछ भाग मौर्यों के अधीन या प्रभाव क्षेत्र में थे। अशोक का बैराठ का शिलालेख तथा उसके उत्तराधिकारी कुणाल के पुत्र सम्प्रति द्वारा बनवाए गए मन्दिर मौर्यों के प्रभाव की पुष्टि करते हैं। कुमारपाल प्रबन्ध तथा अन्य जैन ग्रंथों से अनुमानित है कि चित्तौड़ का किला व चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग का बनवाया हुआ है। चित्तौड़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाब पर राज मान का , जो मौर्यवंशी माना जाता है , वि . सं . 770 का शिलालेख कर्नल टॉड को मिला , जिसमें माहेश्वर , भीम , भोज और मान ये चार नाम क्रमशः दिए हैं। कोटा के निकट कणसुवा ( कसुंआ ) के शिवालय से 795 वि . सं . का शिलालेख मिला है , जिसमें मौर्यवंशी राजा धवल का नाम है। इन प्रमाणों से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार और प्रभाव स्पष्ट होता है। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत की राजनीतिक एकता पुनः विघटित होने लगी। इस युग में भारत में अनेक नए जनपदों का अभ्युदय हुआ। राजस्थान में भी अनेक राजप

प्राचीन राजस्थान में आर्य तथा मौर्य -

आर्य तथा प्राचीन राजस्थान - मरुधरा की सरस्वती और दृषद्वती जैसी नदियाँ आर्यों की प्राचीन बस्तियों की शरणस्थली रही है। ऐसा माना जाता है कि यहीं से आर्य बस्तियाँ कालान्तर में दोआब आदि स्थानों की ओर बढ़ी। इन्द्र और सोम की अर्चना में मन्त्रों की रचना , यज्ञ की महत्ता की स्वीकृति और जीवन - मुक्ति का ज्ञान आर्यों को सम्भवतः इन्हीं नदी घाटियों में निवास करते हुए हुआ था। महाभारत तथा पौराणिक गाथाओं से प्रतीत होता है कि जांगल ( बीकानेर ), मरुकान्तार ( मारवाड़ ) आदि भागों से बलराम और कृष्ण गुजरे थे , जो आर्यों की यादव शाखा से सम्बन्धित थे। जनपदों का युग आर्य संक्रमण के बाद राजस्थान में जनपदों का उदय होता है , जहाँ से हमारे इतिहास की घटनाएँ अधिक प्रमाणों पर आधारित की जा सकती हैं। सिकन्दर के अभियानों से आहत तथा अपनी स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने को उत्सुक दक्षिण पंजाब की मालव , शिवि तथा अर्जुनायन जातियाँ , जो अपने साहस और शौर्य के लिए प्रसिद्ध थी , अन्य