मेहाजी मांगलिया राजस्थान के पंच पीर में से एक थे। मेहाजी सांखला {पंवार क्षत्रिय} थे। वे जन्म से ही अपने ननिहाल में रहते थे और इनका पालन-पोषण वहाँ ही हुआ था। इनके ननिहाल पक्ष की गौत्र माँगलिया थी। इसी कारण वे मेहा जी मांगलिया के नाम से मशहूर हो गए। वे मारवाड़ के राव चूंडा के समकालीन थे। मेहाजी अत्यंत ही दूरदर्शी थे। उनके पिताजी का नाम गोपालराज सांखला था। गोपालराज की अपने भाई ऊदा से बनता नहीं थी। उन दोनों के बीच में झगड़ा हो गया जिसमें गोपालराज ऊदा के हाथों मारे गए। उस समय गोपालराज की पत्नी गर्भवती थी। इस कठिन समय में एक चारण बीठू ने उनकी सहायता की तथा उन्हें सकुशल उनके पीहर पहुँचा दिया। वहाँ मेहा (मेहराज) का जन्म हुआ। नाना के घर में मेहा बड़ा हुए और आगे जा कर नाना के उत्तराधिकारी बने। मेहा जब चौदह वर्ष के थे तब उन्होंने अपने साथियों को संगठित करके एक शक्तिशाली दल का गठन किया तथा अवसर मिलते ही उन्होंने अपने पिता के हत्यारे ऊदा के जांगल प्रदेश पर आक्रमण कर उसका वध कर दिया एवं अत्याचारी को समाप्त करने के अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया। इसके पश्चात मेहा पहिलाप गाँव में बस गए। वे चारों तरफ उ
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