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Showing posts with the label Agriculture in Rajasthan

जैविक खेती पुरस्कार के लिए 30 सितम्बर तक आवेदन आमंत्रित

जैविक खेती पुरस्कार के लिए 30 सितम्बर तक आवेदन आमंत्रित प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए तीन किसानों को पुरस्कार दिया जाएगा। इसके लिए कृषि विभाग ने 30 सितम्बर तक आवेदन आमंत्रित किए हैं। चयनित काश्तकार को एक लाख रुपए पुरस्कार राशि प्रदान की जाएगी। कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया ने बताया कि खेती में रासायनिक उर्वरकों, खरपतवार नाशकों व कीटनाशकों के बढ़ते हुए प्रयोग को रोकने एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में राज्य योजनान्तर्गत वर्ष 2019-20 में राज्य स्तर पर जैविक खेती प्रोत्साहन के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाले तीन किसानों को पुरस्कार दिया जाएगा। गत पांच सालों से जैविक खेती पद्धति से कृषि-उद्यानिकी फसलें लेने वाले काश्तकार इसके लिए पात्र होंगे। कृषक अपना आवेदन प्रपत्र अपने संबंधित जिले के उपनिदेशक कृषि (विस्तार) कार्यालय से निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। आवेदन प्रपत्र की पूर्ति कर संबंधित जिला कार्यालय में 30 सितम्बर तक व्यक्तिशः अथवा डाक द्वारा जमा करा सकते हैं। योजना के दिशा-निर्देश, पात्रता का विस्तृ

37 th Maharana Mewar Foundation Awards 2019

37वाँ महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन अलकंरण महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन का 37 वाँ वार्षिक सम्मान समारोह 10 मार्च,2019 को उदयपुर के सिटी पैलेस में सम्पन्न हुआ। इसमें कला,साहित्य,संस्कृति,शिक्षा,समाज सेवा,आदि के क्षेत्र में अनूठे काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय हस्तियों को विभिन्न अलंकरणों से नवाजा गया। कर्नल जेम्स टाॅड अलकंरण (अंतर्राष्ट्रीय) रू. 1,11,001 -   डाॅ. पाॅल टी. क्रैडाॅक को (मेवाड़ की चित्रकारी पर शोध एवं लेखन के लिए) हकीम खां सूर सम्मान (राष्ट्रीय) (रू.51,001) - गायक सुरेश वाडेकर को (कौमी एकता, राष्ट्रीय अखण्डता, देशप्रेम एवं साम्प्रदायिक सद्भाव) हल्दीघाटी पुरस्कार (रू.51,001) - स्वाति चतुर्वेदी  को (गंभीर पत्रकारिता तथा साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिए) पन्नाधाय अंलकरण (रू.51,001) -  सपन देबबर्मा और सुमा देबबर्मा को (त्याग एवं बलिदान के लिए) महाराणा उदयसिंह सम्मान (रू.51,001) - गीता शेषमणि और कार्तिक सत्यनारायण को (पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन के उल्लेखनीय कार्य के लिए) महाराणा सज्जनसिंह सम्मान (राज्य स्तरीय) (रू. 25,001)- जमना ला

How to Farm Caster in Rajasthan कैसे करे अरण्डी की उन्नत खेती

कैसे करे अरण्डी की उन्नत खेती How to Farm Caster in Rajasthan -   अरंडी को अंग्रेजी में केस्टर कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम  रिसीनस कम्युनिस होता है।  अरण्डी खरीफ की एक प्रमुख तिलहनी फसल है। इस की कृषि आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान के शुष्क भागों में की जाती है।  राजस्थान में इसकी कृषि लगभग 1.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है, जिससे लगभग 2.10 लाख टन उत्पादन होता है।  इसकी औसत उपज 14.17 क्विंटल प्रति हेक्टर है । इसके बीज में 45 से 55 प्रतिशत तेल तथा 12-16 प्रतिशत प्रोटीन होती है।  इसके तेल में प्रचुर मात्रा (93 प्रतिशत) में रिसनोलिक नामक वसा अम्ल पाया जाता है, जिसके कारण इसका आद्यौगिक महत्त्व अधिक है।  इसका तेल प्रमुख रूप से क्रीम, केश तेलों, श्रृंगार सौन्दर्य प्रसाधन, साबुन, कार्बन पेपर, प्रिंटिग इंक, मोम, वार्निश, मरहम, कृत्रिम रेजिन तथा नाइलोन रेशे के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।  पशु चिकित्सा में इसको पशुओं की कब्ज दूर करने से लेकर कई अन्य रोगों में प्रयोग किया जाता है।  उन्नत तकनीकों क

सहकारी क्षेत्र में कमजोर वर्ग के लिये पीपीपी मॉडल पर बनाए जाएंगे आवास

सहकारी क्षेत्र में कमजोर वर्ग के लिये पीपीपी मॉडल पर बनाए जाएंगे आवास जयपुर, 9 मार्च। राजस्थान राज्य सहकारी आवासन संघ प्राथमिकता से राज्य के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये आवासों का निर्माण करेगा, इसकी शुरूआत पीपीपी मॉडल पर की जायेगी। निर्मित आवासों की समय पर सुपुदर्गी के साथ उपभोक्ता के हितों की रक्षा को सहकारी आवासन संघ सुनिश्चित करेगा। यह जानकारी रजिस्ट्रार, सहकारिता डॉ. नीरज के. पवन ने दी। डॉ. पवन शनिवार को झालाना संस्थानिक क्षेत्र स्थित राईसेम परिसर में आयोजित राष्ट्रीय सहकारी आवासन परिसंघ की 182वीं निदेशक मण्डल की बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकारी क्षेत्र में कच्चा बिल्डिंग मैटेरियल की आपूर्ति सहकारी आवासन संघ द्वारा की जायेगी, इसके लिये परस्पर सहयोग आधारित कार्य योजना को मूर्त रूप प्रदान किया जायेगा।  उन्होंने बताया कि सहकारी आवासन संघ पीपीपी मॉडल के तहत तीन आधारभूत संरचनाओं पर कार्य करेगा, जिसमें कई स्थानों पर सहकारी आवासन संघ की जमीन होगी तो कही जगह निजी भवन निर्माताओं की होगी तथा कच्चा मैटेरियल एवं भवन निर्माण तकनीक व निर्माण की जिम्मेदारी को आ

Major Mandi of Rajasthan- राजस्थान की प्रमुख मंडियाँ

क्रम सं.   मंडी नाम स्थान 1 प्याज मंडी     अलवर 2 अमरूद मंडी     सवाईमाधोपुर 3 आंवला मंडी   चौमू (जयपुर) 4 प्‍याज मंडी   रसीदपुरा- फतेहपुर 5 टमाटर मंडी   बस्सी (जयपुर) 6 लहसुन मंडी   छीपा बड़ौदा-छबड़ा (बारां) 7 अश्वगंधा मण्डी    झालरापाटन (झालावाड़) 8 वन उपज मंडी     उदयपुर (अनाज मंडी) 9 मटर मंडी     बसेडी- जयपुर (फ.स) 10 धनिया मंडी     रामगंज मंडी (कोटा) 11 टिण्‍डा मंडी शाहपुरा-जयपुर (फ.स.) 12 मिर्च मंडी टोंक 13 मूंगफली मंडी बीकानेर 14 मेहन्दी मंडी सोजतसिटी-सोजतरोड़ (पाली) 15 फूल मंडी अजमेर (फ.स.) एवं पुष्कर (अजमेर) तथा मुहाना जयपुर 16 जीरा मंडी जोधपुर, मेड़ता सिटी (नागौर), बाडमेर 17 सोनामुखी मंडी सोजतसिटी-सोजतरोड़ (पाली) 18

How to do scientific farming of fennel - कैसे करें सौंफ की वैज्ञानिक खेती

औषधीय गुणों से भरपूर है सौंफ - प्राचीन काल से ही मसाला उत्पादन में भारत का अद्वितीय स्थान रहा है तथा 'मसालों की भूमि' के नाम से विश्वविख्यात है। इनके उत्पादन में राजस्थान की अग्रणी भूमिका हैं। इस समय देश में 1395560 हैक्टर क्षेत्रफल से 1233478 टन प्रमुख बीजीय मसालों का उत्पादन हो रहा है। प्रमुख बीजीय मसालों में जीरा, धनियां, सौंफ व मेथी को माना गया हैं। इनमें से धनिया व मेथी हमारे देश में ज्यादातर सभी जगह उगाए जाते है। जीरा खासकर पश्चिमी राजस्थान तथा उत्तर पश्चिमी गुजरात में एवं सौंफ मुख्यतः गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार तथा मध्य प्रदेश के कई इलाकों में उगाई जाती हैं। हमारे देश में वर्ष 2014-15 में सौंफ का कुल क्षेत्रफल 99723 हैक्टर तथा इसका उत्पादन लगभग 142995 टन है, प्रमुख बीजीय मसालों का उत्पादन व क्षेत्रफल इस प्रकार हैं। सौंफ एक अत्यंत उपयोगी पादप है। सौंफ का वैज्ञानिक नाम  Foeniculum vulgare होता है। सौंफ के दाने को साबुत अथवा पीसकर विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे सूप, अचार, मीट, सॉस, चाकलेट इत्यादि में सुगन्धित तथा रूचिकर बनाने में प्रयोग किया जात

Saccharum munja- कैसे करें उपयोगी मूंजा घास की खेती-

मुंजा एक बहुवर्षीय घास है, जो गन्ना प्रजाति की होती है। यह ग्रेमिनी कुल की सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम सेक्करम मूंज (Saccharum munja) है। मूंज को रामशर भी कहते हैं। यह  घास  भारत,  पाकिस्तान  एवं अपफगानिस्तान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पायी जाती है। इसका प्रसारण जड़ों एवं सकर्स द्वारा होता है। यह वर्ष भर हरी-भरी रहती है। इसके पौधों की लम्बाई 5 मीटर तक होती है। यह एक खरपतवार है, जो खेतों में पाया जाता है। बारानी एवं मरूस्थलीय प्रदेशों में इसका उपयोग मृदा कटाव व अपक्षरण रोकने में बहुत सहायक होता है। यह एक बहुवर्षीय पौधा है। इसके पौधे एक बार जड़ पकड़ लेने के बाद लगभग 25-30 वर्ष तक नहीं मरते हैं। अधिकतर अकृषि योग्य भूमि जहां कोई फसल व पौधा नहीं पनपता, वहां पर यह खरपतवार आसानी से विकसित हो जाती है। यह नदियों के किनारे, सड़कों, हाईवे,  रेलवे लाइनों और तालाबों के पास, चरागाहों, गोचर, ओरण आदि के आसपास जहाँ खाली जगह हो वहां पर स्वतः प्राकृतिक रूप से उग जाती है। इसकी पत्तियां बहुत तीक्ष्ण होती हैं। इसकी पत्तियों से हाथ या शरीर का कोई भाग लग जाए तो वह जगह कट सकती है और खून निकल सकता ह

How to farming Moth - कैसे करें मोठ की खेती

कैसे करें मोठ की खेती - दलहनी फसलों में मोठ सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल है। असिंचित क्षेत्रों के लिए यह फसल लाभदायक है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, देश के प्रमुख मोठ उत्पादक राज्य हैं। फसल स्तर बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2015) के अन्तर्गत भारत में मोठ का कुल क्षेत्रफल 9.26 लाख हेक्टेयर व उत्पादन 2.77 लाख टन था। राजस्थान देश में मोठ ऊत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में मोठ का क्षेत्रफल (96.75 प्रतिशत) व उत्पादन (94.49%) सर्वाधिक है। इसके बाद गुजरात का स्थान (2.38% व 3.6%) आता है। यद्यपि राजस्थान की उपज (292 किग्रा./हेक्टेयर) राष्ट्रीय औसत उपज (299 कि.ग्रा./हेक्टेयर) से कम है। मोठ के लिए उपयुक्त जलवायु - मोठ की फसल बिना किसी विपरीत प्रभाव के फूल व फली अवस्था में उच्च तापमान को सहन कर सकती है और इसके वृद्धि व विकास 0 0 के लिये 25 -37 सेन्टीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता होती है। वार्षिक वर्षा 250-500 मि.मी. व साथ ही उचित निकास की आवश्यकता होती है।  मोठ की उन्नत प्रजातियाॅं - राज्यवार प्रमुख प्रजातियों का विवरण   -           

Rajasthan's major irrigation and river valley projects - राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं-

राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं- 1. इन्दिरा गांधी नहर जल परियोजना IGNP- यह परियोजना पूर्ण होने पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी इसे प्रदेश की जीवन रेखा/मरूगंगा भी कहा जाता है। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। 2 नवम्बर 1984 को इसका नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया है। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया जिसका विषय ‘ बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता‘ था। 1958 में इन्दिरा गांधी नहर परियोजना का निर्माण कार्य की शुरूआत हुई लेंकिन उससे पहले सन् 1955 के अर्न्तराष्ट्रीय समझौते के दौरान रावी और व्यास नदियों से उपलब्ध 19,568 मिलियन क्यूबिक जल में से 9876 क्यूबिक जल राजस्थान को पहले ही आवंटित किया जाने लगा था। राजस्थान के हिस्से का यह पानी पंजाब के ‘‘हरिके बैराज‘‘ से बाड़मेर जिले में गडरा रोड तक लाने वाली 9413 कि.मी. लम्बी इस नहर परियोजना द्वारा राजस्थान को आवंटित जल में से 1.25 लाख हेक्टेयर मीटर जल का उपयोग गंगनहर, भांखडा नहर व सिद्वमुख फीडर में दिया जाने लगा। इन्दिरा गांधी नहर जल परियोजना IGNP का मुख्यालय (बो