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राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र - घन लोक वाद्य

घन वाद्य वे वाद्य हैं लकड़ी या धातु के परस्पर आघात करके या ठोंक कर बजाए जाते हैं। खडताल- इस घन वाद्य 'खड़ताल' में लकड़ी के चार टुकड़े होते हैं तथा एक हाथ में दो-दो टुकड़ों को पकड़ कर उनका परस्पर आघात करके बजाया जाता है। लकडी के टुकडों के बीच पीतल की छोटी-छोटी तस्तरीनुमा आकृतियाँ भी लगी होती है। इसे माँगणियार व लंगा अपने गीतों की प्रस्तुति में करते हैं। इस वाद्य यंत्र को करताल भी कहते हैं। झाँझ- मिश्र धातु से बने दो चक्राकार टुकड़े होते हैं जिनके मध्य भाग में छेद होता है। प्रत्येक झाँझ के छेद में एक डोरी लगी होती है व बाहर की ओर से इस डोर पर कपड़े के गुटके लगे होते हैं जिन्हें हाथों से पकड़ कर एक दूसरे पर आघात कर बजाया जाता है। मंजीरा- इसे भजन गायन में प्रयुक्त किया जाता है। मिश्र धातु से बनी दो कटोरियां होती है जिनका मध्य भाग गहरा होता है। इनके मध्य में छेद होते हैं जिनमें डोर लगी होती है। इन डोरियोँ से दोनों हाथों में एक एक मंजीरा पकड़ कर परस्पर आघात कर बजाया जाता है। थाली- यह घन वाद्य एक कांसे की थाली होती है जिसके एक किनारे पर छेद करके एक

राजस्थान की जल धरोहरों की झलक : - 3

वैभवशाली राजस्थान के गौरवपूर्ण अतीत में पानी को सहेजने की परम्परा का उदात्त स्वरुप यहाँ की झीलों, सागर-सरोवरों,कलात्मक बावड़ियों और जोहड़ आदि में परिलक्षित होता है। स्थापत्य कला में बेजोड़ ये ऐतिहासिक धरोहरेँ जहाँ एक ओर जनजीवन के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब भी है। राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे। आइए इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर डालें। मीरली या मीरवी- तालाब, बावड़ी, कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति। कीणिया- कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति। चेजारा- चुनाई करने वाला व्यक्ति। आइए राजस्थान की जल विरासत की झाँकी का अवलोकन करें! चाँद बावड़ी - आभानेरी दौसा- दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी गाँव में लगभग 11 वीं शताब्दी में बनी चाँद बावड़ी करीब 100 फुट गहरी एवं विशाल है। किंवदंती है कि इसका निर्माण आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। अद्भुत कलात्मकता की प्रतीक चाँद बावड़ी के तीन ओर आकर्षक सीढ़ियाँ एवं विश्राम घाट बने हुए हैं।

राजस्थान की जल धरोहरों की झलक : - 2

पुष्कर सरोवर यह किंवदंती है कि जब भगवान ब्रह्मा यज्ञ के लिए शांति स्थान की खोज के लिए निकले तो कर से गिरे कमल से पुष्कर ( पुष-कमल, कर-हाथ) सरोवर की रचना हुई। चौथी शताब्दी में कालिदास ने अपनी कृति 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' इसी स्थान पर रची थी। गुरु गोविन्द सिंह ने यहाँ पर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया था। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा कि इस सरोवर की तुलना तिब्बत की मानसरोवर झील के अलावा और किसी से नहीं की जा सकती। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरी अर्धचंद्राकार 10 मीटर गहरी इस झील के किनारे बावन घाट हैं एवं विश्व का एकमात्र व सबसे प्राचीन ब्रह्माजी का मंदिर भी है। प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं तो पुष्कर को सभी तीर्थों का सम्राट कहते हैं। माही बजाज सागर बाँध, बाँसवाड़ा यह राजस्थान के विराट बाँधों में से एक है। यह बाँध माही नदी नदी पर बना है जो मध्यप्रदेश के धार जिले में विन्ध्यांचल पर्वत से निकल कर अरावली की पहाड़ियों में बाँसवाड़ा में प्रवेश कर गुजरात की खम्भात की खाड़ी में गिरती है। यह राजस्थान व गुजरात की अंतःराज्यीय संयुक्त परियोजना का यह बाँध केवल बाँसवाड़ा ही नहीं अप

CURRENT AFFAIRS समसामयिक घटनाचक्र 26.01.2011

राष्ट्रीय युवा महोत्सव उदयपुर में आयोजित देश की अखंडता, एकता और भाईचारा कायम करने के उद्देश्य से सोलहवाँ राष्ट्रीय युवा महोत्सव (नेशनल यूथ फेस्टिवल) उदयपुर में दिनांक 12 से 16 जनवरी 2011 तक आयोजित किया गया। राष्ट्रीय युवा दिवस 12 जनवरी (स्वामी विवेकानंद जयंती) को इसका उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने उद्घाटन किया। इस महोत्सव की थीम थी- ‘सबसे पहले भारत’। इस महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष युवा मंत्रालय द्वारा किया जाता है। पद्म पुरस्कार में राजस्थान राजस्थान की धुरंधर डिस्कस थ्रो खिलाड़ी कृष्णा पूनिया, विख्यात लेखक डॉ.सी.पी. देवल व फिल्म अभिनेता इरफान खान को इस वर्ष के पद्मश्री से जबकि आईसीआईसीआई बैंक की एमडी व सीईओ जोधपुर में जन्मी चंदा कोचर को पद्मभूषण से नवाजा जाएगा। ये सम्मान मार्च या अप्रेल में दिए जाएंगे। एथलीट कृष्णा ने राष्ट्रमंडल खेल में स्वर्णिम कामयाबी प्राप्त की थी तथा अजमेर के डॉ. देवल कई कविता, कहानी संग्रह लिख चुके हैं जबकि जयपुर के इरफान भारतीय फिल्म, टीवी व रंगमंच की दुनिया में अपने हुनर का लोहा मनवा चुके हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से शिक्षित इरफान खान ने द वारियर

लोक देवता पाबूजी और बाबा रामदेव जी

राजस्थान के प्राचीन लोक जीवन में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए है जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना जीवन तक दाँव लगा दिया और देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को पीर की संज्ञा दी गई है। एक जनश्रुति के अनुसार राजस्थान में पांच पीर हुए हैं, जिनके नाम पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, मंगलिया जी और मेहा जी है। इस जनश्रुति का दोहा इस प्रकार है- पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा। पांचो पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा ॥ इन्हें 'पंच पीर' भी कहा जाता है। लोक देवता पाबूजी का जन्म संवत 1313 (1239 ई.) में जोधपुर जिले में फलौदी के पास कोलूमंड गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम धाँधल जी राठौड़ था जो मारवाड़ के राव आसथान के पुत्र थे। वे एक दुर्ग के दुर्गपति थे। पाबूजी का विवाह अमरकोट के सोढ़ा राणा सूरजमल की पुत्री के साथ तय हुआ। वीर पाबूजी राठौड़ ने अपने विवाह में फेरे लेते हुए सुना कि उनके बहनोई श्री जींदराव खींची एक अबला स्त्री देवल चारणी की गाएँ हरण कर ले जा रहे हैं। उन्होँने उस महिला को उसकी गायों की रक्षा का वचन दे रखा था। गायों के अपहरण की बात सुनते ही वे आधे

राजस्थान के अवनद्ध लोक वाद्य

अवनद्ध वाद्य वे होते हैं जिनके मुँह पर चमड़ा या खाल मढ़ी होती है। इन्हें हाथ या डंडों से बजाया जाता है। 1. मांदल- मिट्टी से बना यह लोक वाद्य मृदंग की आकृति की तरह गोल घेरे जैसा होता है। इस पर हिरण या बकरे की खाल मंढ़ी होती है। दोनों ओर की चमड़े के मध्य भाग में जौ के आटे का लोया लगाकर स्वर मिलाया जाता है। इसे हाथ के आघात से बजाया जाता है। यह भीलों व गरासियों का प्रमुख वाद्य है। गवरी और गैर नृत्य के अलावा मेवाड़ के देवरों में इसे थाली के साथ बजाया जाता है। 2. ताशा- तांबे की चपटी परात पर बकरे का पतला कपड़ा मंढ़ कर इसे बनाया जाता है तथा बाँस की खपच्ची से बजाया जाता है। इसे मुसलमान अधिक बजाते हैं। 3. ढोल- राजस्थान के लोक वाद्यों इसका प्रमुख स्थान है। यह लोहे या लकड़ी के गोल घेरे पर दोनों तरफ चमड़ा मढ़ कर बनाया जाता है। इस पर लगी रस्सियों को कड़ियों के सहारे खींच कर कसा जाता है। वादक इसे गले में डाल कर लकड़ी के डंडे से बजाता है। 4. नौबत- नौबत अवनद्ध वाद्य है जिसे प्रायः मंदिरों या राजा-महाराजाओं के महलों के मुख्य द्वार पर बजाया जाता था। इसे धातु की लगभग चार फु

राजस्थान की जल धरोहरों की झलक

वैभवशाली राजस्थान के गौरवपूर्ण अतीत में पानी को सहेजने की परम्परा का उदात्त स्वरुप यहाँ की झीलों, सागर-सरोवरों,कलात्मक बावड़ियों और जोहड़ आदि में परिलक्षित होता है। स्थापत्य कला में बेजोड़ ये ऐतिहासिक धरोहरेँ जहाँ एक ओर जनजीवन के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब भी है। राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे। आइए इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर डालें। मीरली या मीरवी- तालाब, बावड़ी, कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति। कीणिया- कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति। चेजारा- चुनाई करने वाला व्यक्ति। आइए राजस्थान की जल विरासत की झाँकी का अवलोकन करें! चाँद बावड़ी - आभानेरी दौसा- दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी गाँव में लगभग 11 वीं शताब्दी में बनी चाँद बावड़ी करीब 100 फुट गहरी एवं विशाल है। किंवदंती है कि इसका निर्माण आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। अद्भुत कलात्मकता की प्रतीक चाँद बावड़ी के तीन ओर आकर्षक सीढ़ियाँ एवं विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी